देश के स्वतंत्रता संग्राम और धर्मनिरपेक्ष संविधान में जमीयत उलमाएहिंद की नेतृत्वकारी भूमिका

यह वह भारत नहीं है जिसका सपना हमारे पूर्वजों ने देखा था आज़ादी क्या है? हमसे पूछें कि हमने क्या कुर्बानियां दी है: मौलाना अरशद मदनी
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2025-01-30 21:05:51

यह गणतंत्र दिवस बेहद खास है क्योंकि संविधान लागू हुए 75 साल हो गए हैं। इस ऐतिहासिक मौके पर में देश के नागरिकों को 75वें गणतंत्र दिवस की बधाई देता हूँ। देश की आज़ादी में हमारे पूर्वजों ने कुर्बानी देते हुए जिस भारत का सपना देखा था वह भारत बिल्कुल नहीं है। हमारे बुजुर्गों ने एक ऐसे भारत का सपना देखा था। जिसमें रहने वाले सभी लोग हमेशा की तरह जाति, समुदाय और धर्म से ऊपर उठकर शांति और सद्भाव से रहे सकें। आजादी के लिए मुजाहिदीन की कुर्बानियों का उलेमा इकराम के जिक्र के बिना देश का कोई भी इतिहास पूरा नहीं हो सकता है। भारत की आजादी का आंदोलन सबसे पहले उलमा और मुस्लिमों ने ही शुरु किया था। भारत में उलेमा इकराम ने लोगो को गुलामी का तब एहसास कराया था जब इसके बारे में कोई सोच भी नहीं रहा था। भारत में सबसे पहले अग्रेजों के खिलाफ बिगुल को उलेमाओं ने ही फूंका था। जान बूझकर देश के वास्तविक इतिहास को नजर अंदाज करते हैं जबकि हमारे बुजुर्ग ही थे जिन्होंने अत्याचारी ब्रिटिश शासकों के खिलाफ विद्रोह किया था। जिन्होंने काबुल में सरकार की स्थापना की थी और एक हिंदू राजा महेंद्र प्रताप सिंह को सरकार का अध्यक्ष बनाया था क्योंकि हमारे बुजुर्ग धर्म से ऊपर एकता और मानवता के आधार पर इस देश को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने के पक्षधर थे। वे अच्छी तरह से जानते थे कि हिंदू और मुस्लिमों को एक साथ लाए बिना आज़ादी का सपना पूरा नहीं हो सकता है। बाद में जब हज़रत शेखुल हिंद माल्टा की जेल से बाहर आए तो उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि देश की आजादी का मिशन तन्हा मुस्लिम के प्रयासों से हासिल नहीं किया जा सकता बल्कि देश को अंग्रेजों के चंगुल से निकालना है तो आजादी के आंदोलन को हिंदू मुस्लिम आंदोलन बनाना होगा और अगर सिख बिरादरी के जांबाज एक साथ आ जाए तो वतन की आजादी की राह और भी आसान हो जाएगी। हज़रत शेख अल हिंद की ये सुनहरी बाते किताबों में दर्ज हैं। हमारे पूर्वज हिंदू मुस्लिम एकता के रास्ते पर आगे बढ़े और देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद कराया। देश आजाद हो गया बदकिस्मती से यह हुआ कि देश का बंटवारा भी हो गया और ये बंटवारा विनाश का कारण बना और ये किसी विशेष राष्ट्र के लिए नहीं बल्कि सभी हिंदुओं व मुस्लिमों के लिए था यदि विभाजन नहीं हुआ होता तो ये परिस्थित बिल्कुल न होती अगर यह तीनों देश एक होते ओर बड़ी शक्ति होती तो दुनिया की कोई भी ताकत हमारी तरफ आंख उठाकर देखने की हिम्मत न कर पाती। इस लंबे स्वतंत्रता संग्राम के बाद धर्मनिरपेक्ष संविधान को बनवाने में विशेष भूमिका अदा करने वाली देश का सक्रिय और गतिशील संगठन जमीयत उलमा-ए-हिंद का नेतृत्वकारी भूमिका का किरदार हर दृष्टि से ऐतिहासिक है। यही कारण था कि जैसे देश की आजादी की संभावनाएँ रोशन होती गई हमारे पूर्वजों ने उस समय के शीर्ष नेताओं जैसे मोतीलाल नेहरु, महात्मा गांधी व जवाहरलाल नेहरु आदि से यही वायदा लिया जो आजादी के बाद देश का संविधान एक धर्मनिरपेक्ष संविधान बनेगा और कांग्रेस नेतृत्व ये आश्वासन भी देता रहा है कि मुस्लिमों की मस्जिदें, मदरसे, मुस्लिम इमामबाड़े, मुस्लिम कब्रिस्तान, मुसलमानों की ज़बान, मुस्लिम संस्कृति व मुस्लिम सभ्यता ये सब चीजें सुरक्षित रहेंगी यह अजीब संयोग है कि देश आजाद हुआ और हमारे पूर्वजों के सिद्धांत के विपरीत इसका विभाजन हुआ या विभाजन कर दिया गया तो बहुत सी आवाजें उठने लगी के जब इस्लाम के नाम पर हिस्सा दे दिया तो इस देश को हिंदू स्टेट बनना ओर देश का संविधान धर्मनिरपेक्ष ना होकर न होकर हिंदू स्टेट होना चाहिए। ये हमारे पूर्वजों की दूर अंदेशी थी कि देश की आज़ादी से पहले ही कांग्रेस नेतृत्व से धर्म निरपेक्ष संविधान की रचना के लिए न सिर्फ दबाव डाला बल्कि इसके लिए भी वादा भी कराया। चुनांचे वो इस बात पर अड़ गए। उन्होंने कांग्रेस नेताओं से कहा कि वे हमसे किए गए वादे को पूरा करें अगर देश का विभाजन हुआ हे तो आप लोगो ने हस्ताक्षर किये हैं हमने नहीं इसलिए देश का संविधान धर्म निरपेक्ष होगा हालांकि इस सच्चाई को भी स्वीकार करना होगा कि उस समय का कांग्रेस नेतृत्व ईमानदार था। उसने अपना वादा निभाया और हिन्दू स्टेट की मांग करने वालों के दबाव में नहीं आया। कांग्रेस नेतृत्व ने जमीयत उलमा-ए-हिंद की मांग को स्वीकार किया ओर देश का संविधान धर्म निरपेक्ष एवं लोकतांत्रिक बना। यदि उस समय के हमारे बुजुर्गों ने इतनी दूर अंदेशी से काम न किया होता और थोड़ा सा भी कमजोर हो जाते तो आज ये देश एक लोकतांत्रिक देश नहीं बल्कि एक हिंदू राज्य होता और हो सकता है कि देश में मुस्लिमों समेत अनेक धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक अपने धार्मिक अधिकारों से वंचित रह जाते लेकिन दुर्भाग्य से वर्तमान सरकार वक्फ संशोधन विधेयक लाकर इन मस्जिदों, कब्रों, कब्रिस्तानों, इमामबाड़ों व वक्फ संपत्तियों को हड़पना चाहती है। आजादी के समय भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान और संविधान में सुरक्षा का वादा किया गया था। आज जो लोग हमारी देशभक्ति पर सवाल उठाते हैं उन्हें हमें बताना चाहिए कि उनके लोगों ने देश की आजादी के लिए क्या किया? उन्होंने कौन सी फली तोड़ दी? पहले हमने देश की आजादी के लिए बलिदान दिया था लेकिन अब ऐसा लगता है कि हमें इस आजादी की रक्षा के लिए बलिदान देना होगा यदि हम ऐसा नहीं करते हैं तो वह दिन दूर नहीं जब अपने अधिकार के लिए आवाज उठाने को भी गंभीर अपराध माना जाएगा। जमीयत उलमा ए हिंद का अतीत और वर्तमान गवाह है कि इसने देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए हमेशा सकारात्मक प्रयास किए हैं। जमीयत उलमा-ए-हिंद के विद्वानों के प्रयासों और दूरदर्शिता का परिणाम है। उन्होंने कहा कि हमें देश के संविधान से प्यार है क्योंकि ये देश की एकता और अखंडता का दस्तावेज है जिसके प्रकाश में हम देश के भविष्य को आकार देने के साथ इससे एक खुशहाल ओर पूरी दुनिया के लिए एक मिसाली‌ देश बना सकते हैं। संविधान लोकतंत्र की बुनियाद का वो पत्थर है अगर इसको हिला दिया जाये तो जिस पर लोकतंत्र की ये महान इमारत खड़ी नहीं रह पाएगी इसीलिए हम अक्सर कहते हैं कि संविधान बचेगा तो देश बचेगा। देश में जिस तरह की एक तरफा सियासत हो रही है उसने संविधान के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान लगा दिया है।‌ जाहिर तौर पर संविधान की कसमें खाई जाती हैं। उसका कसीदा भी पढ़ा जाता है लेकिन सच तो ये है कि देश के अल्पसंख्यक खासकर मुस्लिमों को खुलेआम नए हथकंडों से परेशान किया जा रहा है।‌ ऐसे में हमारा ही नहीं देश के सभी नागरिकों का जो देश के संविधान और लोकतंत्र में विश्वास रखते हैं उनकी प्राथमिक जिम्मेदारी है कि वे इसके लिए आगे आएं। संविधान बचाओ क्योंकि अगर संविधान की सर्वोच्चता ख़त्म हो गई तो लोकतंत्र बच नहीं पाएगा। सामाजिक और सामाजिक स्थिति के ईमानदार विश्लेषण से आप दृढ़ता से महसूस करेंगे कि हर स्तर पर धार्मिक नफरत और कट्टरवाद को बढ़ाया जा रहा है।‌ एकता और एकजुटता को नष्ट करने के लिए दिलों में नफरत के बीज बोए जा रहे हैं। दिन-ब-दिन परेशान करने के उद्देश्य से कानून बनाये जा रहे हैं। न्याय का गला घोंटा जा रहा है और संविधान की सर्वोच्चता को समाप्त कर उसकी जगह तानाशाही रवैया अपनाकर लोगों में भय और आतंक फैलाया जा रहा है। आज पूरे विश्व में जिस आजादी और लोकतंत्र की लड़ाई जोर शोर से लड़ी जा रही है वह हमारे बुजुर्गों और पूर्वजों के लंबे संघर्ष और बलिदान का परिणाम है। शांति, सद्भाव, आपसी भाईचारा और प्रेम की सदियों पुरानी परंपरा का नतीजा है। किसी भी सभ्य और विकसित समाज के लिए न्याय और निष्पक्षता सबसे बड़ा पैमाना है।‌ हर शासक का मुख्य कर्तव्य अपनी प्रजा यानी जनता को न्याय दिलाना है लेकिन दुर्भाग्य से सांप्रदायिक लोगों की पक्षपातपूर्ण मानसिकता जानबूझकर एक विशेष संप्रदाय के लिए दीवार बनाने में लगी है और साजिश रच रही है। युवाओं को रचनात्मक कार्यों में लगाने के बजाय उन्हें विनाश और नफरत के औजार के रुप में इस्तेमाल किया जा रहा है। पक्षपाती मीडिया झूठ और उत्तेजना फैलाने का सबसे बड़ा स्रोत बन गया है। ये कितना हास्यास्पद है कि एक तरफ संविधान की शपथ ली जा रही है दूसरी तरफ संविधान के मार्गदर्शक सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाई जा रही है। एक खास संप्रदाय के साथ ऐसा व्यवहार किया जा रहा है जैसे कि उसके पास अब कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है। देश के अल्पसंख्यकों की संतुष्टी भी शासक की जिम्मेदारी है लेकिन हो ये रहा है कि देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर लगातार हमले हो रहे हैं।‌ मदरसों पर प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं। धार्मिक स्वतंत्रता खत्म की जा रही है। खाने-पीने पर पाबंदियां लगाई जा रही हैं।‌ यहां तक कि हमसे जीने का अधिकार भी छीना जा रहा है और यह सब तब हो रहा है जब धर्मनिरपेक्ष संविधान आज भी अपने मूल स्वरूप में मौजूद है।‌ जिसमें देश के अल्पसंख्यकों को विशेष अधिकार ही नहीं बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता की भी गारंटी दी गई है यही वह धर्मनिरपेक्ष संविधान है जिसके लिए हमारे बुजुर्गों ने देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए डेढ़ सौ साल से कुर्बानी देते रहे हैं। दुख की बात ये है कि खुद को सेक्युलर कहने वाले कुछ राजनीतिक दल सत्ता हासिल करने के लिए पर्दे के पीछे से सांप्रदायिक ताकतों का इस्तेमाल कर रहे हैं जो किसी भी तरह से मजबूत लोकतंत्र के लिए शुभ नहीं है।

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