2023-09-15 12:57:02
रामपुर। जनपद में लगभग 20,000 से 25,000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में प्रति वर्ष ग्रीष्मकालीन धान की खेती की जाती है। ग्रीष्मकालीन धान की रोपाई माह फरवरी के अन्त से प्रारम्भ होकर मार्च के अन्त तक की जाती है। धान की रोपाई के लिए खेत में पानी भरकर पडलिंग की प्रक्रिया अपनाई जाती है। पडलिंग में ट्रेक्टर का जमीन पर अत्यधिक भार पड़ता है, जिसके कारण मृदा की सतह ठोस हो जाती है। मृदा की सतह ठोस हो जाने के कारण वर्षा जल भूमि के अन्दर कम मात्रा में जाता है तथा भूमि की जलधारण क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। परिणामस्वरूप वर्षा जल बहकर नालों के माध्यम से खेत से बाहर चला जाता है। ग्रीष्मकालीन धान में पानी की अत्याधिक आवश्यकता होती है तथा फसल में हर चार से पांच दिन के अन्तराल पर सिंचाई होने के कारण अत्याधिक मात्रा में भूमिगत जल का दोहन होता है। चूंकि इस मौसम में वर्षा की कोई संभावना नहीं होती है,
फलस्वरूप सिंचाई के लिए डीजल चालित पम्प सेटों का उपयोग सिंचाई में किया जाता है, जिसके कारण वायु प्रदूषण भी उत्पन्न होता है। अत्याधिक मात्रा में जल के दोहन से भू-गर्भ जल निरन्तर नीचे जा रहा है। जिसके कारण निकट भविष्य में जल संकट उत्पन्न होने की प्रबल सम्भावनाएं है।
जिलाधिकारी रविन्द्र कुमार मॉदड़ ने बताया कि एक अनुमान के अनुसार एक किग्रा चावल उत्पादन में लगभग 4800 लीटर जल की आवश्यकता होती है, जो शत-प्रतिशत भूमिगत जल के माध्यम से पूरी की जाती है।
ग्रीष्मकालीन धान के स्थान पर अन्य कम पानी चाहने वाली फसलें जैसे- उड़द, मूंग, सूरजमुखी, कद्दू वर्गीय फसलें आदि विकल्प के रूप में उपलब्ध हैं। उड़द, मूंग, सूरजमुखी एवं कद्दू वर्गीय फसलों के पकने की अवधि अत्यन्त कम होती है तथा ग्रीष्मकालीन मौसम के लिए पूर्णतः उपयुक्त होती हैं एवं इनकी जल की मांग अत्यधिक कम होती है, विगत वर्ष जल संचयन के क्षेत्र में जनपद द्वारा अथक प्रयास किए गए। मनरेगा लघु सिंचाई, कृषि विभाग के द्वारा वर्षा जल संचयन हेतु चैक डैम निर्माण, चैक डैम डिसिल्टिंग, कन्टूर बांध, खेत तालाबों का निर्माण, फिल्ड बन्ड, तालाबों का जीर्णाेद्धार, अमृत सरोवरों का निर्माण, तालाबों में वॉटर रिचार्जिंग साफ्ट, सर्फेस डाइक (आर्ट ऑफ लिविंग के द्वारा), वॉटर रिचार्ज पिट, सोक पिट आदि का निर्माण व्यापक स्तर पर कराया गया।
उन्होंने बताया कि सरकारी भवनों, निजी भवनों, निजी/सरकारी विद्यालयों, औद्योगिक प्रतिष्ठानों के भवनों पर अत्याधिक संख्या में रेन वॉटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ’’कैच द रेन अभियान’’ के अन्तर्गत स्थापित कराए गए। वर्षा के संरक्षण में वृक्षों का अत्याधिक महत्व है जनपद में इस वर्ष 2547760 पौधारोपण कराया गया। इन प्रयासों के फलस्वरूप् जनपद के डार्क श्रेणी के 04 विकास खण्ड चमरौआ, सैदनगर, स्वार तथा शाहबाद डार्क श्रेणी से बाहर होकर सुरक्षित श्रेणी में आ गए हैं। जनपद के प्रगतिशील कृषक, मीडिया, कृषक समूहों, एफपीओ आदि के द्वारा भी ग्रीष्मकालीन धान के उत्पादन को रोकने के लिए समस-समय पर अनुरोध किया जाता रहा है।
उन्होंने बताया कि ग्रीष्मकालीन धान के उत्पादन में अत्याधिक मात्रा में भूमिगत जल के दोहन से विकास खण्डों की डार्क श्रेणी में जाने की सम्भावनाओं से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। ग्रीष्मकालीन धान की कटाई मुख्यत: कम्बाईन हार्वेस्टर के द्वारा की जाती है। कम्बाईन हार्वेस्टर से फसल कटने के कारण उत्पन्न पराली को जलाने की समस्याएं भी बढ़ जाती है, जिसके कारण पर्यावरण प्रदूषण होता है एवं भूमि में उपस्थित लाभदायक जीव एवं जीवाश्म कार्बन जलकर नष्ट हो जाती है, जिसके फलस्वरूप भूमि की उर्वरा शक्ति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके साथ यह भी अवगत कराना है कि मा० उच्चतम न्यायालय एवं मा० राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण नई दिल्ली द्वारा दिए गए दिशा-निर्देश के अन्तर्गत पराली जलाना प्रतिबन्धित किया गया है।
जनपद में खरीफ एवं रबी मौसम की फसलों के उपयोग ही उर्वरक के लक्ष्य प्राप्त होते हैं, जिसके अनुरूप ही जनपद में उर्वरकों की आपूर्ति सुनिश्चित हो पाती है। ग्रीष्मकालीन धान के उत्पादन में कृषकों द्वारा अधिक उत्पादन लेने के उद्देश्य से अत्याधिक मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार खरीफ एवं रबी मौसम की फसलों के उत्पादन हेतु उपलब्ध उर्वरक का उपयोग ग्रीष्मकालीन धान के उत्पादन में हो जाता है, जिसके फलस्वरूप खरीफ एवं रबी फसलों के उत्पादन में उर्वरकों की कमी हो जाती है।
ग्रीष्मकालीन धान/साठा धान के लगाने से भूगर्भ जल स्तर तेजी से नीचे जाने एवं पर्यावरण पर पड़ने वाले दुष्परिणामों के दृष्टिगत ग्रीष्मकालीन धान की खेती प्रतिबन्धित की जाती हैं।
उन्होंने बताया कि इस आदेश का कढाई से अनुपालन सुनिश्चित करने एवं वैकल्पिक फसलों को प्रोत्साहित करने के लिए तहसीलवार कमेटी गठित की गई है जिसमें सम्बन्धित उपजिलाधिकारी अध्यक्ष, सम्बन्धित तहसीलदार सदस्य, सम्बन्धित उप सम्भागीय कृषि प्रसार अधिकारी सदस्य, सम्बन्धित वि0व0वि0कृषि/सहा0वि0अ0(कृषि रक्षा) सदस्य, एवं जिला समन्वयक, यू०पी० डास्प सदस्य के रूप में नामित किए गए हैं।