राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन समृद्ध पाठ्य परंपराओं को बनाए रखने के लिए डिजिटलीकरण का विस्तार और सार्वजनिक पहुंच बढ़ाने की पहल

देश की समृद्ध पाठ्य परंपराओं को बनाए रखने और उनका जश्न मनाने के लिए सरकार डिजिटलीकरण का विस्तार करने और सार्वजनिक पहुंच बढ़ाने के लिए समर्पित है
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2025-03-24 22:28:56

देश की समृद्ध पाठ्य परंपराओं को बनाए रखने और उनका जश्न मनाने के लिए सरकार डिजिटलीकरण का विस्तार करने और सार्वजनिक पहुंच बढ़ाने के लिए समर्पित है। सरकार ने देश की समृद्ध पांडुलिपि विरासत को संरक्षित, प्रलेखित और प्रसारित करने के लिए राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (एनएमएम) के तहत प्रमुख उद्देश्यों और पहलों की रूपरेखा तैयार की है। मिशन को 2024-31 की अवधि के लिए केन्द्रीय क्षेत्र की योजना के रूप में ‘ज्ञान भारतम मिशन’ नाम से पुनर्गठित किया गया है। इसके लिए कुल 482.85 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है। मिशन के प्रमुख उद्देश्य –सर्वेक्षण और दस्तावेजीकरण: भारत की पाण्डुलिपि संपदा का व्यापक रिकॉर्ड बनाए रखने के लिए राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण और पाण्डुलिपियों का पंजीकरण करना। –संरक्षण एवं परिरक्षण: भारत में विभिन्न संग्रहों में पांडुलिपियों का वैज्ञानिक संरक्षण एवं निवारक परिरक्षण। –डिजिटलीकरण: व्यापक पहुंच के लिए राष्ट्रीय डिजिटल पांडुलिपि पुस्तकालय बनाने हेतु पांडुलिपियों का बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण। –प्रकाशन और अनुसंधान: विद्वत्तापूर्ण अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए दुर्लभ और अप्रकाशित पांडुलिपियों का संपादन, अनुवाद और प्रकाशन। –क्षमता निर्माण: विशेषज्ञता निर्माण के लिए पांडुलिपि विज्ञान, पुराविज्ञान और संरक्षण में प्रशिक्षण कार्यक्रमों का आयोजन करना। –आउटरीच और जागरूकता: पांडुलिपि विरासत के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रदर्शनियों, सेमिनारों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन करना। संस्थाओं के साथ सहयोग: पाण्डुलिपि अनुसंधान और संरक्षण प्रयासों के लिए भारत में शैक्षणिक संस्थाओं और उद्योग जगत के अग्रणी लोगों के साथ सहयोग करना। राष्ट्रीय पाण्डुलिपि मिशन ने उत्तर प्रदेश सहित भारत की पाण्डुलिपि विरासत के संरक्षण, दस्तावेजीकरण और प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। –सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी, पाण्डुलिपि अनुसंधान, दस्तावेजीकरण और संरक्षण में प्रमुख भागीदार रहा है। –राज्य के प्रतिष्ठित संस्थानों में पाण्डुलिपि संसाधन केन्द्र (एमआरसी) और पाण्डुलिपि संरक्षण केन्द्र (एमसीसी) स्थापित किए गए हैं। –अब तक पूरे भारत में 5.2 मिलियन से अधिक पांडुलिपियों का दस्तावेजीकरण किया जा चुका है, जिनमें उत्तर प्रदेश की भी काफी संख्या शामिल है। –मिशन ने उत्तर प्रदेश में विद्वानों और अभिलेखपालों को पांडुलिपि संरक्षण और प्रतिलेखन में प्रशिक्षित करने के लिए कई क्षमता निर्माण कार्यक्रम और कार्यशालाएं आयोजित की हैं। राज्य के विभिन्न पुस्तकालयों से दुर्लभ संस्कृत, फ़ारसी और अरबी पांडुलिपियों को संरक्षित करने और बढ़ावा देने के लिए विशेष परियोजनाएं शुरू की गई हैं। सरकार राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन (जिसे अब ‘ज्ञान भारतम मिशन’ कहा जाता है) के माध्यम से भारत की अमूल्य पांडुलिपि विरासत की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है, साथ ही इसकी व्यापक पहुंच और अकादमिक एकीकरण सुनिश्चित करती है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के माध्यम से, पांडुलिपियों को डिजिटल बनाने और उन्हें ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से जनता के लिए सुलभ बनाने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए गए हैं, जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: –अब तक 3.5 करोड़ पृष्ठों वाली लगभग 3.5 लाख पांडुलिपियों का डिजिटलीकरण किया जा चुका है। –वेब पोर्टल namami.gov.in पर 1,35,000 से अधिक पांडुलिपियां अपलोड की गई हैं, जिनमें से 76,000 पांडुलिपियां निःशुल्क सार्वजनिक उपयोग के लिए उपलब्ध हैं। –मिशन का लक्ष्य अगले पांच वर्षों में फोलियो को डिजिटल बनाना है। इसका उद्देश्य दुर्लभ और नाजुक पांडुलिपियों पर ध्यान केंद्रित करना है ताकि उनका दीर्घकालिक संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके। सरकार का लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत की पांडुलिपि विरासत को न केवल संरक्षित किया जाए बल्कि अकादमिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक शोध के लिए भी सक्रिय रूप से उपयोग किया जाए। ‘ज्ञान भारतम मिशन’ के माध्यम से, सरकार ने भारत की पांडुलिपि विरासत तक जनता की पहुंच बढ़ाने के लिए एक विस्तार योजना तैयार की है। अन्य बातों के साथ-साथ प्रमुख उपायों में शामिल हैं: –पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण और प्रसार को बढ़ाने के लिए शैक्षणिक संस्थानों, निजी संग्रहकर्ताओं और अनुसंधान संगठनों के साथ काम करना। –पांडुलिपियों के अनुसंधान और अध्ययन को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालयों के साथ सहयोग। –विद्वानों और आम जनता को जोड़ने के लिए नियमित प्रदर्शनियों, कार्यशालाओं और पांडुलिपि उत्सवों का आयोजन करना। पांडुलिपि वैज्ञानिकों की नई पीढ़ी का एक समूह तैयार करना।

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