हकृवि के वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किए गए एटलस को मिला कॉपीराइट

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग
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2025-03-19 19:34:36

चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के मृदा विज्ञान विभाग व भारतीय मृदा विज्ञान संस्थान भोपाल के वैज्ञानिकों की टीम ने अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत मिट्टी और पौधों में सूक्ष्म और माध्यमिक पोषक तत्वों और प्रदूषक तत्वों की शोध परियोजना में ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) का उपयोग करके ‘हरियाणा राज्य की मृदाओ में सूक्ष्म एवं गौण पोषक तत्वों का ताल्लुकवार स्तर: एटलस शीर्षक के अंतर्गत एटलस प्रकाशित करने पर रजिस्ट्रार ऑफ कॉपीराइट (इंडिया) द्वारा साहित्यिक श्रेणी के अंतर्गत कॉपीराइट प्रदान किया गया है। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बी.आर. काम्बोज ने इस एटलस के प्रकाशन के लिए शोधकर्ताओं की पूरी टीम की प्रशंसा की और भविष्य में इस कार्य को जारी रखने के लिए प्रोत्साहित भी किया। उन्होंने बताया कि मिट्टी एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है। संसार के समस्त जीवों का अस्तित्व और कल्याण मिट्टी के स्वास्थ्य से अभिभाज्य रूप से जुड़ा हुआ है। कृषि में अधिकतम उत्पादकता के लिए प्रयोग किए जाने वाले रसायन तथा असंतुलित उर्वरकों के प्रयोग में मिट्टी के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव डाला है। जिसके परिणाम स्वरुप मिट्टी में प्रमुख पोषक तत्वों के साथ-साथ सूक्ष्म और गौण पोषक तत्वों की सांद्रता में काफी कमी हो गई है। जिसने कृषि उत्पादकता के साथ-साथ उपज की गुणवत्ता को प्रभावित किया है। सीमित प्राकृतिक संसाधनों की कमी के कारण बढ़ती जनसंख्या को पर्याप्त और पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने की मांग को पूरा करना एक प्रमुख वैश्विक चिंता बनी हुई है। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ वर्षों से सूक्ष्म और गौण पोषक तत्वों की कमी ने वैज्ञानिकों, नीति निर्माताओं और अन्य किसान हितधारकों का ध्यान उनके प्रबंधन की ओर आकर्षित किया है। गुणवत्ता युक्त फसल उत्पादन तथा औसत तत्वों के उचित प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र की पहचान हेतु हरियाणा राज्य की मिट्टी में ब्लॉक स्तर पर सूक्ष्म और गौण पोषक तत्वों के पर्याप्त या कमी वाले क्षेत्र की पहचान कर उनका एटलस के माध्यम से चित्रण करना बहुत महत्वपूर्ण व सराहनीय कार्य है। इस एटलस में प्रत्येक (सूक्ष्म और गौण) पोषक तत्व की उपलब्धता स्थिति को ताल्लुकवार मानचित्र पर अलग-अलग रंग भिन्नताओं के साथ अलग-अलग श्रेणियां में दिखाए जाने से उन क्षेत्रों के बेहतर दृश्यंाकन में मदद मिलेगी, जिन पर किसी तत्व विशेष की कमी के कारण अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है

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