सिनेमा का मायाजाल बौद्धिक संपन्नता या कंगाल?

सिनेमा सुनते ही आपके मन में क्या विचार आता हैं मनोरंजन दिल को खुश करने वाली कहानी, संगीत या फिर उसके किरदार।पर क्या आप कभी विचार करते हैं
News

2025-03-26 21:57:21

सिनेमा सुनते ही आपके मन में क्या विचार आता हैं मनोरंजन दिल को खुश करने वाली कहानी, संगीत या फिर उसके किरदार।पर क्या आप कभी विचार करते हैं कि इसका हमारे समाज पर क्या प्रभाव पड़ता है ? सिनेमा सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं है, बल्कि यह समाज को प्रभावित करने वाला एक सशक्त माध्यम भी है। यह लोगों की सोच, संस्कृति, रहन-सहन और विचारधारा पर गहरा प्रभाव डालता है। समय के साथ सिनेमा ने समाज को बदलने और नई धारणाओं को जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसके प्रभाव सकारात्मक और नकारात्मक दोनों होते है। सिनेमा सामाजिक मुद्दों को उठाने और जागरूकता फैलाने का एक प्रभावी माध्यम है। दहेज प्रथा, बाल विवाह, लैंगिक समानता, भ्रष्टाचार, पर्यावरण संरक्षण, शिक्षा आदि विषयों पर बनी फिल्में समाज को इन समस्याओं के प्रति जागरूक बनाती हैं। उदाहरण के लिए, PK , तारे ज़मीन पर, थप्पड़, और आर्टिकल 15, दा केरला स्टोरी, कश्मीर फाइल्स, जैसी फिल्में हमें सीख देती हैं और समाज कि बुराई से अवगत करती है। हाल ही में चल रही छावा मूवी हमें अपनी संस्कृति और शूरवीरों के बलिदानो के बारे ने बताती है और लोगों को प्रेरित करने का काम करती हैं। खेल, शिक्षा, संघर्ष और सफलता की कहानियाँ दर्शकों को जीवन में आगे बढ़ने और कठिनाइयों से लड़ने के लिए प्रेरित करती हैं। भाग मिल्खा भाग, चक दे इंडिया, और सुपर 30 जैसी फिल्में युवाओं को अपनी मेहनत और लगन से सपनों को पूरा करने की प्रेरणा देती है। केवल फिल्म ही नहीं बल्कि कहानी के किरदारो को निभाने वाले अभिनेता भी हमारे मन को प्रभावित करते है। हम जब उस किरदार के बारे में सोचते है तो हमे उस अभिनेता का ही चेहरा याद आता हैं, जिसने उसे निभाया था। भारतीय सिनेमा आज वैश्विक स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है। बॉलीवुड, टॉलीवुड, और अन्य क्षेत्रीय फिल्म इंडस्ट्री ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारतीय संस्कृति और सिनेमा की छवि को सशक्त किया है। कई बार फिल्मों में हिंसा, अपराध, ड्रग्स और नकारात्मक गतिविधियों को महिमामंडित किया जाता है। इससे युवा प्रभावित होकर गलत राह पकड़ सकते हैं। गैंगस्टर और माफिया पर बनी कई फिल्मों ने अपराध को ग्लैमराइज़ किया है। जैसे - 2004, 2006 और 2013 में आई धूम सिरीज धूम और इसके सीक्वल के बाद भारत के अलग-अलग शहरों में हाई-स्पीड बाइक डकैतियां बढ़ गईं थी। कई अपराधियों ने फिल्म से प्रेरित होकर स्पोर्ट्स बाइक का इस्तेमाल तेज डकैतियों और भागने के लिए किया। मुंबई, दिल्ली और हैदराबाद जैसे शहरों में धूम-शैली की डकैतियां रिपोर्ट हुई थीं। 2015 में शुरू हुई दृश्यम मूवी- दृश्यम की कहानी एक अपराध को चतुराई से छिपाने पर आधारित थी। इस फिल्म के बाद कुछ वास्तविक जीवन के मामले सामने आए जिनमें लोगों ने सबूतों में हेरफेर करने की कोशिश की, जैसे कि कर्नाटक में एक मामला सामने आया था। शूटआउट एट लोखंडवाला (2007) यह फिल्म मुंबई अंडरवर्ल्ड और एनकाउंटर हत्याओं पर आधारित थी। इसके बाद कई खबरें आईं कि कुछ युवा अंडरवर्ल्ड और अपराध की दुनिया की ओर आकर्षित होने लगे हैं। इसी प्रकार 2021 में आई पुष्पा और 2018, 2022 की KGF इन फिल्मों के डायलोग्स के एटीट्यूड और एक्शन सीक्वेंस से प्रभावित होकर लोग अपनी असल जिंदगी में अपराध करने लगे। खबर आई की आंध्रप्रदेश और तेलांगना में लाल चंदन की तस्करी और हिंसा बढ़ती जा रही है। इन सभी रिपोर्टस से यह पता चलता के फिल्मों का प्रभाव इतना है कि जो कुछ भी इसमें दिखाया जाता हैं। लोग उसी को करने की कोशिश करते हैं। अंतः सिनेमा समाज का दर्पण है, जो समय-समय पर समाज की अच्छी और बुरी दोनों तस्वीरें प्रस्तुत करता है। यह एक सशक्त माध्यम है, जिसे सही दिशा में इस्तेमाल किया जाए तो यह समाज के विकास और बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। दर्शकों को चाहिए कि वे फिल्मों को सोच-समझकर देखें और उसमें दिखाए गए संदेशों को विवेकपूर्ण ढंग से अपनाएँ। सरकार और फिल्म निर्माताओं की भी जिम्मेदारी है कि वे ऐसी फिल्में बनाएँ जो समाज को सकारात्मक दिशा में ले जाएँ। सही सिनेमा न केवल मनोरंजन करता है बल्कि समाज को शिक्षित और जागरूक भी करता है।

Readers Comments

Post Your Comment here.
Characters allowed :
Follow Us


Monday - Saturday: 10:00 - 17:00    |    
info@anupamsandesh.com
Copyright© Anupam Sandesh
Powered by DiGital Companion