जीते जी भुगतान

कुतरे ज्यूं कीड़ा वसन, उसे समझ कर गैर।
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2025-04-04 20:55:10

कुतरे ज्यूं कीड़ा वसन, उसे समझ कर गैर। खाता यूं ही जीव को, द्वेष ईर्ष्या बैर।। लेखा-जोखा कर्म का, जीते जी भुगतान। कर्म करो ऐसे सदा, फल हों शहद समान।। पल में सब बिगड़ी बने, हो मुश्किल आसान। बैरी को अपना करे, अधरों की मुस्कान।

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