युवाओं को ऑनलाइन गेमिंग की आड़ में जुए के दलदल में धकेलती सेलिब्रिटियों के विज्ञापन

क्रिकेटर्स और नेताओं की सार्वजनिक निंदा और इन तमाम का सार्वजनिक बहिष्कार करने की आवश्यकता है
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2025-04-13 21:01:43

उन सेलिब्रेटिज, क्रिकेटर्स और नेताओं की सार्वजनिक निंदा और इन तमाम का सार्वजनिक बहिष्कार करने की आवश्यकता है जो इन बैटिंग एप्स और गेमिंग एप्स को प्रमोट कर रहे है। इन विज्ञापनों से खुद कमाने के लिए ये सेलिब्रिटिज युवाओं को जुए के दलदल में धकेलने में लगे हुए हैं बड़ी से बड़ी सेलिब्रिटी लुभावने विज्ञापनों के जरिए युवा वर्ग को गुमराह कर भ्रामक जानकारी ओर वादे कर युवा वर्ग को जुए के दलदल में धकेल रही है। ऑनलाइन गेमिंग के कारण लोगों के बर्बाद होने और आत्महत्या करने की खबरें पूरे देश से आती रहती है भारत में लगभग दो-तिहाई सबसे ज्यादा आबादी युवाओं की है और युवा पीढी इतनी डिजिटल फ्रेंडली है कि शौक-शौक में खेलते हुए वह ऑनलाइन गेम के दलदल में कब फंस जाती है, पता ही नहीं चलता यहां तक कि 10-15 आयु वर्ग के बच्चों को भी इसका नशा हो गया है रातों-रात मालामाल होने के चक्कर में ये फंस जाते हैं, जिससे निकलना आसान नहीं है लाॅटरी की तरह ऑनलाइन गेमिंग पर भी पूर्ण प्रतिबंध लगाने के लिये समाज के विभिन्न क्षेत्र के लोगों, संस्थाओं NGO आदि को एक मंच पर आकर इसके खिलाफ अभियान चलाने की आवश्यकता है। एक अनुमान के मुताबिक भारत में करीब इस साल ऑनलाइन सट्टा का व्यापार 12 लाख करोड़ का हो गया है और ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री हर साल 30 प्रतिषत की दर से फल-फूल रही है। देश में हर साल हजारों परिवार बर्बाद हो जाते हैं। अकेले तमिलनाडु में पिछले वर्ष में 40 लोग आत्महत्या कर चुके हैं। पहले जो लोग लॉटरी और जुए की लत से बर्बाद होते थे, वही काम आज ऑनलाइन गेमिंग की लत कर रही है, जिसे स्मार्ट, एजुकेटेड और अप टू डेट युवा वर्ग खेलता है। कई राज्य कानूनों में सट्टेबाजी और जुए की गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा हुआ है, वहीं स्किल से जुड़े कुछ गेम्स को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपने कई फैसलों में संवैधानिक रूप से जायज माना गया है। इस कानूनी परिदृश्य में, भारत में ऑनलाइन गेमिंग उद्योग ने हाल के दिनों में भारी तरक्की देखी है। हालांकि, इस मौजूदा कानूनी परिदृश्य के बावजूद बीते कुछ वर्षों में इस उद्योग से विभिन्न सामाजिक और आर्थिक चिंताएं उभरकर सामने आई हैं। बच्चों और वयस्कों के बीच लत से जुड़ी चिंताओं के मद्देनजर यूज़र को होने वाले नुकसान, खासकर ऐसी लत के कारण वयस्क यूजर्स को हुए वित्तीय नुकसान हिंसक या अनुचित सामग्री के चित्रण के लिहाज से कॉन्टेंट से जुड़ी चिंताएं, क्योंकि बच्चों को ऐसी सामग्री या रियल मनी गेम्स तक पहुंचने से रोकने के लिए ठोस उपाय नहीं हैं जुए और सट्टेबाजी की विदेशी वेबसाइटों के विज्ञापन भारतीय यूजर्स को निशाना बना रहे हैं यूजर्स के पैसे की सुरक्षा के लिए सुरक्षा उपायों की कमी है और किसी सख्त केवाईसी तंत्र के अभाव में मनी लॉन्ड्रिंग संबंधी चिंताएं हैं। ऑनलाइन जुए की लत– जब किसी इंटरनेट लिंक, वेबसाइट या मोबाइल ऐप के ज़रिए पैसे दांव पर लगाए जाते हैं तो इसे ऑनलाइन गैम्बलिंग या ऑनलाइन जुआ कहते हैं इसमें पोकर, ब्लैकजैक, स्लॉट मशीन और कई अन्य तरह की सट्टेबाज़ी शामिल हैं जब कोई ऑनलाइन जुआ खेलता है तो आपके सामने एक कंप्यूटर प्रोग्राम या एक व्यक्ति हो सकता है नए यूज़र्स को ऑनलाइन जुए की ओर आकर्षित करने के लिए शुरू शुरू में उन्हें मुफ़्त गेम खेलने की पेशकश की जाती है और सोशल मीडिया के ज़रिए उन्हें टारगेट किया जाता है। ऐप को इस तरह से डिज़ाइन किया जाता है कि जुआ खेलने वाले लंबे समय तक खेलते रहें वो खेल के दौरान इससे पूरी तरह चिपके रहते हैं। जब फ़्री क्रेडिट ख़त्म हो जाते हैं तब इसमें अपने पैसे लगाने पड़ते हैं। जब आप पहली बार ये जुआ खेलते हैं तो इसके बाद आपको इससे जुड़े विज्ञापन मिलने लगते हैं जो आपको वापस गेमिंग वेबसाइट पर आने के लिए आकर्षित करते हैं। एक्सपर्ट क्या कहते हैं? डिजिटल एक्सपर्ट कहते हैं कि युवा पीढ़ी पारंपरिक जुए की तुलना में ऑनलाइन जुए की ओर बड़ी तेज़ी से आकर्षित होती है। युवा पीढ़ी को जिस तरह से डिजिटल दुनिया की जानकारी है वो इस तरह के गेम्स से आसानी से जुड़ जाते हैं जिसकी भनक उनके माता-पिता को नहीं लगती है। एक ऑनलाइन जुए से जुड़ने के लिए आपको घर के बाहर अपने क़दम निकालने की ज़रूरत तक नहीं पड़ती क्योंकि सब कुछ ऑनलाइन ही तो है इस पूरी प्रक्रिया में आपको किसी के साथ व्यक्तिगत जुड़ाव या आमने- सामने खेल में शामिल होने की ज़रूरत नहीं पड़ती लिहाजा जब आप ऑनलाइन जुआ खेल रहे होते हैं तो आपको कोई नहीं देखता है चूंकि यह पूरी तरह से ऑनलाइन जुआ है तो इसमें पैसे भी ऑनलाइन ही लगाने होते हैं। ऑनलाइन जुए की लत का ज़िंदगी पर असर– कई लोग सिर्फ़ अपने मनोरंजन के लिए ऑनलाइन जुआ खेलना शुरू करते हैं, लेकिन जल्द ही उन्हें इसकी लत लग जाती है धीरे धीरे इसका असर उनकी ज़िंदगी पर पड़ने लगता है और कुछ लोगों पर इसका प्रतिकूल असर इतना होता है कि वो कंगाल तक हो जाते हैं। वे न केवल अपनी जमा पूंजी खोते हैं बल्कि अपना पूरा जीवन भी गंवा देते हैं क्योंकि कइयों ने इससे परेशान हो कर अपनी ज़िंदगी ही ख़त्म कर दी है। दूसरी तरफ़, एक शोध के मुताबिक, जैसे जैसे लोगों के लिए मोबाइल फ़ोन रखना आसान हो रहा है वैसे ही वो इंटरनेट का भी बहुत तेज़ी से इस्तेमाल कर रहे हैं। जो लोग ऑनलाइन जुए में लगे हैं वो इसकी जानकारी बग़ैर किसी को दिए ऐसा कर रहे होते हैं। ख़ास कर जब इसका ख़राब असर उन पर पड़ता है तब वो इसे किसी अन्य व्यक्ति से साझा तक नहीं करते। ऑनलाइन गेमिंग को प्रमोट करने वाली सेलिब्रिटी की हो सार्वजनिक निंदा और बहिष्कार– 2016 में जहां फैंटेसी स्पोर्ट्स खलेने वालों की संख्या 20 लाख थी, वह अब 2024 में 24 करोड़ पहुंच गई है और एक अनुमान के अनुसार 2027 तक यह संख्या भारत की जनसंख्या के एक तिहाई यानी कि 50 करोड़ हो जाएगी। मोबाइल के Android & IOS पर कई बैटिंग एप्स हैं, जिन पर लोग लाखों-करोड़ों रूपए लुटा रहे हैं। केंद्र सरकार ने 15 दिसंबर, 2023 तक 581 एप्प को ब्लॉक किया, जिनमें से कुल 174 सट्टेबाजी और जुए वाला एप्स थे, जिनमें पबजी, गरेना, फ्री फायर भी थे। केंद्र सरकार 2022 में ऑनलाइन गेमिंग रेगुलराइजेशन बिल लेकर आई थी, जो अभी तक लंबित है। उन सेलिब्रेटिज, क्रिकेटर्स और नेताओं की सार्वजनिक निंदा और इन तमाम का सार्वजनिक बहिष्कार करने की आवश्यकता है जो इन बैटिंग एप्स और गेमिंग एप्स को प्रमोट कर रहे है। इन विज्ञापनों से खुद कमाने के लिए ये सेलिब्रिटिज युवाओं को जुए के दलदल में धकेलने में लगे हुए हैं बड़ी से बड़ी सेलिब्रिटी लुभावने विज्ञापनों के जरिए युवा वर्ग को गुमराह कर भ्रामक जानकारी ओर वादे कर युवा वर्ग को जुए के दलदल में धकेल रही है। दूसरी तरफ आम जनता है जो उधार लेकर अपने पास रखी जमापूंजी भी लुटा देती है। ऑनलाइन गेमिंग एक सॉफ्टवेयर राइडर गेम है। जो भी पहली बार इस गेम को खेलता है, उसका डाटा सॉफ्टवेयर कंपनी के पास चला जाता है, जो पहले व्यक्ति को जीताते हैं। जैसे- जैसे वो जीतता है, उसे इसकी लत लग जाती है, पर बाद में वह हारने लगता है, इसमें उसकी कोशिश यह होती है कि इस बार नहीं तो अगली बार जीत जाऊंगा, इसी लालच में वह ऑनलाइन गेमिंग के दलदल में फंस जाता है। जितना वह हारता है उसका 82 प्रतिशत कंपनी खाते में जाता है और 18 प्रतिशत उनका खर्च होता है, जिस पर 18 प्रतिशत जीएसटी सरकार ने लगाया हुआ है। ऑनलाइन गेमिंग एक ऐसी बुराई है, जिस पर सरकार को कानून बनाकर रोक लगानी चाहिए।

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