2024-01-04 15:43:47
बाँदा। पैग़म्बरे इस्लाम हज़रत मोहम्मद साहब की बेटी फात्मा ज़हरा के जन्म दिवस के उपलक्ष्य में मंगलवार की रात पूर्वी कोठी स्थित इमाम बारगाह में नात-ओ-मनकबत के मुशायरे की महफ़िल सजाई गई मुशायरे की सदारत (अध्यक्षता) ताजिर बांदवी ने की संचालन नज़रे आलम ने किया । इस मौके पर इमाम बारगाह को दुल्हन की तरह सजाया गया,और फात्मा ज़हरा के जन्म दिन की खुशी में लंगर किया गया ।
लंगर के बाद हाफ़िज़ लतीफ ने कुरआन की तिलावत से मुशायरे की शुरुआत की डाक्टर शीबू नियाज़ी ने कलाम पढा, तेरे काशाने में ऐसी हस्तियां हैं फात्मा, जिनके कदमो में ज़मीनों आसमाँ हैं फात्मा । नुक्कड़ बांदवी का शेर खूब सराहा गया
उन्होंने पढा, आयतें आईं तो बैठे रहे महबूबे खुदा, फातिमा आईं तो उठते हैं पयम्बर देखो । शमीम बांदवी ने कलाम सुनाया, अल्लाह रे ये मर्तबा ये शाने फात्मा, जिब्राइल बन के आये हैं दरबाने फात्मा । रज़ा मेंहदी का शेर था, जिसने झुकाया सर दरे आले रसूल पर, अल्लाह ने उसे कभी रुसवा नहीं किया ।ज़ीरो बांदवी ने कई कलाम सुनाए उन्हीं पढा, अल्लाह अल्लाह ये बुलन्दी ये मक़ामे ज़हरा, जिनकी आमद पे बिछाते हैं पयम्बर आंखे । दर्द बांदवी ने कलाम सुनाया, क्या तेरी शान और अज़मत है फात्मा, कुर्बान तुझबे सारी मशीअत है फात्मा। आसिम दत्यावी ने शेर पढा, मालिक हैं जैसे चाहें ये तब्दीलियाँ करें, लौहो कलम दवात है ज़हरा के हाथ मे । हाफ़िज़ लतीफ ने पढ़ा चाँद तारे सलाम करते हैं,
हूरो गिलमा सलाम करते हैं, जश्ने ज़हरा के आज मौके पर, ये नज़ारे सलाम करते हैं । मुशायरे का संचालन कर रहे नज़रे आलम ने पढ़ा, हर एक जंग में बातिल ने मात खाई है, कहीं पे तीन सौ तेरह कहीं बहत्तर से ।मुशायरे की सदारत (अध्यक्षता) कर रहे ताजिर बांदवी ने पढ़ा कौले मुर्सल है मशीअत की जुबाँ है फात्मा, सारी ख़ातूने ज़मीं हैं आसमाँ हैं फात्मा । इनके अलावा मुशायरे में अली, मोहम्मद समद,अहमद, अली ज़ैदी आब्दी, मोहम्मद अब्बास, वाकिफ एडवोकेट, मंज़र अली एडवोकेट, शाज़ अब्बास, मिन्हाल ज़ैदी, आदि ने भी अपने अपने कलाम सुनाए!