पनपे जख़्म हजार॥

रिश्ते यूँ ना टूटते, होते नहीं अधीर।
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2025-04-06 17:08:00

रिश्ते यूँ ना टूटते, होते नहीं अधीर। धीरे-धीरे चुप रहें, सहते- सहते पीर॥ अनदेखी जब भाव की, होती बारंबार। मन में फिर चुपचाप से, पनपे जख़्म हजार॥ शब्दों में अपमान जब, भर जाए अंगार। रिश्ते फिर यूँ काँच से, सह ना पाए वार॥ पीड़ा में जब प्रेम ना, पाए मन का साथ। छूट जाए विश्वास का, तब सौरभ हर हाथ॥ हर चोटें बनती गईं, मन पर जब आघात। फिर इक दिन चुपचाप ही, बिखरे सब जज़्बात॥ जोड़ो चाहे लाख तुम, हर बिखरे एहसास। बीच दरारें रह गईं, करती हैं उपहास॥ नज़रों से ओझल हुए, रिश्तों के आधार। धीरे-धीरे खो गए, स्नेह-सुधा के सार॥ संवेदन की मौत पर, चुप्पी हो जब राज। मन की गांठें तब कहे, भीतर का अंदाज़॥ मौन रहे जब हाल पर, ना पूछे जब हाल। तब रिश्तों की नींव में, आते हैं भूचाल॥ वक़्त न दे पहचान जब, भाव रहे बेनाम। रिश्ते फिर इतिहास हों, जैसे भूले नाम॥ कभी बंधे जो प्रेम से, छूते थे आकाश। अब जकड़े हैं मौन में, खो बैठे विश्वास॥ मर्यादा की चूक से, होता है अवसाद। चोटें जब गहरी लगें, टूटे हर संवाद॥ जिसके दिल में प्रेम हो, उसका थामो हाथ। जीवन की हर मुश्किलें, कट जाएँगी साथ।।

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