जैसवाल वैश्य सभा के अधिवेशन में बही काव्य की धार

बे जमीरी ने जब पांव फैला दिए चंद सिक्कों की खातिर बिका आदमी
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2025-04-14 19:40:03

अलीगढ़ जैसवाल वैश्य सभा अलीगढ़ के तत्वावधान में मधुबन गेस्ट हाउस में गंगा जमुनी तहजीब के साथ आयोजित हुए कवि सम्मेलन में कवि एवं शाइरों ने हर रस से भरपूर गीत गजल कविताओं का स्वस्थ मनोरंजन के साथ श्रोताओं को रसपान कराया। रविवार को संस्था के महामंत्री विनोद कुमार जैसवाल द्वारा संयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता सुभाष चंद्र जैसवाल व इं.दिनेश चंद गुप्ता ने संयुक्त रूप से की तथा म़ंच संचालन गोपाल कृष्ण गुप्ता विजेंद्र कुमार एवं मुकेश राज गुप्ता ने संयुक्त रूप से किया।इस अवसर पर समाज के उत्थान एवं कल्याण के लिए महत्वपूर्ण निर्णय भी लिए ग‌ए।समाज के बुजुर्ग एवं प्रतिभाओं को सम्मानित भी किया गया। बच्चों ने गीत कविता सुना कर प्रशंसा पाई।समाज में छिपी प्रतिभाओं का समाज से परिचय कराया गया। वक्ताओं ने समाज उत्थान के लिए आपसी मतभेद भुलाकर सभी को संगठित रहने का संदेश दिया। अध्यक्ष द्वारा मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्वलन के उपरांत गंगा जमनी कवि सम्मेलन की घोषणा की गई। शायर मुजीब शहजर के खूबसूरत संचालन में शुरू हुए कवि सम्मेलन का आग़ाज़ पूनम शर्मा पूर्णिमा की शारदे वंदना से हुआ। तत्पश्चात उन्होंने खूब सूरत अंदाज में पढ़े गीतों से श्रोताओं का दिल जीत लिया -पाखंडी मत पीटिए मान लट्ठ कौ जाय,नीच नीचता छोड़ दे कुनबा कुटुम लजाय।इसके बाद शायर नसरुद्दीन नसीर नादान ने अपनी एक से बढ़कर एक ग़ज़लों से समां बांधा - ये क्यों मुझ पे सितम कर रही है तेरी याद आंखों को नम कर रही है इसके बाद सासनी से तशरीफ लाई कवयित्री नेहा वार्ष्णेय ने सुनाया -जो हंस के मुस्कुरा के मिला उसको सलाम जो चेहरा छिपा के मिला उसको सलाम। काव्य मंचों के रसखान के रूप में मशहूर कवि चच्चा उदयभानी अलीगढ़ ने भक्ति एवं ओज की कविताओं से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया -हम सब हिन्दुस्तानी हैं और हिंदुस्तान हमारा है कश्मीर हिंद का हिस्सा है जो हमें जान से प्यारा है। इसके बाद रस परिवर्तन करते हुए संचालन कर रहे अलीगढ़ के मशहूर शायर मुजीब शहजर ने अपनी ग़ज़लों से समां बांधा - बे जमीरी ने जब पांव फ़ैला दिए चंद सिक्कों की खातिर बिका आदमी। इसके बाद व्यंगों की बौछार और ग़ज़लों की बरसात में काव्य प्रेमियों को सराबोर कर दिया सासनी के व्यंगकार वीरेन्द्र जैन नारद ने -मुहब्बत का रिश्ता निभाता वो कैसे चुरा ले गया ख्वाब तक चश्मेतर से कहो कैसे नारद वो काटे बुढ़ापा परेशां है जो खुद लख्ते जिगर से।इसके बाद सभी आगंतुक अतिथियों व प्रतिभाओं एवं कवियों का सम्मान किया गया तत्पश्चात अध्यक्षीय उद्बोधन व आभार व्यक्त करने के साथ ही जैसवाल वैश्य समाज(1156) का अधिवेशन संपन्न हो गया

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