ईश्वर पर श्रद्धा व निष्ठा संपूर्ण संकट का सामना करने की देती है शक्ति

श्रीमद्भागवत कथा अमृत से भी अधिक प्रभावशाली : सुशील शास्त्री
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2025-05-05 19:09:19

जगम्मनपुर, जालौन। भगवान के प्रति अटूट श्रद्धा व सत्यनिष्ठा हमें किसी भी प्रकार के संकट का सामना करने की शक्ति देती है और अंत में सत्य की ही विजय होती है। ग्राम जगम्मनपुर में महावीर जी के मंदिर पर आयोजित श्रीमद् भागवत ज्ञान यज्ञ सप्ताह के चौथे दिन की कथा में प्रसिद्ध कथा वक्ता पंडित सुशील शुक्ला शास्त्री औरैया ने धर्म पथ पर चलते हुए ईश्वर के प्रति आस्था विश्वास व श्रद्धा रखने के महत्व को बताया । शास्त्री श्री शुक्ल ने भगवान नरसिंह अवतार की कथा में बताया कि दैत्यराज हिरण्यकश्यप जैसे क्रूर अहंकारी एवं स्वयं को ईश्वर से भी श्रेष्ठ मानने वाले असुर के घर जब ईश्वर पर असीम श्रद्धा एवं विश्वास रखने वाला प्रहलाद नामक भक्त जन्म लेता है तो भगवान को भी उसकी रक्षा के लिए तप्त लोहे की खंबे को फाड़ कर आधा नर और आधा सिंह अर्थात नरसिंह रूप धारण करके प्रकट होना पड़ता है। यदि हम ईश्वर की प्रति निष्ठावान रहें तो हमें कहीं तपस्या करने के लिए जाने की आवश्यकता नहीं है हमारे कल्याण के लिए स्वयं परमात्मा किसी न किसी रूप में हमारे साथ खड़ा मिलेगा। उन्होंने बताया कि परमात्मा का ध्यान एवं उनका नाम जप तथा श्रीमद् भागवत की कथा का रस अमृत से भी अधिक फलदाई एवं मधुर है। इस विषय पर एक प्रसंग सुनाते हुए आचार्य सुशील महाराज ने बताया कि राजा परीक्षित द्वारा ऋषि समीक के गले में मरा हुआ सर्प डालने से क्रोधित हुए उनके पुत्र श्रृंगी ऋषि द्वारा राजा परीक्षित को 7 दिन में तक्षक नाग के द्वारा डसे जाने से मृत्यु होने का श्राप दिए जाने पर जब राजा परीक्षित ने आत्मशांति एवं स्व कल्याण हेतु शुकदेव भगवान से उपाय पूछा तब सुखदेव जी भागवत कथा सुनने को तैयार हुए उसी समय देवताओं द्वारा राजा परीक्षित को अमृत पिलाकर अमर करने के प्रस्ताव पर शुकदेव जी ने देवताओं से पूछा की क्या यह तय है कि अमृत पीने के बाद भी राजा परीक्षित की मृत्यु नहीं होगी, और यदि अमृत पीने से उन्हें अमरत्व प्राप्त भले ही हो जाए लेकिन परमात्मा की कृपा एवं मोक्ष प्राप्त नहीं हो सकता क्योंकि जिसने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है ,‌ हां इतना तय है कि श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण करने वाले पर परमात्मा की कृपा अवश्य होती है। भगवान श्री कृष्ण जन्म की सुंदर कथा में कंस द्वारा अपने प्राण रक्षा के अनेक व पूर्णतम उपाय किए गए लेकिन विधि के विधान को कोई नहीं टाल सकता जो होना तय है वह होकर रहेगा । कंस के अत्याचार से कराह रही मानवता की रक्षा के लिए भगवान श्री कृष्ण माता देवकी के गर्भ से जन्म लेकर इस पृथ्वी से पाप का हरण करते हैं । कृष्ण जन्मोत्सव प्रसंग के अवसर पर कथा पंडाल में उपस्थित स्त्री पुरुष श्रोताओं ने सोहर और ज्योनार गीत पर भाव विभोर हो जमकर नृत्य किया एवं पुष्प वर्षा हुई। चौथे दिन की कथा के अंत में व्यास जी ने बताया यह संसार नाट्य मंच है हम सब भगवान के द्वारा रचित कलाकार हैं जिसकी डोर भगवान के हाथ में है । हम अपने जीवन में जैसा अभिनय करेंगे परमात्मा हमें पारिश्रमिक के रुप में हमें वैसा ही कर्मफल प्रदान करेंगे । अतः सभी लोग सर्वे भवंतु सुखना, एवं वसुदेव कुटुंबकम की भावनाओं के साथ जीवन में आगे बढ़े , जब हम अपना अच्छा बुरा कर्म परमात्मा को अर्पित करेंगे तो हमारा कल्याण अवश्य होगा।

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