2025-03-11 19:37:12
कृत्रिम बुद्धिमता आज के युग की सबसे क्रांतिकारी तकनीकों में से एक है, जिसने जीवन के हर क्षेत्र में गहरा प्रभाव डाला है। यह एक ऐसी तकनीक हैं जिसके द्वारा कंप्यूटर और मशीनों को मानव जैसे सोचने, तर्क करने, सीखने और निर्णय लेने की क्षमता प्रदान की जाती है। यह मशीनों को स्वचालित रूप से समस्याओं को हल करने, डेटा का विश्लेषण करने और पूर्वानुमान लगाने में सक्षम बनाती है। सरल शब्दों में, एआई एक ऐसी प्रणाली है जो मानव मस्तिष्क की तरह सोचने और कार्य करने का प्रयास करती है, लेकिन डिजिटल रूप से। जॉन मैकार्थी को कृत्रिम बुद्धिमता का जनक माना जाता है। मैकार्थी ने ही 1955 में कृत्रिम बुद्धिमता शब्द गढ़ा और 1956 में डार्टमाउथ कॉलेज में पहला एआई सम्मेलन आयोजित किया । इन्होंने AI के क्षेत्र की नींव रखी। इनकी सोच और इनके द्वारा विकसित की गई नई तकनीकों ने एआई के विकास को दिशा प्रदान की। हम अपने जीवन में हर वस्तु के दो पहलुओं का सामना करते है- एक अच्छा और एक बुरा। कृत्रिम बुद्धिमता का उदय हमारे समय का एक महत्त्वपूर्ण मोड़ है, जो मानव जाति के लिए अद्भुत संभावनाओं के साच-साथ गंभीर चुनौतियाँ भी प्रस्तुत करता है। एआई से मशीने बिना मानवीय हस्तक्षेप के कार्य कर सकती है। जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ती है। औद्योगिक रोबोट और स्मार्ट मशीनें तेजी से और अधिक कुशलता से काम कर सकती हैं। मेकिन्से की एक रिपोर्ट के अनुसार, एआई विभिन्न उद्योगों में उत्पादकता को 20-30% तक बढ़ा सकता है। चिकित्सा क्षेत्र में AI आधारित सिस्टम बीमारियों का शीघ्र पता लगाने और उपचार की सिफारिश करने में सहायक होते हैं। रोबोटिक सर्जरी और व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल में एआई की महत्वपूर्ण भूमिका है। पाथ एआई एक ऐसी कंपनी है है जो कैंसर के निदान, में सुधार के लिए मन का प्रयोग करती है। चिकित्सा के क्षेत्र के साथ-साथ एआई शिक्षा के क्षेत्र में भी बहुत उन्नति कर रहा है। यह प्रत्येक छात्र की सीखने की गति और शैली के अनुसार शिक्षा को अनुकूलित करने में मदद करता है। इसी तर्क को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने मार्च 2024 में केरल के तिरुवनंतपुरम के एक स्कूल में आइरिस नामक एक टीचर को लॉन्च किया। यह एक एआई टीचर है जिसे मेकरलैब्स एडुटेक कंपनी ने बनाया है। यह बच्चों को पढ़ाती है उनके सवालों के जवाब देती है व उन्हें व्यक्तिगत रूप से सीखने में मदद करती है। इसके अलावा भारत के एआई आधारित उपकरणों में SUVAS (सुवास) का नाम भी आता है जो भारतीय भाषाओं में टेक्स्ट और वॉयस को समझने और उत्पन्न करने में सक्षम है। यह खासकर शिक्षा और भारतीय अदालतों में न्यायिक दस्तावेजों का अनुवाद करने के लिए, संसद में होने वाली बहसों का अनुवाद करने के प्रयोग में आता है। एआई से होने वाले फायदों के साथ-साथ नकारात्मक प्रभावों को जानना भी बहुत जरूरी है। स्वचालन के कारण कई नौकरियाँ समाप्त हो रही है। वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2025 तक एआई के कारण 85 मिलियन नौकरिया खत्म हो सकती है। एआई केवल उपलब्ध डेटा के आधार पर कार्य करता है। यह यह नई सोच या रचनात्मकता विकसित नहीं कर सकता। कला, लेखन और नवाचार जैसे क्षेत्रों में एआई की सीमाएँ होती है। एआई सिस्टम डेटा का गहराई से विश्लेषण करता है, जिससे व्यक्तिगत जानकारी की गोपनीयता का खतरा बढ़ जाता है। एआई को हैक करके इसका दुरुपयोग किया जा सकता है।, जिससे साइबर हमलों और डेटा चोरी का खतरा बढ़ जाता है। एआई पर अधिक निर्भरता से लोग सोचने और निर्णय लेने की क्षमता खो सकते हैं। इसलिए, एआई का विकास और उपयोग मानव हित को ध्यान में रखते हुए संतुलित तरीके से किया जाना चाहिए। सरकारों, वैज्ञानिकों और उद्योग जगत को मिलकर ऐसे नियम और नैतिक दिशानिर्देश बनाने चाहिए, जो एआई के संभावित खतरों को कम करें और इसके लाभों को अधिकतम करें। एआई मानवता के लिए वरदान भी बन सकता है और अभिशाप भी- यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इसका उपयोग कैसे करते हैं। सही दिशा में प्रयास किए जाएँ, तो एआई न केवल तकनीकी विकास को गति देगा, बल्कि एक सुरक्षित और समृद्ध भविष्य का आधार भी बनेगा।