छत्तीसगढ़ी महतारी की आरती के अकेले रचनाकार डॉ पाटिल

छत्तीसगढ़ महतारी की वंदना में गीतकारों ने छत्तीसगढ़ी भाषा में कई गीत और भजनों की रचना कर
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2025-04-22 19:08:27

यूं तो छत्तीसगढ़ महतारी की वंदना में गीतकारों ने छत्तीसगढ़ी भाषा में कई गीत और भजनों की रचना कर छत्तीसगढ़ महतारी की महिमा का बखान अपने अपने अंदाज में किया है किंतु आज तक किसी भी गीतकार ने छत्तीसगढ़ महतारी की आरती की रचना नहीं की थी, इस कमी को पूरा किया है छत्तीसगढ़ महतारी के दुलरवा अउ गुणवान बेटा अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त गीतकार, संगीतकार, गायक तथा संगीत कंपोजर डॉ कृष्ण कुमार पाटिल ने। डॉ कृष्ण कुमार पाटिल वैसे तो संगीत की हर विधा में सिद्धहस्त कलाकार हैं। इनको छत्तीसगढ़ी संगीत कला पर विशिष्ट शोध करने के अतिमहत्वपूर्ण कार्य के लिए मानद उपाधि प्रदान की गई है। डॉ पाटिल ने छत्तीसगढ़ी लोक संगीत के क्षेत्र में एक अभिनव प्रयोग किया है।छत्तीसगढ़ी गीतों की रचना भारतीय शास्त्रीय संगीत के उपशास्त्रीय रागों पर निबद्ध करते हुए छत्तीसगढ़ी संगीत विधा को उन्होंने नई ऊंचाई प्रदान करते हुए राष्ट्रीय एवं अंतराष्ट्रीय स्तर पर एक नई पहचान दी है। उनके गीतों में छत्तीसगढ़ की भाषा, माटी की महक, रिश्तों का माधुर्य, संस्कृति की गहरी छाप, विशुद्ध छत्तीसगढ़ी शब्दों का प्रयोग जो लुप्तप्राय हो चुके हैं, का सटीकता से प्रयोग, कर्णप्रिय संगीत, मनमोहक आवाज और माहौल को झूमने के लिए मजबूर करने वाला झरने की निर्मल धारा की तरह झर झर झरती हुई सतत प्रवाहित सुर–धारा डॉ कृष्ण कुमार पाटिल की विशिष्ट पहचान है। प्रस्तुत आरती में मांदर की थाप जैसा रिदम है। छत्तीसगढ़ी लोक कला में संगीत की पहचान मोहरी का सुंदरतम प्रयोग है। सुर ताल मन और मस्तिष्क को शांत और आध्यात्मिक वातावरण पैदा करने वाला है। आरती में जिन शब्दों का उपयोग हुआ है उन शब्दों का भी छत्तीसगढ़ की संस्कृति से मौलिक सम्बन्ध है जैसे फुलकसिया थारी, दीया बारना (एक आध्यात्मिक वाक्यांश जो ज्ञान रूपी प्रकाश को प्रकाशित कर अज्ञानरुपी अंधकार को दूर भगाने का द्योतक है), साजा और सराई पेड़ों का उल्लेख (पुरातन काल में छत्तीसगढ़ साजा सराई के पेड़ों के जंगलों से अटा पड़ा था ये छत्तीसगढ़ की विशिष्ट भौगोलिक पहचान थी ), गोंदा और चिरैया फूल, धान (छत्तीसगढ़ धान का कटोरा कहलाता हैं) एवं कोठी (छत्तीसगढ़ में किसान परिवार अपनी कृषि उपज धान को संगृहीत करके रखने का एक विशिष्ट स्थान बनाता है जो चारो तरफ से दीवारों से घिरा रहता है ऊपर खुला रहता है धान को भंडारित करने के बाद ऊपर पैरा/पुआल की एक परत बिछा देता है और ऊपर में मिट्टी और गोबर की छबाई कर देता है और उस कोठी के जमीन के लेवल में एक छेद होता है जिससे जरूरत के मुताबिक किसान संगृहीत धान में से समय समय पर जरूरत के हिसाब से धान का स्टॉक निकाल कर उपयोग करता रहता हैं) आदि शब्द डॉ कृष्ण कुमार पाटिल की इस रचना को छत्तीसगढ़ की संस्कृति से गहराई से जोड़ते हैं। इस आरती को आप भी सुने और माहौल का आनंद लेते हुए छत्तीसगढ़ की सुग्घर संस्कृति को आत्मीय जुड़ाव के साथ महसूस करे।

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