विपक्षी एकता को राहुल गांधी को लेकर कोर्ट के आए ताजा फैसले ने सोचने के लिए मजूबर किया होगा

मोदी सरनेम वाले मामले में सेशन कोर्ट के बाद हाई कोर्ट ने भी राहुल की दो साल की सजा को बरकरार रखा
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2023-07-09 13:54:44

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार .लेखक एवं टिप्पणीकार मोदी सरनेम वाले मामले में सेशन कोर्ट के बाद हाई कोर्ट ने भी राहुल की दो साल की सजा को बरकरार रखा है। हाई कोर्ट ने कहा कि राहुल गांधी ऐसे आधार पर सजा रोकने की माँग कर रहे हैं जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। सवाल यह है कि अब आगे क्या होगा?पूर्व मुख्यमंत्री, पूर्व रेल मंत्री और राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव को भी कांग्रेस के नंबर वन नेता राहुल गांधी को लेकर कोर्ट के आए ताजा फैसले ने सोचने के लिए मजूबर किया होगा। 23 जून को जब राहुल गांधी पटना आए थे और लालू प्रसाद ने उनकी शादी की बात कही तो राजनीतिक विश्लेषकों ने उन्हें इशारों में विपक्षी एकता के ‘दूल्हे’ के रूप में सजाने तक की बात मान ली। कहा गया कि लालू इशारे में भी बहुत गूढ़ बातें कह जाते हैं। तो, क्या अब विपक्षी एकता के ‘दूल्हे’ का यह विकल्प यहीं खत्म हो गया? 17-18 जुलाई को बेंगलुरू में होने वाली विपक्षी एकता की बैठक में दूसरा ‘दूल्हा’ तय होगा?

12 जून की तारीख फेल होने के बाद भी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब 23 जून को पटना में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ देशभर के 15 दलों के नेताओं को बैठक में बुलाने में सफल रहे तो उनका संयोजक बनना तय था। लेकिन, अध्यादेश को लेकर कांग्रेस से टकराव के कारण जिस तरह से विपक्षी एकता की बैठक के बाद मीडिया से मुखातिब होने के काफी पहले आम आदमी पार्टी के दोनों नेता (दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान) निकल गए, उसके कारण सारी घोषणाएं टाल दी गईं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के संयोजन में बैठक की बात कही। बाकी नेताओं ने इस शब्द का इस्तेमाल भले नहीं किया, लेकिन बैठक का अगुवा कहते हुए बधाई जरूर दी। संयोजन-संयोजक की बात के बाद जब लालू प्रसाद मीडिया के सामने आए तो उन्होंने राहुल गांधी को जल्दी दूल्हा बनने के लिए कहा। इसपर हंसी तो हुई, लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों ने इस बात को शादी से मोड़ते हुए विपक्षी एकता के दूल्हे (लीडर) की ओर मोड़ दिया।

राहुल गांधी पटना आए तो विपक्षी एकता की बैठक के पहले सदाकत आश्रम में कांग्रेसियों से मिले, उन्हें संबोधित भी किया। इस कार्यक्रम में उस महिला विधायक ने भी शिरकत की थी, जिन्होंने बिहार विधानसभा के सामने और वीरचंद पटेल पथ पर होर्डिंग-बैनर के जरिए राहुल गांधी को भावी पीएम बताया था। सांसदी खो चुके राहुल के अलावा अरविंद केजरीवाल को भी पीएम बताने वाले पोस्टर लगाए गए थे।

राहुल गांधी की सांसदी पहले ही जा चुकी है। शुक्रवार को आए फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट जाने का विकल्प तो है, लेकिन शुक्रवार के फैसले के बाद राजनीतिक गलियारे में भी यह मान लिया गया है कि 2024 में उनके नाम पर विचार का विकल्प नहीं रहेगा। अगर लालू ने यह सोचकर किया हो तो ऐसे में वह इशारा अब किसी काम का नहीं। चाणक्या इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिकल राइट्स एंड रिसर्च के अध्यक्ष सुनील कुमार सिन्हा कहते हैं- “17-18 जुलाई की बैठक कांग्रेस के संयोजकत्व में हो रही है और यह बैठक अगर सफल रही तो संयोजक का नाम, राज्यों में प्रभाव के आधार पर सीटों के बंटवारे और नए गठबंधन का नाम घोषित किया जाएगा। विपक्षी एकता के दूल्हे का नाम तय नहीं होगा, यह भी तय है। संयोजक पहले तो ‘दूल्हा’ नहीं रहे हैं, इसलिए इस बार भी पहले से घोषित कुछ नहीं होगा।”

बहरहाल कांग्रेस का कहना है कि वह अब इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट जाएगी। अगर सुप्रीम कोर्ट से राहुल को राहत मिल जाती है तो उनकी सांसदी बहाल हो सकती है और वे 2024 का लोकसभा चुनाव भी लड़ सकते हैं लेकिन अगर सुप्रीम कोर्ट से भी उन्हें कोई राहत नहीं मिली तो वे अगले आठ साल चुनाव नहीं लड़ पाएँगे।बात केवल इसी केस की नहीं है, राहुल गांधी पर मानहानि के चार और मामले चल रहे हैं। 2014 में राहुल ने संघ पर महात्मा गांधी की हत्या का आरोप लगाया था। एक संघ कार्यकर्ता ने इस बयान को लेकर राहुल के खिलाफ केस दर्ज करवाया था। यह केस महाराष्ट्र के भिवंडी कोर्ट में चल रहा है।

2016 में राहुल ने कहा था कि 16वीं सदी में असम के वैष्णव मठ बरपेटा सतरा को लेकर संघ के सदस्यों पर आरोप लगाया था। यह केस अभी पेंडिंग है। इसी तरह 2018 का एक केस झारखंड की राजधानी राँची में और एक और केस महाराष्ट्र के शिवडी में चल रहा है। यह केस गौरी लंकेश की हत्या को लेकर दिए गए बयान पर आधारित है।

वैसे महाराष्ट्र के घटनाक्रम से तो विपक्षी एकता को धक्का लगा ही है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट में भी राहुल हार गए तो नुक़सान भारी होगा और उसकी भरपाई बहुत मुश्किल हो जाएगी। सत्ता पक्ष के ख़िलाफ़ साझा उम्मीदवार खड़ा करने का विचार तो अच्छा है, लेकिन इसे परिणति तक पहुँचाना बहुत दूभर दिखाई पड़ता है।

गौरतलब है कि जैसे ही हालिया कोर्ट का फैसला आया तो राहुल ने एक बार फिर ये दिखाने की कोशिश की कि इस फैसले का उन पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, वो जेल जाएंगे, लेकिन माफी नहीं मानेंगे। देश के तमाम हिस्सों में कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, दिल्ली, हरियाणा, महाराष्ट्र , गुजरात, राजस्थान से लेकर तमिलनाडु में विरोध प्रदर्शन होने लगे। कांग्रेस ने हाईकोर्ट के फैसले को राजनीतिक दुश्मनी का नतीजा बताया। प्रियंका गांधी ने रामधारी सिंह दिनकर की कविता लिख कर कहा कि सरकार कितना भी जुल्म कर ले, लेकिन राहुल की आवाज बंद नहीं कर पाएगी, राहुल आम लोगों की आवाज उठाते रहेंगे।

वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि निचले कोर्ट के फैसले में कई गलतियां थी, उसी तरह हाईकोर्ट के फैसले पर भी कई सवाल उठते हैं। सिंघवी ने कहा कि आजादी के बाद आज तक किसी व्यक्ति को एक बयान को लेकर मानहानि के केस में अधिकतम सज़ा नहीं दी गई है, राहुल गांधी के केस में ऐसा क्यों हुआ? उन केसेज़ को आधार बनाकर राहुल की सजा को बरकरार रखा गया, जिसमें उन्हें अभी तक दोषी भी नहीं ठहराया गया है। राहुल के खिलाफ भाजपा के नेता ने केस किया, इसलिए ये राजनीति से प्रेरित मामला था और फैसला भी उसी लाइन पर हैं। सिंघवी ने कहा कि उन्हें तो पहले से इसी तरह के फैसले की आशंका थी, उन्हें पूरा यकीन है कि राहुल को सुप्रीम कोर्ट से न्याय मिलेगा। भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस को कोर्ट पर हमला करने के बजाए राहुल गांधी को समझाना चाहिए कि वो इस तरह के बयान देने से बचें, जो बाद में मुसीबत बन जाते हैं। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि अगर राहुल माफी मांग लेते, अपना बयान वापस ले लेते तो ये मौका ही न आता, लेकिन राहुल अंहकारी हैं, वो खुद को कानून से ऊपर मानते हैं, इसलिए उन्हें आज ये दिन देखना पड़ रहा है, इससे न सरकार का कोई लेना देना है, न भाजपा का।

ये बात सही है कि राहुल गांधी को मानहानि के केस में अधिकतम सज़ा दी गई है, इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ, लेकिन इस बात को नहीं भूलना चाहिए कि मानहानि के ज्यादातर मामलों में लोग अपना बयान वापस ले लेते हैं, खेद जताते हैं, माफी मांग लेते हैं, इसलिए केस खत्म हो जाता है। अरविन्द केजरीवाल ने तीन मामलों में माफी मांगी, उन्हें सजा नहीं हुई। राहुल गांधी ने खुद राफेल के केस में सुप्रीम कोर्ट से गलत बयानी के लिए लिखित माफी मांगी। गलती सब से होती है। इस केस में राहुल को सेशन्स कोर्ट ने ये ऑप्शन दिया था, कहा था कि वो बयान वापस ले लें, माफी मांग लें या फिर मुकदमे का सामना करें। राहुल जिद पर अड़े रहे। कह दिया, जेल चला जाऊंगा, पर न बयान वापस लूंगा, न माफी मांगूंगा, और फिर जब सेशन्स कोर्ट का फैसला आया, सजा हो गई तो कहा, कि वो सावरकर नहीं हैं जो माफी मांग लें, वो गांधी हैं, गांधी कभी माफी नहीं मांगता। राहुल की इसी जिद के कारण ये मामला इतना बड़ा बना। कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने उन्हें समझाया कि इस तरह के मामलों में खेद व्यक्त करने से काम बन जाता है, मामला खत्म हो जाता है, लेकिन वो अपनी बात पर अड़े रहे, किसी की नहीं सुनी। उनके चक्कर में मुसीबत कांग्रेस को झेलनी पड़ी।

बताया जाता है कि चुनाव आयोग किसी समय वायनाड में उपचुनाव का ऐलान कर सकता है। राहुल गांधी के पास अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का ही विकल्प बचा है। कांग्रेस की योजना है कि राहुल गांधी को पीएम पद का उम्मीदवार बनाते हुए साल 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ा जाए, लेकिन मौजूदा हालात में यह संभव होता नहीं दिख रहा है। राहुल गांधी के बिना कांग्रेस कैसे चुनाव में जाएगी, कैसे प्रचार करेगी, यह कल्पना से परे है। तृणमूल कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जैसे अन्य विपक्षी दल हावी होंगे। अब ये दल कांग्रेस को बैकफुट पर धकेलने की कोशिश करेंगे, जिससे विपक्षी एकता कमजोर होगी और फायदा सीधा भाजपा को होगा। ऐसे समय में जब भाजपा ने यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे तुरुप का इक्का फेंक दिया है, कांग्रेस पर इस मुद्दे पर भाजपा का सामना करने के बजाए, अपने नेता को बचाने का संकट आ खड़ा हुआ है। कांग्रेस आगे क्या विकल्प तलाशती है, यह देखना रोचक होगा।

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