डालडा की कहानी

किसके घर में कितने डालडा के डब्बे हैं उसपे भेद भाव होता था। भारत के विकास में डालडा का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
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2023-07-07 13:48:21

एक वक़्त आया था जब सिर्फ़ डालडा का ही बोलबाला था। सब डालडा ही खाते थे। तेल किसी भी ब्रांड का हो उसे डालडा ही बोला जाता था। लड़के भी उसी लड़की से शादी करते थे जिसके घर में पूड़ियाँ डालडा में तली जाती हों। होटल भी गर्व से लिखते थे “यहाँ हर व्यंजन डालडा में ही बनाया जाता है”। ईसी से उसकी रेटिंग तय की जाती थी। इलेक्शंस में वोट्स के लिए शराब के पौए नहीं बल्कि डालडा के डब्बे दिये जाते थे।

सैलरी वाले दिन तो बनिये की दुकान खुलते ही साथ इतनी लंबी लाइन लग जाती थी जैसे गुड़गाँव में ऐपल स्टोर के खुलने के पहले दिन। धक्का मुक्की के कारण कई लोग तो इतनी कैलरीज़ जला लेते थे जितनी डालडा खाने से भी ना चढ़ें। कई लोग सिर्फ़ इसी संघर्ष में रहते थे कि कैसे कोई जुगाड़ या कनेक्शन लगाया जाये। कई महिलायें तो लिपस्टिक लगा के, मीठी मीठी बातें करके बनिए को वैसे ही लुभाने की कोशिश करती थीं जैसे वरक़ लगे लड्डू चढ़ा के गणेश जी को लुभाया जाता है। उस दिन बनिये का रुतबा ऐसा होता जैसे राशन कार्ड बनाने वाले क्लर्क का।और वो बीज़ी तो इतना होता था जैसे लाइट जाने पे विद्युत विभाग का फ़ोन ऑपरेटर। बाहर बनिये के आवारा नालायक भतीजे ब्लैक में डालडा बेचते नज़र आते थे। मंदिरों के बाहर बैठने वाले सारे भिखारी और जेबकतरे भी बनिये के यहाँ इकट्ठे हो जाते थे। बात भी सही है, भारत की परंपरा रही है जहां भगवान वहाँ दरिद्रता भी होनी ही चाहिए।

मोहल्ले में जात पात से ज़्यादा, किसके घर में कितने डालडा के डब्बे हैं उसपे भेद भाव होता था। कई लोग कबाड़ी से डालडा के ख़ाली डब्बे ख़रीदते थे और उसमें सस्ता तेल भर के रखते थे। इससे ओढ़े हुए व्यक्तित्व से सिर्फ़ दरज़ा ही नहीं बढ़ता था पर कुंठा और ग़ुस्सा भी। इसी ग़ुस्से से कई बच्चे पढ़ाई में आगे निकल जाते थे की किसी दिन माँ के चरणों में डालडा का डब्बा रखेंगे।कई तो सिलिकॉन वैली में CEO हैं।

समाज में डालडा दोस्ती का कारण और डालडा ही दुश्मनी का कारण बना।

डालडा से ही रीसाइक्लिंग शुरू हुई। डालडा के ख़ाली डब्बे बच्चों के पेट पे बांध के उन्हें तैरना सिखाने के, उनपे खड़े होके बल्ब बदलने के या फिर बरसात में छत से चूने वाले पानी को भरने का काम भी करते थे। कई उत्पाति बच्चों ने तो इसमें सुतली बम डाल के कुत्तों की पूँछ में बाँधना भी शुरू कर दिया। शायद इसी का पुश्तैनी बदला अब स्ट्रे डोग्स ले रहे हैं।

आप यक़ीन नहीं करेंगे की डालडा का महत्व इतना बढ़ा कि उससे एक पूरी पैरालल इकॉनमी खड़ी हो गई। सट्टे और शेयर का बाज़ार सोने चाँदी से ज़्यादा डालडा के उठते गिरते भाव पे हिलने लगा।

भारत के विकास में डालडा का एक बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

डालडा ही भारत था। भारत ही डालडा था। यही सिद्धांत भारत के नेताओं का आदर्श बना। जैसे आज राजनेता बुलेट ट्रेन के नाम पे वोट बटोर रहे हैं वैसे ही तब वो डालडा के नाम पे वोट बटोरते थे। डालडा एक वोट बैंक नहीं बल्कि भारत की समृद्धि का प्रतीक बन गया था।

डालडा ने पूरे भारत को एक तार में जोड़ा था। उसके जाते ही सिर्फ़ तेलों के प्रकार ही नहीं बल्कि पूरा भारत ही बंट गया। हमारे इस बंटेपन को बुद्धिजीवी विदेश में डाइवर्सिटी के नाम से बेचते हैं।

जैसे पार्टी कोई भी हो अंततः वो कांग्रेस ही हो जाती है उसी तरह तेल कोई भी हो अंततः वो डालडा के नाम से ही जाना जाता था। जैसे आपका धर्म या प्रांत कुछ भी हो आपको जाना तो सिर्फ़ एक भारतीय के नाम से ही जाएगा।

मैंने सारी ज़िंदगी सोचा की आख़िर सेहत के लिए अत्यंत विनाशकारी डालडा भारत के जीवन का अभिन्न अंग कैसे बना। अब जाके समझ आया की सबसे पहले तो डालडा का नाम। ग़ौर से पढ़िए, यह नाम उल्टा पुल्टा एक समान है। चाहे शुरू से पढ़ें या अंत से इसका स्वरूप एक ही रहता है। जैसे हमारा जीवन। जैसे मृत्यु ही नया जीवन है और जीवन ही एक मृत्यु। यही तो भारतीय दर्शन है। क्या शुरू क्या अंत यह सब एक माया है। माया का यह सिद्धांत डालडा में छुपा है।

डालडा को कभी देखो तो बर्फ कि तरह जम जाता और पल में ही पिघल जाता। जैसे अर्धनारीश्वर। यही सृष्टि का भी असली रूप है। कहीं जड़ तो कहीं तरल। कही पुरुष तो कहीं स्त्री। शास्त्रों में जिस द्वैत और अद्वैत की बात है उसे डालडा ने सरल रूप से समझा दिया।

जैसे मानव मात्र शरीर नहीं बल्कि एक आत्मा है। वैसे ही डालडा मात्र पदार्थ नहीं एक ऊर्जा है।

वैष्णों देवी यात्रा हो या अमरनाथ यात्रा, लोग शरीर को कष्ट दे के ही ईश्वर तक पहुँचते हैं। डालडा भी वही आध्यात्मिक यात्रा है जिसके आगे शरीर को कितना भी नुक़सान हो पर अंत में ईश्वर के दर्शन जैसा ही आनंद प्राप्त होता है।

बिना डालडा को समझे आप कभी नहीं समझ सकते की आप के आस पास जो भी अजीबो ग़रीब, अद्भुत या आलोकिक घट रहा है वो क्यों घट रहा है।

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