आईजीएनसीए में ‘मैपिंग ऑफ द आर्काइव्ज’ पुस्तक का विमोचन

संस्कृति के एक गतिशील और जीवंत मिश्रण के रूप में भारत दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करता है
News

2023-11-24 15:59:49

इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केन्द्र (आईजीएनसीए) के कलानिधि प्रभाग ने आज समवेत सभागार में ‘मैपिंग ऑफ द आर्काइव्स इन इंडिया’ पुस्तक के विमोचन और उसपर चर्चा का आयोजन किया। इस अवसर पर ‘आगम-तंत्र-मंत्र-यंत्र, खंड-3, भाग-1-5’ की वर्णनात्मक ई-कैटलॉग भी लॉन्च की गई। यह पुस्तक प्रोफेसर रमेश चंद्र गौड़ एवं विस्मय बसु द्वारा लिखी गई है और आईजीएनसीए एवं यूनेस्को द्वारा प्रकाशित की गई है। इस पुस्तक के विमोचन सत्र की अध्यक्षता आईजीएनसीए ट्रस्ट के अध्यक्ष श्री राम बहादुर राय ने की। इस कार्यक्रम के सम्मानित अतिथि भारत के मुख्य सूचना आयुक्त श्री सत्यानंद मिश्रा और दक्षिण एशिया यूनेस्को के नई दिल्ली स्थित कार्यालय के संचार एवं सूचना सलाहकार श्री हेजेकील डलामिनी थे। इस कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता आईजीएनसीए के सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी, आईजीएनसीए के (एलएंडआई) और कलानिधि प्रभाग के निदेशक प्रोफेसर डॉ. रमेश चंद्र गौड़ और भारतीय राष्ट्रीय अभिलेखागार के उप निदेशक डॉ. संजय गर्ग थे।

अपने भाषण में, श्री हेजेकील डलामिनी ने कहा कि आईजीएनसीए में आना यूनेस्को के लिए हमेशा खुशी की बात होती है क्योंकि यूनेस्को और आईजीएनसीए दोनों अपने सामूहिक प्रयास में साझीदार हैं। उन्होंने इस तथ्य को दोहराया कि सदियों से अभिलेखागारों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और इतिहास ज्ञान संस्कृति पर आधारित है। श्री हेजेकील डलामिनी ने कहा, “संस्कृति के एक गतिशील और जीवंत मिश्रण के रूप में भारत दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करता है।” उन्होंने कहा, “दुनिया संस्कृति की विविधता में रुचि रखती है और यह विविधता इस देश में चारों ओर मौजूद है। और यही कारण है कि यूनेस्को भारत में रुचि रखता है।” उन्होंने यह कहकर अपना संबोधन समाप्त किया कि अभिलेखागार ज्ञान का भंडार होते हैं और संस्थागत एवं विशिष्ट संग्रहण कार्यक्रम यूनेस्को के लिए रुचिकर है और यह भारत में प्रचलित है। यह समस्याओं का प्रशंसनीय समाधान भी प्रदान करेगा।

प्रोफेसर रमेश चंद्र गौड़ ने उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों का हार्दिक स्वागत किया और आईजीएनसीए एवं यूनेस्को द्वारा मैपिंग ऑफ द आर्काइव्स इन इंडिया पुस्तक के संयुक्त प्रकाशन और आगम-तंत्र-मंत्र-यंत्र, खण्ड-3, भाग-1-5’ के वर्णनात्मक ई-कैटलॉग के प्रकाशन पर संतोष व्यक्त किया। उन्होंने दर्शकों को बताया कि यह परियोजना 2018 में शुरू हुई थी लेकिन औपचारिक रूप से इसकी शुरुआत 2019 में हुई। इसके बाद, कोविड आ गया जिसने काम की प्रक्रिया को धीमा कर दिया। साहित्य सर्वेक्षण के बाद देश के 600 संस्थानों में पुरालेख पाए गए। इस पुस्तक में भारत के अभिलेखागार की 424 निर्देशिकाएं शामिल हैं। इस पुस्तक में निहित अभिलेखों की पूरा विवरण शामिल है। यह पुस्तक संरक्षण, डिजिटलीकरण और अभिलेखीकरण के दृष्टिकोण से भी अवगत कराती है। उन्होंने हमारी विरासत पर गर्व की भावना के संदर्भ में भारत के प्रधानमंत्री के ‘पंच प्रण का भी उल्लेख किया और इसे ध्यान में रखते हुए हमें अपनी विरासत के प्रति सचेत रहना चाहिए और यह हमारी विरासत के संग्रह के माध्यम से होगा।

अपने भाषण के दौरान, डॉ. संजय गर्ग ने इस देश में अभिलेखागारों के इतिहास पर जोर दिया और कहा कि अभिलेखागारों की मैपिंग में सतत एवं एकाग्रचित प्रयासों की आवश्यकता है। उन्होंने अभिलेखागारों के प्रसार तंत्र के बारे में भी विस्तार से बताया और कहा कि कैसे धार्मिक संस्थान, शैक्षणिक एवं रियासती संपत्ति, राज्य अभिलेखागार, कॉरपोरेट अभिलेखागारों के प्रसार में सहायक हैं। उन्होंने आगे कहा कि बैंकों के अपने अभिलेखागार होते हैं, न्यायिक अभिलेखागार होते हैं और अभिरक्षक अभिलेखागार भी होते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एक बहुत बड़ी विरासत है जिसे खोने का हमें खतरा है और यह पुस्तक इस देश की विरासत और परंपरा को सुरक्षित रखने का अद्भुत प्रयास है। उन्होंने यह कहते हुए अपने संबोधन का समापन किया कि इस संदर्भ में ‘एक राष्ट्र एक पोर्टल’ लाभदायक होगा।

सभा को संबोधित करते हुए, डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कोविड के कारण उत्पन्न बाधाओं के बावजूद इन प्रकाशनों के सामने आने पर प्रसन्नता एवं गर्व व्यक्त किया और यह सब इसमें शामिल लोगों के निरंतर प्रयासों के कारण संभव हुआ है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि छात्रों एवं आम लोगों के बीच इस क्षेत्र के बारे में जागरूकता की कमी है और इसलिए जितना संभव हो सके इस विज्ञान का विकास करना चाहिए। उन्होंने यह कहकर अपने संबोधन का समापन किया कि हर किसी को इस क्षेत्र में काम करने वाले लोगों की सराहना करनी चाहिए और उनका समर्थन करना चाहिए क्योंकि उनके कारण ही हमारे पास महाभारत, रामायण और भगवद गीता जैसे साहित्य के पाठ्य साक्ष्य उपलब्ध हैं।

अपने संबोधन में, श्री सत्यानंद मिश्र ने कहा कि अभिलेखों की सुरक्षा और उनका संरक्षण महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, “अभिलेखीय सामग्री का उपयोग करके इतिहास का पुनर्निर्माण हमारे अतीत को जीवंत बनाता है”। यह पुस्तक एक प्रासंगिक पहल है जो इस क्षेत्र के लोगों और शोधकर्ताओं को सही दिशा में ले जाती है। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री राम बहादुर राय ने की। उन्होंने (डॉ.) रमेश गौड़ को बधाई देते हुए कहा कि उन्होंने बहुत ही सराहनीय कार्य किया है। इस किताब में बेहतरीन जानकारियां उपलब्ध है। इसे पढ़ा जाना चाहिए। राम बहादुर राय ने आगे कहा कि जो पुस्तकालय बंद हैं उन्हें खोलने की जरूरत है । अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने पूछा कि क्या संग्रहालयों में जानकारी उपलब्ध है? लोग आसानी से जानकारी प्राप्त कर पा रहे हैं। जो काम आज हुआ है वो पहले ही शुरू हो जाना चाहिए था। अंत में अपने भाषण का समापन करते हुए उन्होंने कहा कि शुरुआत तो अच्छी हुई है, इसे एक आंदोलन का रूप भी दिया जा सकता है।

Readers Comments

Post Your Comment here.
Characters allowed :
Follow Us


Monday - Saturday: 10:00 - 17:00    |    
info@anupamsandesh.com
Copyright© Anupam Sandesh
Powered by DiGital Companion