2025-04-29 20:08:39
वैशाख की उजली बेला आई, धूप सुनहरी देहरी पर छाई। अक्षय तृतीया का मधुर निमंत्रण, पुण्य-सुधा में डूबा आचमन। न मिटने वाला पुण्य का सूरज, हर मन में भर दे स्वर्णिम किरण। सच की थाली, धर्म का दीपक, दान की बूंदें, जीवन समर्पण। परशुराम की वीरगाथा बोले, गंगा की लहरें चरणों में डोले। युधिष्ठिर को अक्षय पात्र मिला, सत्य का दीप फिर से खिला। मां लक्ष्मी के पग जब आँगन आएं, निर्धन के भी भाग्य मुस्काए। जो दे अन्न, जल और वस्त्र, उसके पुण्य हों कभी न क्षीण शस्त्र। सोने से ज्यादा सोचा जाए, करुणा का सौदा किया जाए। पंछियों को जल, वृक्षों को जीवन, अक्षय हो फिर मानव का चिंतन। ना हो केवल सोने की पूजा, धूल में भी खोजें आत्मारूप सूझा। बिन मुहूर्त जो शुभ हो जाए, ऐसा हर दिन क्यों न हो पाए? खरीदें नहीं केवल आभूषण, उतारें मन के भी आडंबर। आस्था के संग हो सेवा, तभी फले पुण्य का अमर अंत:करण। ओ धन के व्यापारी, सुन ले बात, अक्षय वह जो दे इंसानियत का साथ। सोना-चांदी फिर भी छूटेंगे, पर प्रेम, परोपकार कभी न टूटेंगे। इस तिथि पर कर लो संकल्प, हर कर्म हो सच्चा और सरल। अक्षय बने हर दिन की चेतना, पुण्य हो जीवन की प्रेरणा। -डॉ सत्यवान सौरभ