संवेदनशील शाश्वत साहित्य ही साहित्यकार का दायित्व डॉ मनोज

साहित्य परिषद् की ओर से आत्मबोध से विश्वबोध व्याख्यान का आयोजन
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2025-03-24 17:17:12

रेवाड़ी। अखिल भारतीय साहित्य परिषद् हरियाणा प्रांत के महामंत्री डॉ. मनोज भारत ने कहा कि हर साहित्यकार का दायित्व है कि वह संवेदनशील होकर चिंतन युक्त शाश्वत साहित्य की रचना करे। वह परिषद् की रेवाड़ी इकाई के तत्त्वावधान में - आत्मबोध से विश्वबोध- विषय पर आयोजित विचार गोष्ठी एवं काव्य गोष्ठी में नगर के साहित्यकारों को संबोधित कर रहे थे। मुख्य वक्ता के रूप में विषय की प्रासंगिकता पर चर्चा करते हुए उन्होंने समाज की चुनौतियों पर विचार करते हुए अपनी जड़ों से जुडऩे और समसरता पूर्ण राष्ट्रबोध पर आधारित लेखन का आह्वान किया। इस मौके आयोजित काव्य गोष्ठी में राष्ट्रीय बोध का स्वर मुखरित हुआ। मुख्य वक्ता के साथ वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. रमेशचंद्र शर्मा को उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया। कार्यक्रम का संचालन कर रहे परिषद् महामंत्री गोपाल वासिष्ठ ने बताया कि वरिष्ठ रचनाकार एवं परिषद् के प्रांतीय कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. रमेशचंद्र शर्मा के निवास पर गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी में जहाँ राष्ट्रीय भावना को मूल में रखते हुए आत्मावलोकन करने और विश्व पटल पर अपनी उपोयगिता पर चर्चा हुई, वहीं राष्ट्र को नमन करते हुए सामाजिक विसंगतियों पर भी करारा प्रहार किया गया। इंटेक रेवाड़ी चैप्टर के प्रधान सुधीर भार्गव की अध्यक्षता में चली गोष्ठी की शुरूआत विवेकानंद केंद्र के महेश शर्मा ने महात्मा तुलसी की कवितावली के काव्यात्मक प्रसंग से की। मुख्य वक्ता डॉ. भारत ने कहा कि साहित्यकार कभी समाज से निरपेक्ष नहीं होता। उसे तुलसी, कबीर, मीराबाई व गुरू नानक की तरहशब्द की साधना करके राष्ट्रीय चेतना को जगाना है। सनातनी साहित्य शाश्वत है, किंतु विभाजनकारी ताकतों ने भ्रांतियाँ फैलाकर राष्ट्रीय भावना को खंडित ही नहीं किया अपितु हमें अपनी जड़ों से अलग करने का कार्य भी किया है। गौरवाशाली अतीत पर गर्व करते हुए ऐसी शाश्वत साहित्य की रचना करनी है, जैसे बाबा तुलसी ने मुगलकाल में लोगों की भ्रांतियाँ दूर करके संस्कृति की रक्षा की थी। उन्होंने कहा कि संयुक्त परिवार और कुटुंब व्यवस्था हमारी जड़ें हैं। आज कट्टर इस्लाम, प्रसारवादी चर्च, वैश्विक दबाव में चलता छद्म बाजारवाद हमारी जड़ों को हिला रहा है। हमें अपने चिंतन को नियंत्रित कर सार्थक एवं राष्ट्रवाद से प्रेरित साहित्य की रचना करके आत्मबोध से विश्वबोध तक की यात्रा करनी है। अध्यक्षीय संबोधन में इंटेक प्रधान सुधीर भार्गव ने कहा कि -आत्मबोध से विश्वबोध- नई सोच का प्रतीक है। भारत देश सांस्कृतिक रूप से समृद्ध रहा है जिसके प्रमाण उपनिषदें में मिलते हैं। विभिन्न देशों के सांस्कृतिक प्रतीकों में उपनिषदों की झलक देखी जा सकती है। हमें अपने गौरवशाली अतीत को भावी पीढ़ी तक पहुँचाना है। हमारे उपनिषद भी यही संदेश देते हैं कि सत्य को समझकर ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। काव्य गोष्ठी में जहाँ सामाजिक विसंगतियों पर चोट की गई, वहीं शहीदों को नमन करते हुए राष्ट्रवाद की भावना को मुखरित किया। प्रो.रमेश चंद्र शर्मा ने कहा- दे सहज सुमति हे स्वामी।. इतना न धृष्ट बन जाऊँ। मेरे अभीष्ट मैं तेरा सेवक विशिष्ट बन जाऊँ । डॉ. मनोज ने कहा- कोई भाषा, प्रांत हो, कैसा भी हो वेश। धर्म, जाति, पंथ में, सबसे पहले देशर्। सत्यवीर नाहडिय़ा ने वर्तमान पर चिंता जताते हुए शहीदों को कुछ यों नमन किया - लूटपाट अन्याय से, भरा पड़ा परिवेश, उनके सपनों का कहाँ, बना सके हम देश? - वरिष्ठ कवयित्री दर्शना शर्मा ने कहा- रण में करे कमाल हिंद देश के सपूत-। गोपाल वासिष्ठ ने तिरंगे को देश की आन.बान-शान बताते हुए सैनिक की पीड़ा कही- तिरंगा धरम है, तिरंगा करम, तिरंगे की खातिर लिया ये जनम। तिरंगे ने जब पुकारा हमें, तिरंगे में लिपटे ही घर आए हैं। अहमना भारद्वाज की पीड़ा थी कि- आज की जैनरेशन, है नैशन पर भारी। देशभक्ति लगती पुस्तक में प्यारी। युवा कवि राजेश भुलक्कड़ का दर्द कुछ यों था- यारों मुझको वो इंसान बुरा लगता है, जिसको मेरा हिंदुस्तान बुरा लगता है। एडवोकेट रणजीत सिंह ने सिद्ध धर्म और साध्य धर्म को आत्म शुद्धि का मार्ग बताया तो तेजभान कुकरेजा ने भारत की माटी को चंदन बता तिलक लगाने की बात कही। कवयित्री डॉ. कविता ने मानवता पर हावी होते स्वार्थ पर चिंता जताई। साहित्य परिषद्, बाबू बाल मुकुंद साहित्य संरक्षण परिषद एवं मित्रम संस्था की ओर से प्रो. रमेशचंद्र शर्मा एवं डॉ. मनोज भारत को सम्मानित किया गया। परिषद् अध्यक्षा श्रुति शर्मा ने व्याख्यानमाला एवं काव्य गोष्ठी से निकले स्वरों की सराहना करते हुए सभी का आभार जताया। इस मौके श्रीमती वीणा शर्मा, बाबू बालमुकुंद परिषद् के अध्यक्ष ऋषि सिंहल, रघुवीर सांभरिया, प्रभाती लाल नरेश चौहान, मंजुल शर्मा आदि साहित्य प्रेमी भी उपस्थित थे।

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