2025-04-11 21:30:37
धूप थी अज्ञान की, अंधकार था घना, उग आया फूले-सा एक सूर्य अनमना। ज्योति बनी वह वाणी, दीप बना विचार, टूटे पाखंडों के जाल, जागा हर परिवार। जन्मा वह खेतों में, पर मन था आकाश, शूद्र कहे गए जिन्हें, उनमें भर दी प्रकाश। पढ़ा स्वयं, फिर कहा – सबको पढ़ना है, न्याय की माटी में, बीज समता बोना है। नारी को जब बंधन ने छीन लिया अधिकार, सावित्री संग उन्होंने लिख डाली नई बात। पहली शिक्षिका बनी वह, घर ही बना पाठशाला, कहा – “नारी शिक्षित हो, तभी बुझे अंधियाला।” ब्राह्मणवाद के ढोंग से खोला सच का द्वार, कर्मकांड से हट के फूले ने रचा विचार। कहा – “जाति नहीं जन्म से, कर्म से हो माप”, इंसान वही जो इंसानियत को दे पंखों का ताप। सत्यशोधक सभा रची, सच्चाई की खोज, धर्म नहीं हो भेद का, हो सबमें समबोध। न राजा का अभिमान हो, न गरीब का रोना, ऐसा हो समाज जहां हर जन को हो जीना। न खेतों में हो बेगारी, न मंदिर में अपमान, हर हाथ में हो शिक्षा, हर दिल में सम्मान। दलित, शोषित, नारी के वह बन गए पुकार, फूले की वाणी बनी, जन-जन की आवाज़। आज भी जब कोई बच्चा, स्कूल पहली बार जाए, जब कोई नारी बोले, जब कोई शोषण से लड़े, तो समझो फूले अब भी ज़िंदा हैं, चलते साथ हमारे, उनकी क्रांति अब भी गूंजे, भारत माँ के द्वारे।