2025-01-17 18:46:00
रेवाड़ी : इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, मीरपुर की महिला प्रकोष्ठ के अन्तर्गत जागरूकता कार्यक्रम यौन उत्पीड़न : मनोवैज्ञानिक और कानूनी पहलू विषय पर विस्तार व्याख्यान का आयोजन किया गया। समन्वयक महिला प्रकोष्ठ प्रोफेसर रोमिका बत्रा ने स्वागत अभिनंदन करते हुए मुख्य वक्ता श्रीमती मंजू परमार को पौधा और शाल देकर स्वागत अभिनंदन किया। विषय की प्रस्तावना रखते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति की सहमति के बिना जानबूझकर किया गया कोई भी यौन स्पर्श यौन उत्पीड़न है। कोई भी उत्पीड़न अपने आप समाप्त नहीं होता। हमें स्वयं जिम्मेदारी के साथ आगे आकर विरोध करना होगा। यदि हम किसी ऐसे व्यक्ति को जानते हैं जिसे परेशान किया जा रहा है तो हमें पीड़ित व्यक्ति से बात करने और तत्काल कार्यवाही के लिए प्रेरित करना चाहिए। यौन उत्पीड़न की रोकथाम के लिए जरूरी है कि समय-समय पर प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन कराया जाए जिसमें राष्ट्रीय कानून, कार्यस्थल नीतियां बनाना और व्यक्तियों द्वारा उठाए जा सकने वाले कदम जैसे विषयों पर ठोस रूप से चर्चा की जाए। इसी के अंतर्गत आज की इस संगोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है।मुख्य वक्ता प्रसिद्ध कानून विशेषज्ञ और सामाजिक अधिवक्ता श्रीमती मंजू परमार ने कहा कि - महिलाओं के साथ कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न जैसी घटनाएं आज की कड़वी सच्चाई है। लेकिन किसी भी महिला को ऐसे व्यवहार को चुप रहकर सहन नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से दोषी बच जाते हैं और वह पुन: ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देते हैं। श्रीमती मंजू ने अधिनियम 2013 से परिचित कराते हुए विशाखा बनाम राजस्थान राज्य 1997 मामले में उच्चतम न्यायालय द्वारा दी गई परिभाषा से रूबरू करवाया।किसी भी संस्था अथवा संगठन को महिलाओं से जुड़े यौन उत्पीड़न के मामलों को प्रमुखता से लेना चाहिए। महिलाएं कार्यस्थल पर सहज वातावरण न होने के कारण उत्पीड़न की घटना के बारे में बात नहीं कर पाती जिससे उनके भीतर शारीरिक और मानसिक विकार उत्पन्न होने से दुष्परिणाम भुगतने पड़ते हैं। यौन उत्पीड़न मौखिक और शारीरिक किसी भी प्रकार का हो असहनीय है। यदि कोई भी पुरुष किसी महिला पर अभद्र टिप्पणी, संवाद या द्विअर्थी बातें करता है। उसके पहनावे, निजी व्यवहार और शरीर को लेकर टिप्पणी करता है या द्विअर्थी फिल्मों, चित्रों, संदेशों और साहित्य के माध्यम से या जबरन छूने, हाथ दबाने, अनचाहे आलिंगन, जबरदस्ती रास्ता रोकने जैसी घटनाओं को अंजाम देता है तो स्त्रियों को सावधान रहना चाहिए। हमें ऐसी घटनाओं के प्रति सतर्क होकर तुरंत यौन उत्पीड़न कि किसी भी नजदीकी पुलिस स्टेशन पर शिकायत दर्ज करानी चाहिए। हमें स्वयं जिम्मेदारी के साथ आगे आकर विरोध करना होगा।कार्यक्रम अध्यक्ष कुलपति प्रोफेसर जे.पी. यादव ने भारतीय संस्कृति से अवगत कराते हुए कहा कि हमारी संस्कृति में सदैव से स्त्री पूजनीय रही है। हमें भी इसी परंपरा का अवगाहन करते हुए नारी का सम्मान करना चाहिए। समाज में कुछ कुत्सित प्रवृत्ति वाले पुरुष नारी के शोषण की कुचेष्टा करते हैं। यह अपराध क्षमा योग्य नहीं है। हमें ऐसे लोगों की पहचान करके पीड़ित महिला की मदद करनी चाहिए ताकि दोषी को सजा मिल सके और समाज में साफ-सुथरा वातावरण बन सके। महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराध पुरुषों की कुटिल मानसिकता को दर्शाते हैं।हमें ऐसे लोगों के विरुद्ध उचित कार्यवाही करनी चाहिए जो महिलाओं का तरह-तरह से शारीरिक और मानसिक शोषण करते हैं। धन्यवाद ज्ञापन करते हुए कुलसचिव प्रोफेसर तेज सिंह ने कहा कि हमें अपने आसपास ऐसे वातावरण का निर्माण करना चाहिए जहां सहज, समान रूप से समावेशी संस्कृति का निर्माण हो। इससे कार्य स्थल पर सम्मान और समावेश का माहौल बनेगा। चाहे स्त्री हो या पुरुष किसी का भी अनुचित व्यवहार स्वीकार्य नहीं है। महिला प्रकोष्ठ की सदस्य प्रोफेसर ममता कामरा, डॉ. अदिति, डॉ. भारती ने विशेष रूप से मुख्य वक्ता श्रीमती मंजू परमार का शाल देकर धन्यवाद किया। इस अवसर पर विभिन्न विभागों के शोधार्थी, विद्यार्थी और प्राध्यापक उपस्थित रहे।