2024-01-01 17:05:23
बांदा। हेपेटाइटिस-सी (काला पीलिया) बीमारी उत्तर भारत में खामोश महामारी का रूप ले रही है। हेपेटाइटिस-सी बीमारी के विषाणुओं का संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में रक्तदान द्वारा या विसंक्रमित उपकरणों जेसे इन्जेक्शन, दांतो के डॉक्टर के उपकरण व एक्यूपंक्चर के उपकरण आदि के प्रयोग से या दूषित निजी प्रशाधन जेसे दांत साफ करने वाले ब्रश, रेजर या फिर नेलकटर आदि आपस में बाटने से होता है।
आम तौर पर हेपाटाइटिस-सी से पीड़ित व्यक्ति कई महीनों तक खुद को थका हुआ और कमजोर महसूस करता है। इसके अलावा जिस्म में दर्द, बुखार, भूख न लगना, जी मचलना, पेट में दर्द, दस्त या पीलिया आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं। रोग पुराना हो जाने पर जिगर सिकुड़ने लगता है और जिगर पर उभार से हो जाते है।
इन्हें नोडयूल कहा जाता है तथा जिगर प्राय सख्त भी हो जाया करता है। इस अवस्था को सिरोसिस ऑफ़ लिवर कहते है। इस रोग को आयुर्वेद के प्राचीन ग्रन्थों में यकृद्वाल्योदर कहा गया है। सिरोसिस ऑफ़ लिवर के बाद कई दफा रोगी के पेट में पानी भी भर जाता है इस अवस्था को जलोदर (पेट में पानी भरना) या एसाइटिस कहा जाता है तथा कभी-कभी लिवर में केन्सर भी हो जाता है । यह जानकारी केनेडियन कॉलेज ऑफ आयुर्वेद एंड योग के प्रमुख तथा आयुर्वेदाचार्य डॉ हरीश वर्मा ने एक बेबिनार में दी।
हेपेटाइटिस-सी बीमारी का डायग्नोसिस सामान्यतः खून की जांच द्वारा किया जाता है। रोगी के शरीर में हेपाटाइटिस-सी के वायरस की मात्रा (वायरस लोड) का टेस्ट किया जाता है व वायरस की किस्म (जेनोटाईप) का पता लगाया जाता है। खून में मौजूद एनजाइम्स (एस. जी. ओ. टी, एस. जी. पी. टी.) के स्तर का पता लगाया जाता है। इसके अतिरिक्त खून में प्रोटीन्स, बिलीरुबिन, एल्ब्युमिन व प्रोथोमिबन की जांच की जाती है।
डॉ हरीश वर्मा ने बताया कि जहाँ आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अति गंभीरवस्था में पंहुच चुके रोगियों को उपचार देने से हाथ खड़े कर देता है वहाँ 5000 वर्ष पुरानी भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद की कारगरता आज भी बरकरार है । डॉ हरीश वर्मा ने आयुर्वेद के प्राचीन चिकित्सा ग्रन्थों के आधार पर ही हेपेटाइटिस-सी के रोगियों के लिए दो प्रकार की जड़ी बूटियों के समूह के मिश्रण से एक खास फार्मूला तेयार किया है।
इसके प्रथम समूह में गिलोय, कालमेघ, भृंगराज, अपामार्ग, पुनर्नवा, मूली, हरिद्रा, नीम, कुमारी आदि जड़ी बूटियां दी जाती हैं जो कि रक्त में हेपेटाइटिस-सी वायरस के स्तर को कम करके जिगर की क्षति ग्रस्त कोशिकाओ को नया बनाती हैं । दूसरे समूह में अश्वगंधा, शतावरी, अर्जुन, आंवला, तुलसी, दालचीनी, पिप्पली इत्यादि जड़ी बूटियां दी जाती हैं जो कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाकर रक्त में हेपेटाइटिस-सी वायरस के स्तर को कम करती हैं तथा जिगर में से विजातीय द्रव्यों को निकालकर इम्यून सिस्टम की कार्यक्षमता को बढ़ाती है। यह दो प्रकार की जड़ी बूटियों के समूह का मिश्रण एक ही समय पर दिया जाता है ।
बेबिनार में डॉ हरीश वर्मा ने कहा कि हेपेटाइटिस-सी के रोगियों के लिए तेयार किया गया यह आयुर्वेदिक फार्मूला बहुत ही सस्ता है तथा इन आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ता। उन्होंने रोगियों के लिए हेल्पलाइन नंबर 9910672020 भी जारी किया है । डॉ हरीश वर्मा बताते है कि आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का यह फार्मूला हेपेटाइटिस-सी के लिये रामबाण है और अब तक हेपेटाइटिस-सी तथा सिरोसिस ऑफ़ लिवर के हजारों रोगी इस फार्मूले से लाभ उठाकर स्वस्थ जीवन व्यतीत कर रहे हैं!