2025-04-01 16:07:00
एक नई स्टडी में चेतावनी दी गई है कि अगर वैश्विक तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो वर्ष 2100 तक दुनिया की जीडीपी में 40% तक की भारी गिरावट आ सकती है। ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू साउथ वेल्स (यूएनएसडब्ल्यू) के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए इस शोध में पहले के अनुमानों की तुलना में 11% अधिक नुकसान का आकलन किया गया है। अध्ययन में बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित न करने से वैश्विक व्यापार और आपूर्ति श्रृंखलाओं पर गंभीर असर पड़ेगा, जिससे पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था अस्थिर हो सकती है। वैज्ञानिकों ने तापमान वृद्धि को 1.7 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखने की जरूरत पर जोर दिया है, जो पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप है और आर्थिक क्षति को कम कर सकता है। मुख्य वैज्ञानिक डॉ. टिमोथी नील के मुताबिक पारंपरिक आर्थिक मॉडल जलवायु परिवर्तन के वास्तविक प्रभावों को पूरी तरह से नहीं समझ पाए हैं। उन्होंने बताया कि बढ़ता तापमान वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित करेगा, जिससे विभिन्न देशों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होंगी। पहले यह माना जाता था कि रूस और कनाडा जैसे ठंडे देशों को जलवायु परिवर्तन से लाभ हो सकता है, लेकिन वैश्विक व्यापार और आपूर्ति निर्भरता के कारण कोई भी देश इस प्रभाव से अछूता नहीं रहेगा। ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को तेजी से कम कर संकट से बच सकती है दुनिया स्टडी में यह भी स्वीकार किया गया कि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को पूरी तरह समझने के लिए अभी और शोध की आवश्यकता है। इसमें जलवायु अनुकूलन, जैसे कि बड़े पैमाने पर मानव प्रवास को शामिल नहीं किया गया है, जो एक जटिल प्रक्रिया है। वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर दुनिया ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को तेजी से कम करे तो इस संकट को टाला जा सकता है। वहीं सरकारों को ठोस जलवायु नीतियां अपनानी होंगी ताकि अर्थव्यवस्था और पर्यावरण दोनों सुरक्षित रह सकें।