2025-02-01 17:05:08
बिलासपुर। सत्य स्वयं में एक गूढ़ शब्द हैं जिसे व्याख्यायित करने का सामर्थ्य किसी व्यक्ति विशेष के वश में नहीं l असल में सत्य की प्रकृति स्थायी स्वरूप की नहीं हैं l कभी सत्य निरपेक्ष होता है और कभी सत्य सापेक्ष होता हैं l कभी सत्य एकल होता है और कभी सामूहिक l कभी सत्य दार्शनिक आधारों पर निर्मित होता है और कभी सत्य का आधार व्यवहारिक होता हैं l अब एक व्यक्ति सत्य को किस रूप में देखता, समझता और कहता है ये उसके जानकारी के स्तर, व्यक्तिगत अनुभव, वस्तुओं और घटनाओं के विश्लेषण की क्षमता आदि पर मुख्य रूप से निर्भर करती हैं l एक पत्रकार या लेखक स्वयं में ऐसी ही निरीक्षण व विश्लेषण करने की क्षमताओं को धारण करने वाला इंसान होता हैं। ऐसा होना भी अनिवार्य हैं । क्योंकि एक लेखक / पत्रकार कक्तिगत व सामाजिक रूप से संवेदनशील इंसान होता हैं। इसी संवेदनशीलता के कारण वह समाज व दुनिया में हो रही घटनाओं व गतिविधियों को एकल व समग्र रूप में देख पाता हैं । ऐसा करना व्यक्ति व समाज दोनों के लिए हित कर हैं । घटनाओं व गतिविधियों का समग्र विमर्श ही समस्त समाज के लिए कल्पाण रहता हैं, अप व्यक्ति व समाज के स्तर पर भ्रमित रहने / होने की संभावना बनी रहती हैं । आज की पत्रकारिता के स्तर पर यदि इसे देखने का प्रयास करे तो सत्य को देखने व जानने के पैमाने बदल जाते हैं l यथा इसमें केवल व्यक्तिगत स्तर पर सत्य को देखने, जानने व समझने का ही मुद्दा नहीं हैं वरन उसे दूसरे व्यक्तियों के समूह तक पहुँचाने का पक्ष भी शामिल हैं l वर्तमान में प्रिंट मीडिया, दृश्य मीडिया व अन्य प्रकार के स्रोतों के माध्यम से सत्य पहुँचाने का कार्य किया जाता हैं l किसी भी माध्यम से दूसरों तक सच पहुँचाने की प्रक्रिया सबसे जटिल प्रक्रिया हैं क्योंकि दूसरा व्यक्ति प्राप्त जानकारी और उसके विश्लेषण को अपनी सूचनाओं व समझ के दायरों व विश्लेषण शक्ति आदि के माध्यम से ही सत्य को देखते हैं l पत्रकारिता के क्षेत्र में एक और चुनौती ये भी हैं कि इसके नैतिक प्रतिमान लगातार समाज की व्यवहारिकताओं और समाज में व्याप्त अनैतिकताओं से लगातार टकराते रहते हैं l ये टकराहट न केवल व्यक्ति के स्तर पर वरन समाज के स्तर पर गंभीर प्रकार का द्वन्द का निर्माण करती हैं l ये द्वन्द अनवरत जारी रहता हैं क्योंकि पत्रकारों की जिजीविषा सत्य को छिपने या हारने नहीं देगी और समाज की कलुषिता, लालच, स्वार्थपरिकता और व्यवहारिकता उसे प्रकट होने से रोकती रहेगी l ऐसे में बुद्धिजीवी समाज से अपेक्षा हैं कि सत्य की खोज में अनवरत प्रयास करते पत्रकार व मीडिया के क्षेत्र में कार्य कर रहे सभी साथियों को सहयोग दे l इस सहयोग में नैतिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक व सांस्कृतिक समर्थन शामिल हो l विचारणीय हैं कि भय से सत्य मरता या छिपता नहीं हैं लेकिन भयप्रद वातावरण में सत्य के अस्तित्व पर संघर्ष का साया जरुर गहरा हो जाता हैं l तो आइए हम सब मिल कर प्रयास करे और जीवन में सत्य का सम्मान करे l