2023-07-16 22:19:33
कटहल विशुद्ध भारतीय ग्रामीण परिवेश का फल है जो प्रारंभिक दौर में सब्जी के तौर पर उपयोग किया जाता है और फिर बाद में पकने के बाद फल के रूप में। ग्रामीण परिवेश से जुड़े लोगों के लिए पके हुए कटहल का फल काफी यादगार रहा होगा। इस फल के मिठास के आगे सब चीज सीखा है पर इस फल के अंदर से निकलने वाली गुठली की बात ही निराली है उसकी सब्जी भी बनती है, बालू में भून कर आग में पकाकर खाइए लाजवाब होता है स्वाद। कटहल बचपन से हमारी यादों में रचा बसा है गांव में खुद के कई सारे पेड़ थे कटहल के। कटहल और महुआ जैसे पेड़ो को देखकर लगता था कि शायद जिस दौर में अनाज का उत्पादन नाम मात्र का होता था कई महीनों तक महुआ और कटहल ही लोगों का भोजन रहा होगा। मार्च के प्रथम सप्ताह में आम के मंजर के साथ कटहल पर भी छोटे-छोटे फल लगने शुरू हो जाते थे जो अगले 15 20 दिनों के बाद इस आकार में जरूर पहुंच जाते थे कि अब उसकी सब्जी तैयार हो सके। छोटे आकार से बड़े आकार तक कटहल की सब्जी का स्वाद बदलते रहता है। हमारे अंचल में कटहल के पेड़ की भरमार थी इसलिए फल भी बहुत ज्यादा होते थे इस कारण से कटहल के अचार का चलन भी था जो कई तरह से तैयार किए जाते थे। कटहल पकने के बाद ऐसी मादक गंध को फैलाता है कि दूर से ही समझ में आ जाता है कि कटहल पकना शुरू हो गया है उत्तर बिहार में एक जानवर होता है जिसे भोजपुरी में मालवर कहा जाता है जो कहीं ना कहीं लोमड़ी और गिलहरी जैसी आकृति का होता है इसके दांत काफी मजबूत होते हैं और सबसे पहले पके हुए कटहल का स्वाद वही चखता है उसके जबड़े इतने मजबूत होते हैं कि 50 किलो कटहल को बीच से चीरता है। अब पटना जैसे शहरों में कोवाा
बड़ी दुकानों में बिक रहा है। शहर के लोगों के लिए यह फल कौतूहल है।
अनूप नारायण सिंह, लेखक, वरिष्ठ पत्रकार