साल 1984 आधुनिक भारतीय इतिहास के सबसे काले वर्षों में से एकः अमेरिकी सीनेटर

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2022-10-06 08:27:43

एक अमेरिकी सीनेटर ने 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों को आधुनिक भारतीय इतिहास के सबसे काले वर्षों में से एक बताते हुए सिखों पर किए गए अत्याचारों को याद रखने की जरूरत रेखांकित की है ताकि इसके लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जा सके।

भारत में 31 अक्टूबर साल 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिख अंगरक्षकों द्वारा हत्या किए जाने के बाद दिल्ली और देश के अन्य हिस्सों में हिंसा भड़क उठी थी। इस हिंसा में पूरे भारत में 3,000 से अधिक सिखों की जान चली गई थी। सीनेटर पैट टूमी ने सीनेट में अपने भाषण में कहा साल 1984 आधुनिक भारतीय इतिहास के सबसे काले वर्षों में से एक है।

दुनिया ने देखा कि भारत में जातीय समूहों के बीच कई हिंसक घटनाएं हुई, जिनमें सिख समुदाय को निशाना बनाया गया। उन्होंने कहा कि आज हम यहां उस त्रासदी को याद कर रहे है जो भारत में पंजाब प्रांत और केंद्र सरकार में सिखों के बीच दशकों के जातीय तनाव के बाद एक नवंबर 1984 को हुई थी।

पेन्सिल्वेनिया के सीनेटर ने कहा कि अक्सर ऐसे मामलों में आधिकारिक अनुमान पूरी कहानी संभवत नहीं बताते, लेकिन अनुमान है कि पूरे भारत में 30,000 से अधिक सिख पुरुषों, महिलाओं और बच्चों को भीड़ ने जानबूझकर निशाना बनाया, बलात्कार किया, वध किया और विस्थापन के लिए विवश किया। उन्होंने कहा कि भविष्य में मानवाधिकारों का हनन रोकने के लिए हमें उनके पिछले रूपों को पहचानना होगा। हमें सिखों के खिलाफ हुए अत्याचारों को याद रखना चाहिए ताकि इसके लिए जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जा सके और दुनिया भर में सिख समुदाय या अन्य समुदायों के खिलाफ इस तरह की त्रासदी की पुनरावृत्ति न हो।

टूमी अमेरिकन सिख कांग्रेसनल कॉकस के भी सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि भारत के पंजाब क्षेत्र में सिख धर्म की जड़ें करीब 600 साल पुरानी हैं। दुनिया के प्रमुख धर्मों में से एक सिख धर्म के विश्व भर में करीब तीन करोड़ लोग हैं। अमेरिका में इनकी संख्या करीब 700000 है। उन्होंने कहा कि इतिहास को देखें तो सिखों ने सभी धार्मिक, सांस्कृतिक और जातीय पृष्ठभूमि के लोगों की सेवा के लिए गहरी प्रतिबद्धता दिखाई है। जिससे उनकी उदारता और समुदाय की भावना जाहिर होती है।

टूमी ने कहा कि कोविड-19 महामारी के दौरान, पेन्सिलवेनिया और अमेरिका में सिख समुदायों ने हजारों परिवारों को किराने का सामान, मास्क और अन्य आपूर्ति की और तब उनके लिए जाति, लिंग, धर्म या पंथ का कोई मतलब नहीं था। उन्होंने कहा कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से सिखों की भावना को देखा है और समानता, सम्मान और शांति की सिख परंपरा को बेहतर ढंग से समझा है। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट है कि सिख समुदायों की उपस्थिति और उनके योगदान ने न केवल देश को बल्कि उनके पड़ोस को भी समृद्ध किया है।

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