2025-04-11 21:22:00
शूद्र अछूत कह जिन्हें, माना था लाचार। फूले ने दी सीख तो, खोला ज्ञान-द्वार॥ यज्ञ-जपों की आड़ में, होता रहा प्रपंच। फूले ने जब कहा नहीं, टूटा झूठा मंच॥ शिक्षा जिसकी धारणी, खोले सौरभ द्वार। भेदभाव के जाल से, होता तभी उद्धार॥ सावित्री को साथ ले, रच दी नयी मिसाल। नारी पढ़े, बढ़े तभी, बदले सारे ख्याल॥ पैसे की जो बंदगी, शिक्षा की हो हार। फूले कहते ज्ञान बिन, सब कुछ है बेकार॥ गुजरे सत्तर साल अब, फिर भी वैसी बात। बदलेंगे कब दलित के, धरती पर हालात॥ संविधान की छाँव में, अब भी खड़े सवाल। जाति, धर्म के नाम पर, चलती हर इक चाल॥ कर्मकांड को छोड़ कर, रचिये नया समाज। सत्यशोधक फुले बनें, संघर्षों का राज॥ फूले जैसा स्वप्न था, समता-शिक्षा-ज्ञान। पर अब भी तो गूंजता, भेदभाव का गान॥ फूले का भारत वही, जहाँ न हो अपमान। मानवता की रेख से, बनता नया विधान॥ कर्म न देखा आज तक, देखा कुल या गोत्र। फूले पूछें–यह कहाँ, मानवता का जोत्र?॥ राजनीति जब सेविका, बन जाए व्यापार। फूले तब हैं पूछते–सेवा है या वार?॥ गाँवों में अब भी नहीं, रोटी-शाला-वास। फूले पूछें–क्या यही, है सच्चा विकास?॥ फूले का भारत अगर, रचना हो साकार। उठो मनुज! अब मत रुको, कर विवेक से वार