2025-03-24 18:44:32
श्री बालाजी भक्त मंडल एवं श्री श्याम सुंदर अपना परिवार द्वारा पुराना गवर्नमेंट कालेज मैदान में श्री श्याम फाल्गुन महोत्सव का भव्य आयोजन किया। महोत्सव में कोलकाता से विशेष रूप से मंगवाए गए फूलों से बाबा श्याम का भव्य श्रृंगार किया गया। महोत्सव में श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध करने भजन सम्राट शुभम रूपम (कोलकाता), हरमिंदर सिंह रोमी, समीर बंसल ( हिसार), कृष्ण गाबा (हिसार) पँहुचे। कलाकारों ने बाबा के सुंदर भजनों से व बाबा की कथा से उपस्थित श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध किया। कलाकारों ने बताया कि सच्चे ह्रदय से बाबा की आराधना करने से बाबा हमारी मनोकामना पूर्ण करते हैं। उन्होंने बताया कि हम सभी जानते हैं आज के समय में भगवान खाटू श्याम के प्रति लोगों की कितनी गहरी आस्था जुड़ी हुई है। घर हो या गाड़ी हर किसी के पास खाटू श्याम की कोई तस्वीर कोई लॉकेट या कोई मूर्ती देखी जा सकती है। लेकिन कभी आपने गौर किया हो, ज्यादातर खाटू श्याम नाम के आगे ‘’हारे का सहारा’’ लगाया जाता है। जिसके अर्थ के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं। उनके भक्तों के लिए इस शब्द का मतलब बस कष्टों को दूर करने वाले भगवान से होगा, लेकिन बता दें इसे कुछ और रहस्यों से भी जोड़ा जाता है। अगर आप खाटू श्याम जाने का प्लान बना रहे हैं तो पहले ‘हारे का सहारा’ कहने से पहले उसका मतलब जान लें। जिन्हें आप खाटू श्याम जी के नाम से जानते हैं और उन्हें पूजते हैं, वो कोई और नहीं बल्कि पांडवों के भीम के पोते और घटोत्कच के बेटे हैं। इनका असली नाम बर्बरीक है। प्राचीन कथाओं के मुताबिक बर्बरीक बचपन से ही वीर योद्धा थे और उन्हें भगवान कृष्ण ने ही कलियुग में अपने नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था। इस वरदान के पीछे एक बड़ी ही रोचक बात छिपी हुई है। महाभारत युद्ध के समय बर्बरक भी इस युद्ध में शामिल होना चाहते थे, क्योंकि उन्हें पता था कि कौरवों की तुलना में पांडवों की सेना बेहद कम है। ऐसे में पांडवों के लिए लड़ाई जीतना काफी मुश्किल था। बर्बरीक ने मां से कहा कि वे युद्ध में उसी का साथ देंगे जो लड़ाई हार रहा होगा। मां की आज्ञा लेने के बाद बर्बरीक युद्ध के मैदान में पहुंचे और देखा युद्ध में कौरवों का पक्ष कमजोर है। ऐसे में उन्हें कौरवों की ओर से लड़ाई लड़ने का फैसला लिया। इस वजह से उन्हें ‘हारे का सहारा’ कहते हैं। जब भगवान कृष्ण को बर्बरीक के युद्ध में आने की बात पता चली तो वो समझ गए कि बर्बरीक जिस पक्ष से लड़ेंगे उसकी जीत जरूर होगी। ऐसे में श्रीकृष्ण ब्रह्मा का भेष बदलकर बर्बरीक के पास पहुंच गए और उनसे दान में उनका शीश लेने की बात कहने लगे। बर्बरीक ने उन्हें शीश दे दिया, जिसके बाद श्री कृष्ण ने उन्हें वरदान दिया कि कलियुग में तुम मेरे नाम से जाने और पूजे जाओगे। कहते हैं अगर कोई भक्त खाटू श्याम भगवान के पास अपनी मन की कामना लेकर जाता है, तो उसकी इच्छा जरूर पूरी होती है। इस मौके पर आयोजन समिति ने कार्यक्रम में पहुंचे मुख्य मेहमानों का वह शहर के गणमान्य व्यक्तियों का स्मृति चिन्ह से सम्मान किया। इसके अलावा समिति से जुड़े सेवादारों को भी स्मृति चिह्न दिया गया। इसके अलावा आयोजन समिति सदस्यों ने आए श्रद्धालुओं के लिए विशाल भंडारे का आयोजन भी किया। महोत्सव में आयोजन समिति के संस्थापक सुरेश चन्द्र जैन (सिसाय वाले)मंडल के संरक्षक कुलप्रकाश बन्टी गोयल श्री बालाजी भक्त मंडल के प्रधान हितेश अग्रवाल प्रधान रमेश जिंदल के अलावा समिति के अन्य सदस्यों ने व्यवस्था को संभाला।