160 किमी. प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ने वाली रैपिड रेल मिनटों में दिल्ली से मेरठ पहुंचेगी। यह 2023 के अंत तक चलेगी

दिल्ली और मेरठ जैसे दो तारीखी शहर करीब आएंगे
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2023-07-09 14:56:19

रमन श्रीवास्तव , वरिष्ठ पत्रकार . लेखक एवं टिप्पणीकार इस ट्रांसपोर्ट सिस्टम से पूरे एनसीआर को जोड़ने की कवायद पूरी होते ही राजधानी और आसपास के शहरों को पंख लग जाएंगे। दिल्ली और मेरठ जैसे दो तारीखी शहर करीब आएंगे, वहीं राजस्थान, हरियाणा के बाहरी इलाकों तक दिल्ली वालों की पहुंच भी आसान हो जाएगी।

परियोजना पूरी होने पर दिल्ली-एनसीआर की परिवहन व्यवस्था में बड़ा बदलाव देखने मिलेगा। आपको याद होगा कि 2003 में आई मेट्रो रेल ने दिल्ली की परिवहन व्यवस्था में क्रांतिकारी भूमिका निभाई। रैपिड रेल भी सड़कों से गाड़ियों का बोझ कम करने में मददगार साबित होगी। रैपिड रेल योजना में किसानों का भी ख्याल रखा गया है। माल ढुलाई की सुविधा को भी इस परियोजना का हिस्सा बनाया गया है, जिससे ताजे दूध, फल और सब्जियां दिल्ली वालों को हर सुबह मिल सकेंगी। अमेजन, फ्लिपकार्ट और बिग बॉस्केट जैसी कंपनियों को भी ग्राहकों तक सामान पहुंचाने में आसानी होगी।

दिल्ली-गाजियाबाद-मेरठ रूट पर चलने वाली रैपिड ट्रांजिट रेल के दिल्ली और यूपी में कई स्टेशन होंगे। रेल की फ्रीक्वेंसी भी ज्यादा रहेगी और हर पांच-दस मिनट के अंतराल से रैपिड ट्रेन स्टेशन पर पहुंचेगी। रैपिड रेल में साहिबाबाद, गुलधर, गाजियाबाद, दुहाई डिपो स्टेशन वगैरह बनाए गए हैं। रैपिड रेल के स्टेशन निजामुद्दीन/सराय काले खां, न्यू अशोक नगर, आनंद विहार, मुराद नगर, मोदीनगर दक्षिण, मोदीनगर उत्तर, मेरठ दक्षिण, परतापुर, रिठानी, शताब्दी नगर, ब्रह्मपुरी, मेरठ सेंट्रल, भैसाली, बेगम पुल, मेरठ उत्तर और मोदीपुरम में भी होंगे। ऐसे में दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा के कुछ हिस्से खासकर साइबर सिटी गुरुग्राम वगैरह में विकास की रफ्तार तेज हो जाएगी।

अभी केंद्रीय आवासन एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा जारी 2022 की देश के शहरों की स्वच्छता सर्वेक्षण रिपोर्ट में नोएडा बेस्ट सेल्फ सस्टेनेबल सिटी की श्रेणी में पुरस्कार पाने वाले अकेला शहर घोषित हुआ। दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों की श्रेणी में गाजियाबाद को देश भर में 12वां स्थान मिला जबकि उत्तर प्रदेश में यह शहर पहले स्थान पर रहा। एनसीआर का और कोई शहर स्वच्छता सर्वेक्षण 2022 की सूची में शामिल नहीं है।

नोएडा और गाजियाबाद के प्रदशर्न का श्रेय वहां के स्थानीय निकायों और उत्तर प्रदेश सरकार को दिया जाना चाहिए। आने वाले दो-ढाई सालों बाद दिल्ली से नोएडा-ग्रेटर नोएडा शिफ्ट करने वालों का तादाद और तेज होगी। बेहतर सड़क लिंक, चौबीस घंटे पानी की सप्लाई तथा यहां से देश के उत्तर, पूर्व तथा पश्चिम राज्यों के बाजारों में पहुंचने की सुविधा के चलते ग्रेटर नोएडा महत्त्वपूर्ण शहर बन चुका है।

आप राजधानी में आनंद विहार से विवेक विहार की तरफ बढ़िए। सड़क की बाई तरफ दिल्ली और दाई तरफ उत्तर प्रदेश है। दोनों को एक सड़क बांटती है। यमुनापार और उत्तर प्रदेश की कम से कम आधा दर्जन जगहों पर सीमा मिलती है। सीमापुरी-शहीद नगर सीमा के आर पार होते हुए पता ही नहीं चलता कि आप कब उत्तर प्रदेश में हैं, और कब दिल्ली में। यही स्थिति सीमापुरी और दिलशाद कॉलोनी में भी देखने को मिलती है। लगभग सारा का सारा मौजूदा यमुनापार 1914 तक मेरठ जिले का अंग था। अंग्रेज सरकार ने देश की नई राजधानी की घोषणा करने के बाद मेरठ जिले के 65 गांवों का 22 मई, 1914 को दिल्ली में विलय कर दिया था। इन गांवों में शकरपुर, खिचड़ीपुर, चौहान बांगर, मंडावली, शाहदरा, ताहिरपुर, झिलमिल, सीलमपुर शामिल थे। इन्हीं पर आगे चलकर मयूर विहार, आईपी एक्सटेंशन आदि की सैकड़ों ग्रुप हाउसिंग सोसायटीज और तमाम ‘विहार’ वगैरह आबाद हुए। यमुनापार के इन गांवों का अधिग्रहण देश की नई राजधानी की भावी विस्तार योजना के लिए किया गया था और अब दिल्ली से सटे नोएडा और गाजियाबाद फिर से करीब आ रहे हैं। मेरठ को दिल्ली से रैपिड रेल करीब लाने जा रही है। आखिर, नाखूनों से मांस जुदा तो नहीं हो सकता।

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