2025-01-26 23:00:56
नई दिल्ली : विश्व कुष्ठ रोग दिवस के अवसर पर आज मुख्य आयुक्त दिव्यांगजन (सीसीपीडी) के कार्यालय ने एक वर्चुअल संगोष्ठी का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में विभिन्न सरकारी अधिकारियों, गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओएस ) और विशेषज्ञों ने भाग लिया। इस अवसर पर दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी ) के सचिव एवं मुख्य आयुक्त दिव्यांगजन (सीसीपीडी) श्री राजेश अग्रवाल मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। ,कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि आयुक्तश्री एस. गोविंदराज थे। पैनल में डॉ. एस. शिवसुब्रमण्यम (वरिष्ठ वैज्ञानिक), डॉ. शिवकुमार (कुष्ठ रोग विशेषज्ञ), सुश्री निकिता सारा (हेड ऑफ एडवोकेसी एंड कम्युनिकेशन, द लेप्रोसी मिशन ट्रस्ट इंडिया) और डॉ. पी. नरसिम्हा राव (अंतर्राष्ट्रीय कुष्ठ रोग संघ के अध्यक्ष) शामिल थे। कार्यक्रम की शुरुआत में माधव साबले ने मराठी प्रार्थना गीत गाया, जिसका अनुवाद अंग्रेज़ी में श्री प्रवीण प्रकाश ने किया। श्री विकास त्रिवेदी (डीडीसी ) ने अथितियों का स्वागत किया। मुख्य अतिथि श्री राजेश अग्रवाल ने महाराष्ट्र के एक कुष्ठ कॉलोनी के अपने शुरुआती अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों को अपने ही परिवारों से भेदभाव का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कानूनी सुधारों की आवश्यकता और मामलों के शुरुआती पहचान के लिए सतर्कता पर बल दिया। साथ ही, उन्होंने इलाज के बाद पुनर्वास उपायों के महत्व को भी रेखांकित किया। सम्मानित अतिथि श्री एस. गोविंदराज ने कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक और भेदभाव को समाप्त करने के लिए सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने बताया कि भारत में अब भी 750 कुष्ठ कॉलोनियां हैं जो मुख्यधारा के समाज से अलग हैं। उन्होंने इस रोग से प्रभावित व्यक्तियों के सामने आने वाली कानूनी चुनौतियों को उजागर किया और समग्र समाधान की आवश्यकता पर जोर दिया। डॉ. एस. शिवसुब्रमण्यम ने कुष्ठ रोग पर व्यापक जानकारी देते हुए बताया कि विश्व के 53% कुष्ठ रोग के मामले भारत में पाए जाते हैं। उन्होंने समुदाय-आधारित पुनर्वास के महत्व को रेखांकित किया ताकि प्रभावित व्यक्तियों को भेदभाव से बचाया जा सके। डॉ. शिवकुमार ने कुष्ठ रोग के मौजूदा स्थिति पर चर्चा की और इसे सबसे कम संक्रामक रोगों में से एक बताया। उन्होंने कहा कि भारत के 700 से अधिक जिलों में से 125 जिलों में अभी भी बड़ी संख्या में इससे सम्बंधित मामले दर्ज किए जा रहे हैं। ये जिले 14 राज्यों में फैले हुए हैं, जिनमें छत्तीसगढ़ के 24 जिले सबसे अधिक प्रभावित हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत का लक्ष्य 2030 तक कुष्ठ रोग को समूल नष्ट करना है। सुश्री निकिता सारा ने पीड़ितों को समाज में पुनः शामिल करने के अपने अनुभव साझा किए। उन्होंने कहा कि अज्ञानता कुष्ठ रोग के खिलाफ सबसे बड़ी चुनौती है। यदि समय पर पहचान की जाए तो कुष्ठ रोग का इलाज सबसे आसान है। साथ ही, उन्होंने स्पष्ट किया कि यह न तो दिव्यांगता है और न ही कोई विकृति। कुष्ठ रोग से जुड़े कलंक को जागरूकता की कमी का परिणाम बताया। डॉ. पी. नरसिम्हा राव ने कुष्ठ रोग उन्मूलन में चिकित्सा पहलुओं और चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने इसे जैविक रूप से एक अलग रोग बताया और कहा कि यह विश्व के अधिकांश हिस्सों में इसके मरीज नहीं पाए जाते हैं, लेकिन ब्राजील, भारत और इंडोनेशिया जैसे देशों में अभी भी यह चिंता का विषय बना हुआ है। संगोष्ठी का समापन अधिक जागरूकता, समय पर पहचान और समग्र पुनर्वास प्रयासों के आह्वान के साथ हुआ, ताकि कुष्ठ रोग को समाप्त किया जा सके और इससे प्रभावित व्यक्तियों को सहायता प्रदान की जा सके।