2025-05-01 21:45:18
हमीरपुर में राजस्व विभाग से जुड़ी बड़ी अनियमितता का खुलासा हुआ है। डीएम बंगले से सटी 58.14 एकड़ बेशकीमती कृषि भूमि को अकृषिक भूमि दर्शाने और निजी पक्षकारों को लाभ पहुंचाने के लिए अभिलेखों में की गई हेराफेरी के मामले में एसडीएम सदर ने बड़ी कार्रवाई की है। इस गंभीर प्रकरण में तत्कालीन एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार, लेखपाल सहित कुल 13 लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। यह मामला लंबे समय से हाईकोर्ट में विचाराधीन है। डीएम ने जांच समिति का गठन किया था जानकारी के मुताबिक, डीएम आवास के पास मेरापुर डांडा की 51.89 एकड़ और भिलावां डांडा की 6.25 एकड़ कृषि भूमि को लेकर वर्षों से कानूनी लड़ाई चल रही है। विपक्षियों की ओर से बार-बार दावे किए जा रहे थे, लेकिन कोर्ट में सरकारी पक्ष की ओर से दस्तावेजों की कमजोर पैरवी के चलते मामला लगातार कमजोर होता जा रहा था। इसे गंभीरता से लेते हुए जिलाधिकारी ने अक्टूबर 2024 में एक जांच समिति का गठन किया था। रिकॉर्ड उपलब्ध होने के बावजूद कोर्ट में पेश नहीं किए जांच में सामने आया कि रिकॉर्ड उपलब्ध होने के बावजूद कोर्ट में पेश नहीं किए गए। साथ ही अभिलेखों में छेड़छाड़ कर जमीन को अकृषिक दिखाने और विपक्षियों को अनुचित लाभ पहुंचाने की कोशिश की गई। इस कृत्य में 2004 से 2007 तक सदर तहसील में तैनात रहे तत्कालीन एसडीएम विजय कुमार गुप्ता, तहसीलदार, नायब तहसीलदार जैनेंद्र सिंह और सदर लेखपाल राजकिशोर की भूमिका संदिग्ध पाई गई। संबंधित अधिकारियों समेत अन्य नौ पर केस एसडीएम सदर शुक्रमा प्रसाद विश्वकर्मा ने 26 अप्रैल 2025 को कोतवाली में इस मामले की विधिवत तहरीर दी, जिसके आधार पर पुलिस ने संबंधित अधिकारियों समेत अन्य नौ लोगों पर मुकदमा दर्ज किया है। नामजद अभियुक्तों में मुकदमे में पैरवी कर रहे रमेश कुमार सिंघल, जानकीशरण सिंघल, राधारमण सिंघल (निवासी स्वरूपनगर, कानपुर), प्रकाश मोहन सिंघल (निवासी तिलकनगर पूर्वी, कानपुर), सूर्यनारायण (निवासी बनारस), विवेक कुमार (लखनऊ), विशाल सिंघल, हिमांशु सिंघल और आनंदेश्वर अग्रवाल (निवासी खजांची मोहल्ला, रमेड़ी) शामिल हैं। जमीन घोटाले मामले में हुई कार्यवाही करोड़ो रुपयों की सरकारी जमीन की पैरवी मे अभिलेखों मे गड़बड़ी करने के मामले मे तत्कालीन सदर लेखपाल राजकिशोर को जिलाधिकारी के आदेश के बाद निलंबित किया गया था। आरोपी उपजिलाधिकारी ने जिलाधिकारी बंगले सहित 58.14 एकड़ की भूमि पर तत्कालीन अधिकारियों ने विपक्षियों को फायदा पहुंचाने के लिए अभिलेखों से की छेड़छाड़ थी।