2025-04-28 20:17:12
अक्षय तृतीया पर भगवान विष्णु के अवतार कहे जाने वाले भगवान परशुराम का भी प्राकट्य हुआ था। इसलिए वैशाख मास की तृतीया पर परशुराम जयंती भी मनाई जाती है। परशुरामजी को स्वभाव से बहुत ही क्रोधी माना जाता था। कहा जाता था कि उनके अंदर ब्राह्मणों से ज्यादा क्षत्रियों के गुण थे। ह्यपरशु प्रतीक है पराक्रम का। राम पर्याय है सत्य सनातन का। इस प्रकार परशुराम का अर्थ हुआ पराक्रम के कारक और सत्य के धारक। शास्त्रोक्त मान्यता तो यह है कि परशुराम भगवान विष्णु के छठे अवतार हैं, अतः उनमें आपादमस्तक विष्णु ही प्रतिबिंबित होते हैं, परंतु मेरी मौलिक और विनम्न व्याख्या यह है कि परशु में भगवान शिव समाहित हैं और राम में भगवान विष्णु। इसलिए परशुराम अवतार भले ही विष्णु के हों, किंतु व्यवहार में समन्वित स्वरूप शिव और विष्णु का है। इसलिए मेरे मत में परशुराम दरअसल शिवहरि हैं। परशु प्राप्त किया गया शिव से। शिव संहार के देवता हैं। परशु संहारक है, क्योंकि परशु शस्त्र है। राम प्रतीक हैं विष्णु के। विष्णु पोषण के देवता हैं अर्थात राम यानी पोषण/रक्षण का शास्त्र। शस्त्र से ध्वनित होती है शक्ति। शास्त्र से प्रतिबिंबित होती है शांति। शस्त्र की शक्ति यानी संहार। शास्त्र की शांति अर्थात संस्कार। मेरे मत में परशुराम दरअसल परशु के रूप में शस्त्र और राम के रूप में शास्त्र का प्रतीक हैं। एक वाक्य में कहूँ तो परशुराम शस्त्र और शास्त्र के समन्वय का नाम है, संतुलन जिसका पैगाम है। पिता जमदग्नि और माता रेणुका ने तो अपने पाँचवें पुत्र का नाम राम ही रखा था, लेकिन तपस्या के बल पर भगवान शिव को प्रसन्ना करके उनके दिव्य अस्त्र परशु (फरसा या कुठार) प्राप्त करने के कारण वे राम से परशुराम हो गए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम जी कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्णं को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होनें कर्ण को श्राप भी दिया था। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्रर भी लिखा। इच्छित फल प्रदाता परशुराम गायत्री है-ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नः परशुरामः प्रचोदयात्। वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी- जागृति अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यों में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है। अक्षय तृतीया को जन्मे हैं, इसलिए परशुराम की शस्त्रशक्ति भी अक्षय है और शास्त्र संपदा भी अनंत है। विश्वकर्मा के अभिमंत्रित दो दिव्य धनुषों की प्रत्यंचा पर केवल परशुराम ही बाण चढ़ा सकते थे। यह उनकी अक्षय शक्ति का प्रतीक था, यानी शस्त्रशक्ति का। पिता जमदग्नि की आज्ञा से अपनी माता रेणुका का उन्होंने वध किया। यह पढ़कर, सुनकर हम अचकचा जाते हैं, अनमने हो जाते हैं, लेकिन इसके मूल में छिपे रहस्य को सत्य को जानने की कोशिश नहीं करते। यह तो स्वाभाविक बात है कि कोई भी पुत्र अपने पिता के आदेश पर अपनी माता का वध नहीं करेगा। फिर परशुराम ने ऐसा क्यों किया इस प्रश्न का उत्तर हमें परशुराम के परशु में नहीं परशुराम के राम में मिलता है। आलेख के आरंभ में ही राम की व्याख्या करते हुए कहा जा चुका है कि राम पर्याय है सत्य सनातन का। सत्य का अर्थ है सदा नैतिक। सत्य का अभिप्राय है दिव्यता। सत्य का आशय है सतत् सात्विक सत्ता। परशुराम दरअसल राम के रूप में सत्य के संस्करण हैं, इसलिए नैतिक-युक्ति का अवतरण हैं। यह परशुराम का तेज, ओज और शौर्य ही था कि कार्तवीर्य सहस्रार्जुन का वध करके उन्होंने अराजकता समाप्त की तथा नैतिकता और न्याय का ध्वजारोहण किया। परशुराम का क्रोध मेरे मत में रचनात्मक क्रोध है। जैसे माता अपने शिशु को क्रोध में थप्पड़ लगाती है, लेकिन रोता हुआ शिशु उसी माँ के कंधे पर आराम से सो जाता है, क्योंकि वह जानता है कि उसकी माँ का क्रोध रचनात्मक है। मेरा यह भी मत है कि परशुराम ने अन्याय का संहार और न्याय का सृजन किया। आलेख: डॉ राकेश वशिष्ठ, वरिष्ठ पत्रकार एवं संपादकीय लेखक