प्रेत स्थली को तीर्थस्थली बना गए स्वामी रोटीराम

लोक कल्याण की भावना से भिन्न भिन्न नामो से भिन्न भिन्न प्रांतों में जाकर लोगों को धर्म संस्कृति के प्रति सजग करते
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2023-12-26 15:12:02

सुमेरपुर। लोक कल्याण की भावना से भिन्न भिन्न नामो से भिन्न भिन्न प्रांतों में जाकर लोगों को धर्म संस्कृति के प्रति सजग करते हुए, जीवन के लक्ष्य का पथ प्रशस्त करने वाले महान संन्यासी स्वामी रोटीराम जी ने बुंदेलखण्ड में सर्वाधिक समय हमीरपुर जनपद के सुमेरपुर और मौदहा क्षेत्र के भक्तो को प्रदान किया, यज्ञ के बड़े बड़े आयोजन करवाए और कस्बा सुमेरपुर की प्रेत स्थली को तीर्थ स्थली में तब्दील कर गए, स्थूल शरीर से भले ही स्वामी जी मौजूद नहीं है लेकिन उनके पावन विचार ईश्वर के प्रति भक्ति को प्रगाढ़ बनाने का काम आज भी कर रहे हैं। स्वामी जी बुजुर्ग शिष्य बताते हैं कि सात दशक पूर्व जब स्वामी जी गायत्री तपोभूमि में आए थे तो वहां जंगल था, वहां बने एक घर में भूत प्रेत निवास करते थे, स्वामी जी वहां रुककर प्रवचन करते रहे, यज्ञ का विशाल आयोजन कराया काफी दिनों तक साधनारत रहने से प्रेत स्थली अब तीर्थ स्थली में तब्दील हो गई है।

अलग अलग नामों से भिन्न भिन्न प्रांतो में विख्यात रहे स्वामी रोटीराम

विरक्त आश्रम के प्रमुख सन्त स्वामी जगन्नाथ बताते है कि स्वामी जी ने अपने जीवन के लगभग साढे आठ दशकों में दो दशक अज्ञात वास में विताये। हिमालय से लेकर महाराष्ट्र तक उन्होंने जगह-जगह साधना की और सत्संग की सरिता बहायी। उत्तर भारत के हिमांचल प्रदेश में स्वामी जी मलंग स्वामी के नाम से जाने जाते थे। उत्तर प्रदेश के पावन क्षेत्र नैमिष तथा मिश्रित में इन्हें अवधूत स्यामी कहा जाता था। महाराष्ट्र में मोटा बाबा नाम से विख्यात रहे। बुन्देलखण्ड में नागा स्वामी के रूप में जाने गये जबकि म०प्र० के रतलाम में स्वामी रोटी राम महाराज के नाम से चर्चित रहे।

आज भी प्रेरणास्पद हैं स्वामी जी के पावन विचार

स्वामी रोटी राम जी कहा करते थे। नित्य की चर्चा नित्य यानि परमात्मा का स्मरण प्रतिदिन करना चाहिये। अपने को अपने में जानो यानि परमात्मा को बाहर ढूंढने की जरूरत नहीं है वह अपने अंदर ही विराजमान है । जीवन का काम जीवन में करें। बनियाँ को नर्म शासक को गर्म तथा नारी को शर्मदार होना चाहिये। याद है तो आबाद है भूल गये तो बर्वाद है। ईश्वर को चाहो ईश्वर से.न चाहो । एक को जानो, एक को पहचानोऔर एक के होकर रहो। गुरु गीता, गायत्री गौ और गंगा पाँचों का विशेष सम्मान करना चाहिये। इन्हे कभी नहीं भूलना चाहिए वह यह भी कहा करते थे कि अगर सुख चाहते हो तो किसी को दुःख मत दो, यदि किसी को दुःख दोगे तो सदैव दुखी रहोगे । अध्यात्म विचार, सत्संग, वासना त्याग व प्राणायाम से मन को एकाग्र किया जा सकता है। भक्ति, कीर्ति, गति, भूति और भलाई ये पांच लाभ सत्संग से प्राप्त होते हैं, स्वामी जी कहा करते थे कि मनुष्य के दो जन्म होते हैं एक जन्म पर परमात्मा से और दूसरा जन्म विचार से होता है। परमात्मा का स्मरण नाम रूप लीला व धाम चार तरह से किया सकता हैं। स्वामी -जी के पावन विचार आज भी भक्तों को प्रेरणा देने का काम कर रहे हैं।

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