2025-03-09 19:33:33
हैदराबाद। तेलंगाना हाईकोर्ट में भारत के संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत दलबदल विरोधी कानून के उल्लंघन से जुड़े एक बेहद अहम मामले की सुनवाई लगातार टलती जा रही है। याचिकाकर्ता डॉ. के.ए. पॉल ने एक बार फिर व्यक्तिगत रूप से अदालत के सामने अपनी दलीलें पेश की, लेकिन सातवीं बार सुनवाई के बावजूद कोई कोई फैसला नहीं आया। यह देरी न्याय प्रणाली और लोकतंत्र की पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर रही है। डॉ. के.ए. पॉल ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि भारत राष्ट्र समिति (BRS) के टिकट पर चुने गए कई विधायक कांग्रेस (INC) में शामिल हो गए, लेकिन उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया गया। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि दलबदल करने वालों को तुरंत अयोग्य घोषित किया जाना चाहिए, लेकिन अदालत की निष्क्रियता लोकतंत्र की बुनियाद कमजोर कर रही है। बार-बार सुनवाई टलने से न्यायिक जवाबदेही पर गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं। याचिकाकर्ता ने 1975 के ऐतिहासिक इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का हवाला दिया, जिसमें प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अयोग्य ठहराया गया था, और 1998 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का जिक्र किया, जिसमें 12 बसपा विधायकों की सदस्यता समाप्त कर दी गई थी। बावजूद इसके, तेलंगाना हाईकोर्ट का फैसला लंबित रहना न्यायपालिका की निष्पक्षता पर संदेह पैदा कर रहा है। संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह की न्यायिक देरी भारत के लोकतांत्रिक ढांचे को नुकसान पहुंचा रही है। दुनिया के विकसित लोकतंत्रों, जैसे अमेरिका और ब्रिटेन में, निर्वाचित प्रतिनिधि चुनाव के बाद दल नहीं बदल सकते, लेकिन भारत में ऐसी घटनाएं बार-बार होती हैं, और न्यायिक निष्क्रियता के कारण दोषी विधायकों को बचने का पूरा मौका मिलता है। इस मामले में भी एक साल से अधिक समय बीत चुका है, और अब तक कोई ठोस निर्णय नहीं लिया गया है। डॉ. के.ए. पॉल ने अंतरराष्ट्रीय विधि समुदाय, लोकतांत्रिक संस्थानों और मानवाधिकार संगठनों से अपील की है कि वे इस गंभीर संकट का संज्ञान लें। उन्होंने माननीय मुख्य न्यायाधीश डॉ. खन्ना और भारत के सुप्रीम कोर्ट से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है ताकि संविधान और लोकतंत्र की रक्षा सुनिश्चित हो सके। उन्होंने कहा, अगर न्यायपालिका समय पर कदम नहीं उठाएगी, तो यह भारत के लोकतांत्रिक भविष्य के लिए एक काला अध्याय साबित होगा। मैं भारत और दुनिया के सभी नागरिकों से अपील करता हूं कि वे न्याय, लोकतंत्र और कानून के शासन के समर्थन में खड़े हों। यदि अदालतें इसी तरह संवैधानिक मामलों को टालती रहीं, तो यह न केवल जनता के न्याय पर भरोसे को कमजोर करेगा बल्कि लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को भी गंभीर संकट में डाल देगा। अब समय आ गया है कि न्यायपालिका अपने संवैधानिक दायित्वों को प्राथमिकता दे और दलबदल करने वाले विधायकों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करे