2023-11-27 15:11:48
साहिबाबाद/प्राप्त जानकारी के अनुसार श्री गुरु नानक देव जी महराज के जन्म दिवस 27 नवम्बर 2023 प्रकाश पर्व पर विशेष:-
“सत गुरु नानक प्रगटया, मिटी धुंध जग चानन होया”
श्री गुरु नानक देव ने लोगों के बीच नफरत, असहिष्णुता, ईर्ष्या, अहंकार के कारण समाज में व्याप्त वैर, भाव को मिटाने का प्रयत्न किया, उनका मानना था कि “एक नूर से सब जग उप्जो कौन भले, कौन मंदे,” न कोई हिन्दू है, न कोई मुसलमान, हमे दूसरों की कमियों की ओर न ध्यान देकर अपने अंदर छिपी हुई बुराइयों को दूर करना चाहिए, ऊंच-नीच, छुवाछूत, अंधविश्वास, रूढ़िवाद, पाखंड, कुरीतियों के वह विरोधी रहे, वे चाहते थे कि लोग शांति, सद्भाव, प्रेम, सौहार्द पूर्वक मिलजुल कर रहे, मानव द्वारा मानव के शोषण के घोर विरोधी एकता के प्रबल पक्षधर रहे, हमेशा नेक, नैतिक कमाई से धन अर्जित करने को सद्गुण मानते थे, एक बार मानव कल्याण के लिए भ्रमण करते हुए एक शहर में लालों बढ़ई के यहाँ भोजन ग्रहण किया, लेकिन डरा, धमकाकर सूदखोर जो ऊंच जाति का भागो, जिसने उन्हे आमंत्रित भी किया था उसका भोजन ग्रहण न करने पर,
उससे कहा कि तुम शोषण, अन्याय, डरा, धमकाकर धन अनैतिक तरीके से अर्जित किये हो, तुम्हारा अन्न गरीबों, कमजोर वर्गों के रक्त से सना है, जबकि लालों मेहनत की कमाई करता है, उसका अन्न दूध से भी बढ़कर है| वह पूरे जीवन मानव के एकता और कल्याण के लिए पद यात्रा कर समाज सुधार का महान काम करते रहे, और यह लोगों को बता दिया की न कोई आम है, न कोई खास|
गुरु नानक देव सिक्खों के प्रथम गुरु दिव्य पुरुष और अलौकिक सन्त का जन्म 15 अप्रैल 1469 ई0 जनपद लाहौर के तलवंडी नामक ग्राम में माता तृप्ता पिता कालू के यहाँ हुआ था, वह बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान रहे, उनके पिता ने उन्हे प्रारम्भिक ज्ञान के लिए पुरोहित और मौलवी के पास भेजा, तो उन्होने कहा कि आप हमे क्या पढायेंगे, उनके यह कहने पर की हम तुम्हें अक्षर ज्ञान, गणित, और कई विषयों की शिक्षा देंगे, तो उन्होने आध्यात्मिक अंदाज में कहा कि हमे यह पढ़ाई मै जिस मार्ग पर चलना चाहता हूँ भटका देगी, मै वह शिक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ जो समाज, व्यक्ति और सभी के काम की हो, और अंत समय में भी मेरे काम आये, उनका मन न खेती किसानी में ही लगा, न पशुपालन में, जहां नौकरी की वहाँ भी लोग उनके कृत की शिकायत करते तो नबाब ने उन्हे नौकरी से हटा दिया, लेकिन जब नबाब को पता चला कि उसके भंडार में कोई कमी नहीं तो इस महापुरुष से क्षमा मांग प्रायश्चित किया| इनके माता-पिता इनको संसारिक काम में लगाया और इनकी शादी सुलक्षणा जी से कर दी, इनके दो पुत्र श्री चंद और लक्ष्मी चंद हुए, इसके पश्चात भी इन्हे जो इनका परम लक्ष्य था उससे निवृत्त नहीं कर पाये, यह लोक कल्याण के लिए देशाटन के लिए निकल पड़े, लोगों को सत्य का मार्ग दिखाने और पाखंड के विरुद्ध अलख जगाते रहे, इन्होने अपने शिष्य बाला, मरदाना के साथ देश, विदेश की यात्रा की, प्रमुख तीर्थ स्थलों पर गये, तिब्बत के लोग इन्हे नानक लामा कहकर संबोधित करते थे, वह मूर्ति पूजा के घोर विरोधी थे|
श्री गुरु नानक देव का उद्देश्य समाज में व्याप्त पाखंड, काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार के समूलनाश के साथ समता, समानता, सत्य, नैतिकता, प्रेम, सद्भाव, सेवा, सहयोग की भावना जन-जन में जागृत हो नफरत और असहिष्णुता का विनाश हो, ईर्ष्या, द्वेष, कुरीतियाँ, अंधविश्वास, अंधश्रद्धा जो मानव के दुश्मन है, इन्हे अपने अंदर कोई स्थान न दें| पूरे जीवन जन-जन में अलख जगाते रहे, उनका कहना था कि “किरत करो” इसका तात्पर्य है ईमानदारी, नैतिकता से कठिन परिश्रम कर नेक कमाई करो, “बंड छकों” बांटकर खाओ, लंगर प्रथा की व्यवस्था प्रस्तुत की| आज सिक्ख समाज सैकड़ों साल बाद भी गुरुद्वारे में लंगर की व्यवस्था को संचालित कर जरूरतमन्द की सेवा कर रहा है, वह सेवा भाव से भूख, पीड़ा, दर्द जो दूसरों का है, उसे अपना समझ उसकी मदद में लगा रहता है, यह गुरु जी का प्रताप ही है, उन्होने नि: स्वार्थ सेवा और सरवत दा भला और हम सभी भाई-भाई है, हमें जाति, धर्म, लिंग के कारण भेदभाव नहीं करना चाहिए, दूसरों की नि: स्वार्थ सेवा में अन्तर्मन में जो आनंद मिलता है, वही एक ओंकार की पूजा, अर्चना, ध्यान है|
श्री गुरु नानक देव महराज ने करतार पुर में देह त्याग दिया, 22 सितंबर 1539 में उनके समर्थकों और अनुयायियों ने उनके विचार को बड़ी ही लगन और कठिन परिश्रम से फैलाने का काम किया, आज सिक्ख धर्म की सेवा, त्याग, बलिदान की मिसाल दी जाती, जो नि: स्वार्थ भाव से मानवता के कल्याण में लगा हुआ रूढ़िवाद, पाखंड, मूर्ति पूजा, अंधविश्वास, अंधश्रद्धा, अंध भक्ति का समय-समय पर पर्दाफास कर सत्य और नैतिक आचरण का संदेश देते हुए सेवा करने में लगा है|