भाजपा की रणनीति, विपक्ष के मुद्दे, क्या होगा चुनावी गणित

दुनिया भर में मोदी का डंका, अब यह डंका कितना बज रहा है और कितना नहीं, मैं इसमें नहीं जाने वाला, लेकिन ऐसा भाजपा का प्रचार तंत्र लगातार कह रहा है कि मोदी जी का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है।
News

2023-07-07 13:14:11

- के. पी. मलिक : इन दिनों देश में सिर्फ और सिर्फ चुनावी माहौल है। एक तरफ भाजपा के पास अपने कुछ ऐसे कामों को लेकर रणनीति है, जो उसने हिंदू वोटर्स को लुभाने के लिए किए हुए हैं। मसलन, राममंदिर, तीन तलाक, समान नागरिक संहिता (यूसीसी), दुनिया भर में मोदी का डंका, अब यह डंका कितना बज रहा है और कितना नहीं, मैं इसमें नहीं जाने वाला, लेकिन ऐसा भाजपा का प्रचार तंत्र लगातार कह रहा है कि मोदी जी का डंका पूरी दुनिया में बज रहा है। इसके अलावा वंदे भारत, जिसके नाम से करीब करीब हर महीने चलने वाली नई वंदे भारत ट्रेनों को हरी झंडी प्रधानमंत्री दिखाते हैं। इसके अलावा पुराने मुद्दे भी हैं, जो अब फीके पड़ चुके हैं। इनमें कुछ मुद्दे ऐसे भी हैं, जो कभी फीके नहीं पड़ते, जैसे पाकिस्तान, आतंकवाद, विकास की गुगली, देश भक्ति, हिंदू राष्ट्र, हिंदुओं की रक्षा-सुरक्षा बगैरा-बगैरा।

हालांकि इतने पर भी भाजपा को अब ये भी एहसास हो गया है कि उसका काम मुसलमानों के बगैर नहीं चलने वाला, क्योंकि हिंदू वोटर्स भी काफी बड़ी संख्या में भाजपा के खिलाफ हो चुके हैं। भले ही भाजपा ने कर्नाटक में अपनी हार की वजह मुसलमानों को बताया, लेकिन यह पूरा सच नहीं है, क्योंकि वहां 15 से 17 फीसदी मुसलमान हैं और भाजपा को अगर सारे हिंदुओं के वोट मिले होते, तो कांग्रेस किसी भी हाल में 5-6 से ज्यादा सीटें नहीं ला पाती, लेकिन उसने रिकॉर्ड जीत हासिल की। इसी को देखते हुए रूठे हुए हिंदू वोटर्स की भरपाई के लिए भाजपा ने पसमांदा मुसलमानों को रिझाने का पासा फेंक दिया है। दूसरी तरफ विपक्षी दलों के मुद्दे हैं, जिनमें बेरोजगारी, महंगाई, भुखमरी, अपराध, अव्यवस्था, किसानों के मुद्दे, कमेरे वर्ग के मुद्दे, पढ़े-लिखे युवाओं के मुद्दे, पुरानी पेंशन योजना, बढ़ता टैक्स, आत्महत्या, आधी आबादी की सुरक्षा यानि महिला सुरक्षा और दूसरे देश के कुछ मुद्दे हैं।

हालांकि विपक्षी पार्टियों के पास भी कुछ ऐसे मुद्दों की कमी है, जिनके हल होने की राह सदियों से लोग देख रहे हैं। जैसे पूरे देश में फ्री और एक शिक्षा, पूरे देश में फ्री इलाज, पूरे देश में बढ़ते अपराध और दंगों को रोकने की व्यवस्था, कुछ नदियों के सूखने से बचाने का मुद्दा, कुछ नदियों में हर साल बाढ़ आने से करोड़ों रुपए की खेती की बर्बादी रोकने की व्यवस्था, लाखों हेक्टेयर जमीन पर सूखे की वजह से अच्छी खेती न होने की व्यवस्था बगैरा-बगैरा।

बहरहाल, भाजपा के लिए राममंदिर, यूसीसी, पसमांदा मुस्लिम जैसे मुद्दे 2024 में फायदेमंद हो सकते हैं और इसके लिए भाजपा की पिच तैयार भी है। भाजपा इन मुद्दों को लेकर सभी चुनाव जीतने के लिए मैदान में मोदी जी समेत पूरे तंत्र के साथ कूद पड़ी है। हो सकता है कि आने वाले समय में वो कोई नया मुद्दा या देश भक्ति का नया मामला लेकर सामने आ जाए और लोगों को अपनी ओर खींच ले, लेकिन फिलहाल उसके आगे दर्जनों ऐसी चुनौतियां हैं, जिनके चलते भाजपा के सुपर लीडरों के पसीने छूटे हुए हैं। इसीलिए भाजपा इन पार्टियों को बार-बार मोदी विरोधी ताकतें बता रही हैं।

महागठबंधन की बड़ी कमजोरी ये है कि उसमें शामिल विपक्षी पार्टियों में सभी राज्य स्तरीय सूरमा हैं जो अपने-अपने गढ़ में किसी को घुसने नहीं देना चाहते। यह एक बड़ी वजह है विपक्ष के एकजुट न होने की, क्योंकि कोई भी छोटी पार्टी का नेता अपना बड़ा दिल दिखाकर यह नहीं कह रहा है कि वो अपनी सीमा को तोड़कर वह विपक्ष को मजबूती देगा। वो ये तो कह रहा है कि वो एकजुट है, लेकिन यूपीए का घटक बनकर कांग्रेस के पीछे चलने को तैयार नहीं है। चाहे वो उत्तर प्रदेश केशी मुख्य विपक्षी पार्टी समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव हों, चाहे बिहार की दो प्रमुख पार्टियों आरजेडी के मुखिया लालू प्रसाद यादव और उनके बेटे तेजस्वी यादव और जेडीयू के मुखिया नीतीश कुमार हों, चाहें पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी हों, चाहे दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल हों, या फिर चाहें दूसरे 11 दल हों, जो महागठबंधन में कांग्रेस के साथ दिख रहे हैं।

बीएसपी प्रमुख मायावती तो जैसे भाजपा को ही मौन समर्थन द रही हैं, इसलिए उनकी महागठबंदधन में जाने का सवाल ही नहीं है और संभावना भी नहीं है। दिल्ली के मुख्यमंत्री दिल्ली सरकार के खिलाफ केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस का समर्थन चाहते हैं, जिस पर कांग्रेस ने खुलकर हामी नहीं भरी है, वो इसलिए महागठबंन से दूरी बनाए हुए हैं। हालांकि विपक्षी पार्टियों को भी अच्छी तरह पता है कि वो एकजुट हुए बगैर मोदी मैजिक इतनी आसानी से खत्म नहीं कर सकतीं। इसके लिए उन्हें न सिर्फ लोगों के मन की बात करनी होगी, बल्कि दिन-रात एकजुट होकर एक-दूसरे को सहारा देना होगा।

वरिष्ठ पत्रकार राजेश श्रीवास्तव कहते हैं कि इन दिनों देश की राजनीति दो ध्रुवों में बंट चुकी है। एक तरफ एनडीए है जिसका नेतृत्व खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कर रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ यूपीए और तमाम विपक्षी पार्टियां हैं, जो अभी एकजुट दिख तो रही हैं, लेकिन हकीकत में एकजुट हैं नहीं। यही वजह है कि एकजुट हो रहा विपक्ष अभी तक सत्तारूढ़ मोदी को चुनौती देने की हालत में नहीं दिख रहा.है। वहीं भाजपा का रथ लेकर मोदी अभी भी आगे दिख रहे हैं, हालांकि उनकी राह अब कांटों भरी है, क्योंकि हर वर्ग से एक बड़ी संख्या में उनके प्रति नाराजगी है, जिसे नरेंद्र मोदी से लेकर तमाम छोटे-बड़े भाजपा नेता भी जानते हैं। हालांकि विपक्षी महागठबंन अपना कई चीजों को लेकर अपना रुख स्पष्ट नहीं कर पा रहा है। लेकिन वहीं भाजपा एजेंडा भी सेट कर चुकी है। 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले जनवरी 2024 में प्रधानमंत्री मोदी अयोध्या में बड़े ही भव्य रूप से राम मंदिर का उद्घाटन करेंगे। भाजपा के पास दूसरा पत्ता समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के रूप में तुरुप का है।

इसके अलावा उसने पसमांदा मुसलमानों को रिझाने की चाल भी चल दी है। भाजपा ने जिस प्रकार से पसमांदा मुसलमानों से तुष्टिकरण का आरोप लगाते हु कांग्रेस की पिछली सरकारों को घेरा है, वो कांग्रेस की ओर लौट रहे मुसलमानों का मोह उससे फिर भंग करने के लिए है। तीसरा, तीन तलाक खत्म करके मोदी ने मुस्लिम महिलाओं में वाहवाही लूट ही ली है। क्योंकि इससे लोगों में यह मैसेज गया कि तलाक से न सिर्फ लड़की की, बल्कि उसके मां-बाप की भी बुरी दशा होती है। तीन तलाक से दो घर खराब होते हैं। सवाल यह किया गया कि अगर तीन तलाक इस्लाम का जरूरी अंग है तो पाकिस्तान में यह.लागू क्यों नहीं है? इसके अलावा इंडोनेशिया, कतर, जॉर्डन, सीरिया, बांग्लादेश में इस पर बैन क्यों लगा दिया गया?

बहरहाल, केंद्र की मोदी सरकार की चुनावी रणनीति की सूची में यूसीसी बिल सबसे ऊपर है, जिसका फैसला वो जल्द ही लेने के मूड में है। रही तीन तलाक के मुद्दे की बात, तो इससे मुझे नहीं लगता कि कोई बहुत फर्क पड़ेगा, क्योंकि अगर तलाक तो कोर्ट से आज भी हो ही रही है, चाहे वो किसी भी धर्म में हो। हो सकता है कि पसमांदा मुसलमानों की दुखती रग छूने से भाजपा को कोई फायदा मिल जाए, लेकिन सवाल ये है कि प्रधानमंत्री मोदी के नौ साल के कार्यकाल में कितना मुसलमानों का ख्याल रखा गया? मोदी सरकार के नारे सबका साथ सबका विकास पर वो खुद कितना चली है? किसानों के मुद्दे कौन से केंद्र की मोदी सरकार ने सुलझा दिए? महंगाई, बेरोजगारी, कालाधन और बढ़ती गरीबी छोड़िए, आर्थिक, सामाजिक और रक्षा के मुद्दे पर भाजपा कौन से ऐसे काम गिनाए, जिस पर उससे लोग खुश होंगे। डॉलर के मुकाबले रुपए की हालत क्या से क्या हो गई? देश पर कर्जा कितना बढ़ गया? क्या महंगाई के हिसाब से आम आदमी की आमदनी बढ़ी है?

भाजपा 2024 से पहले अपनी छवि रिपेयर करने की पूरी कोशिश में जुटी है, लेकिन क्या उसके प्रति लोगों का गुस्सा कम हो सकेगा, वो भी तब, जब देश का मणिपुर राज्य हिंसा की आग में जल रहा है और प्रधानमंत्री मोदी महंगाई के म की तरह ही मणिपुर का म भी बोलने को तैयार नहीं हैं। इतना ही नहीं, पांच-छह दिन पहले मध्य प्रदेश में वो जिस एनसीपी पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाकर कोस रहे थे और पार्टी के भ्रष्टाचारियों को सजा दिलाने का आश्वासन लोगों को दे रहे थे, ठीक दो दिन के भीतर ही उसी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बना लेते हैं।

(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं)

Readers Comments

Post Your Comment here.
Characters allowed :
Follow Us


Monday - Saturday: 10:00 - 17:00    |    
info@anupamsandesh.com
Copyright© Anupam Sandesh
Powered by DiGital Companion