जन आकांक्षाएं और सवालों के बीच प्रधानमंत्री की चुनावी सभा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर नहीं गए,छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर आए क्योंकि छत्तीसगढ़ में चुनाव हैं
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2023-07-09 13:43:18

देश का एक भू–भाग किस साजिश के कारण आज जल रहा है यह सब जानते हैं। लोग नरेंद्र दामोदर दास मोदी के मौन को भी खूब समझते हैं । ऐसे में वो मणिपुर ना जा कर छत्तीसगढ़ आना तय करते हैं तो इसमें भी कुछ गलत नहीं है क्योंकि देश में पहली बार एक ऐसा प्रधानमंत्री है जिसके लिए देश की अहमियत वोट और सत्ता से ज्यादा कतई नहीं है!

देश यह देख भी रहा है। दरअसल परम आत्ममुग्धता की चरम अवस्था को प्राप्त प्रधानमंत्री जी अब भाजपा और आरएसएस से भी ऊंचे सिंहासन पर विराज चुके हैं। उनकी दिक्कत ये है कि उन्होंने एक ऐसे शेर की सवारी कर ली है जिससे उतरे तो शेर उन्हें बख्शेगा नहीं !

इसलिए उनके लिए जरूरी है कि भाजपा में उनके रहते ना शाह जी – शाह जी के नारे लगें,ना गडकरी–गडकरी ना ही किसी और के। बस मोदी, मोदी होता रहे। ये एक बड़ी अजीब धारणा है कि भाजपा चुनाव जीतने के अगले दिन से ही,अगले चुनाव की तैयारियां शुरू कर देती है।

अजीब यह इसलिए है कि कई बार विरोधी राजनीतिज्ञ भी इसका जिक्र प्रशंसा के भाव से करते नजर आते हैं।लेकिन आज मोदी राज के लगभग नौ बरस क्या यह कहने को मजबूर नहीं करते कि चौबीस घंटे चुनाव की तैयारियां में व्यस्त रहने वालों ने हर मोर्चे पर देश का सत्यानाश किया है,बेड़ा गर्क किया है ?

अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता से बात शुरू करेंगे तो साम्प्रदायिकता तक,अर्थव्यवस्था की बात करेंगे तो अदानियों को देश बेचने और वो जिनके सरनेम को बोलने लिखने पर अदालती रोक है,उन भगोड़ों की लूट तक ,और गरीबी के तमाम पैमानों पर दुनिया में निचले स्तर पर पहुंचने के रिकॉर्ड तक कौन सा मोर्चा ऐसा है जिसे नरेंद्र दामोदर दास मोदी गर्व के साथ देश के सामने तथ्यों के साथ कह सकते हैं ?

चीन के आगे भारत के शर्मनाक घुटने टेक देने पर तो बात ही नहीं कर सकते! महंगाई पर पूरी भाजपा मौन है। झूठ किस आत्मविश्वास के साथ प्रधानमंत्री जी बोल जाते हैं यह रायपुर की सभा में दिखा है। धान के सवाल पर,किसानों के सवाल पर,राज्यों का हक मारने के सवाल पर प्रधानमंत्री ने जितना कुछ इस सभा में कहा उन सारे आरोपों को कांग्रेस पार्टी ने तथ्यों के साथ चुनौती दी है।

लेकिन बात इससे अलग है। प्रधानमंत्री जी के रायपुर भाषण को सुनिए जरूर और सोचिएगा कि जिस समय वो छत्तीसगढ़ की चुनावी सभा को संबोधित कर रहे थे उस समय क्या महाराष्ट्र का नागरिक यह नहीं सोच रहा होगा कि आज वो सारे भ्रष्ट साफ सुथरे कैसे हो गए कल तक जिन पर सत्तर हजार करोड़ के घोटालों का आरोप था? प्रधानमंत्री जब छत्तीसगढ़ में भ्रष्टाचार की बात करते हैं तो ताज्जुब होता है कि उनकी पार्टी,उनके भक्त और वो खुद अपने जमीर को क्या जवाब दे रहे होंगे! लेकिन जमीर तो पोलिंग बूथ के खूंटे से बंधा हुआ है। देश के दिग्गज पत्रकार Shravan Garg जी की बात याद आती है कि प्रधानमंत्री मोदी की लड़ाई विपक्ष से नहीं इस देश की जनता से है।

रायपुर की सभा हो या कोई और आम सभा,जो प्रधानमंत्री मीडिया के सामने नहीं आते हैं,उनसे यह तो उम्मीद की जा सकती है कि वो कम से कम अपनी सार्वजनिक सभाओं में तो देश–दुनिया के मुद्दों को संबोधित करेंगे। संसदीय लोकतंत्र में देश के सबसे बड़े सत्ताधीश की यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी है कि वो देश की चिंताओं को,देश के सवालों को संबोधित करें और आश्वस्त करें कि देश ने जवाबदेह हाथों में सत्ता सौंपी है।लेकिन मोदी सरकार जिस मोर्चे पर पूरी तरह से विफल है वो जवाबदेही का ही तो मामला है!

रायपुर की सभा में वो केवल चुनावी चाशनी परोसें यह उनका अधिकार है, लेकिन प्रधानमंत्री देश को जवाब दें यह जिम्मेदारी भी तो प्रधानमंत्री की ही है ना ? इसीलिए यह अजीब लगता है जब कोई प्रशंसा भाव से कहता है कि बीजेपी या मोदी जी चुनाव जीतने के अगले दिन से,अगले चुनाव की तैयारियां शुरू कर देते हैं। चुनाव की तैयारियों में अगर देश के गंभीर सवालों को संबोधित करना नहीं है तो यह लोकतंत्र की सेहत के लिए ठीक नहीं है।

छत्तीसगढ़ में मोदी जी ने चुनाव प्रचार तो भरपूर कर डाला लेकिन उन्होंने किसी रेलवे प्लेटफार्म पर घंटों ट्रेन का इंतजार कर रहे परिवार को निराश किया,जो यह जानना चाहता था कि भारतीय रेल को क्या व्यवस्थित रूप से तबाह किया जा रहा है? एनएमडीसी से लेकर एनटीपीसी तक लोग जानना चाहते थे कि सार्वजनिक क्षेत्र की इन महत्वपूर्ण इकाइयों का भविष्य क्या है?

बाजार में खड़ा गरीब जानना चाहता था कि महंगाई बेकाबू क्यों है? गृहणी गैस के दाम को लेकर परेशान है। पेट्रोल डीजल की कीमतों पर बात ही नहीं हो रही है। नौकरियों के लिए धक्के खा रहा नौजवान अपना भविष्य जानना चाहता था। किसी जगह ड्यूटी पर तैनात सिपाही जानना चाहता था कि सीमा पर कोई घुसा है या घुस सकता है क्या ?

पुलवामा के सवालों के जवाब क्या आम चुनाव में आने वाले हैं ? अनगिनत सवाल हैं ।हर सवाल के जवाब की उम्मीद प्रधानमंत्री जी से नहीं की जा सकती। कम से कम किसी एक सभा में तो बिलकुल ही नहीं ।पर यह निराश करता है कि प्रधानमंत्री ने देश की अत्यंत गंभीर चिंताओं का जवाब नहीं दिया,छुआ तक नहीं ! विशाखापट्टनम हाईवे जरूरी है पर वो छत्तीसगढ़ के या आंध्र प्रदेश के आदिवासियों का कितना भला करेगा यह समय बताएगा लेकिन जो सवाल आज खड़े हैं उनके जवाब देश कब और किससे मांगे,कैसे मांग ले ?

यही तो लोकतंत्र नहीं तानाशाही का रास्ता है। देश को पोलिंग बूथ में बदल देने वालों की अब एक तस्वीर और देखिए। प्रधानमंत्री जी ने जिस मंच से सभा को संबोधित किया वहां बैक ड्रॉप में छत्तीसगढ़ महतारी की तस्वीर अंकित थी। यह बहुत दिलचस्प है और इस पर अलग से चर्चा कर लेते हैं। दरअसल यह अब छत्तीसगढ़ में हो रहा है कि बीजेपी,आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ की अस्मिता की उस गंगा में हाथ धो लेना चाहते हैं जिसे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सत्ता संभालते ही गर्व के एहसास से भर दिया है और आज जनता के बीच से उनके लिए एक संबोधन उभर कर आया है – कका !

यह विज्ञापनों से गढ़ा गया चाउंर वाले बाबा वाला संबोधन नहीं है। हर कोई जानता है कि भूपेश बघेल दाऊजी थे ,आज कका हो गए! यह छत्तीसगढ़ की संस्कृति में निहित स्नेह है। बात इसी सांस्कृतिक पहलू की। ये छत्तीसगढ़ की वो करवट है जो भाजपा को बेचैन कर रही है। छत्तीसगढ़ की अस्मिता आम छत्तीसगढ़िया के लिए गर्व का ऐसा कारण बनेगी इसका एहसास भाजपा को नहीं था।

यह छत्तीसगढ़ियत है जिससे पीछे हटने का अब कोई साहस भी नहीं कर सकेगा। मुख्यमंत्री बनने के बाद जब पहले हरेली के त्योहार पर भूपेश बघेल पूरे उत्साह के साथ इस माटी के उत्सव को मनाने निकलते हैं,उसी दिन यह एहसास हो गया था कि छत्तीसगढ़ ने अपनी ऐसी सांस्कृतिक ताकत की शिनाख्त कर ली है,जो हर तरह की सांप्रदायिक कुचेष्टाओं का मुंहतोड़ जवाब है।

नफरतजीवी छत्तीसगढ़ के सद्भाव में जहर घोलने की साजिशें कर रहे हैं लेकिन जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रायपुर की सभा के मंच से छत्तीसगढ़ी में बात शुरू करते हुए छत्तीसगढ़ महतारी से लेकर बाबा गुरु घासीदास जी तक का जिक्र करते हुए जय जोहार करते हैं तब समझ आता है कि भूपेश बघेल ने क्षेत्रीय अस्मिता,छत्तीसगढ़ की अस्मिता,छत्तीसगढ़ महतारी,गांव की अर्थव्यवस्था,छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी जैसे प्रभावशाली तत्वों के साथ सांस्कृतिक,सामाजिक और आर्थिक मॉडल के रूप सांप्रदायिक राजनीति के सामने कौन सी चुनौती खड़ी कर दी है।

यह चुनौती भूपेश बघेल जैसा ही कोई राजनीतिज्ञ खड़ी कर सकता था, जिसने करीब ढाई दशक पहले छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान की बात की थी। याद आता है वो दिन जब तेज बरसात में छाता लिए हजारों लोग रायपुर के गांधी चौक के मैदान में दम साधे,देर तक, भूपेश बघेल के नेतृत्व में हुई स्वाभिमान रैली में खड़े हुए थे। उस दिन अजीत जोगी भी उस मंच पर पहुंच कर स्वाभिमान का थोड़ा हिस्सा पाना चाहते थे लेकिन बाद के वर्षों ने दिखाया कि अंततः वो सफल नहीं हो सके। भूपेश बघेल ने इस छत्तीसगढ़िया तड़प को पहचाना नहीं था बल्कि वो छत्तीसगढ़ को यह बता सकने में सफल हैं कि वे इसी तड़प के सामाजिक,सांस्कृतिक,राजनीतिक वाहक हैं!

उन्होंने छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान का एक ऐसा मॉडल खड़ा किया है जिसने गांवों को और गांवों के रास्ते शहरी अर्थव्यवस्था को भी ताकत दी। इसे मॉडल के बजाय छत्तीसगढ़ की आकांक्षा या जन आकांक्षा कहना बेहतर होगा। मोदी जी के आरोप, ईडी जैसी संस्थाओं का राजनीतिक उपयोग दुरुपयोग,कार्रवाइयां,अपनी वॉशिंग मशीन पर चुप्पी इन सब पर राजनीति होगी ही। वार,उलट वार होंगे,लेकिन बीजेपी को यह समझ आता है कि अब आज उसका मुकाबला केवल कांग्रेस पार्टी,भूपेश सरकार या सरकार की योजनाओं से नहीं है।आज उसका मुकाबला छत्तीसगढ़ के उस स्वाभिमान से है जिसकी आंच मोदी जी के मंच पर बहुत खुल कर महसूस हुई।

चुनाव बताएगा कि सफल कौन होता है लेकिन आज तो यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि नफरत और सांप्रदायिक उन्माद को हथियार बनाने वालों के खिलाफ छत्तीसगढ़ियत मुंहतोड़ जवाब है। पर इस सतर्कता के साथ कि सांप्रदायिक उन्माद और नस्लवाद का इस्तेमाल करते समय तानाशाह हदें तय नहीं करता है। लेकिन आश्वस्ति यह है कि छत्तीसगढ़ियत और छत्तीसगढ़ी स्वाभिमान आज जन आकांक्षा की मजबूत दीवार की तरह है।

जन की यह आकांक्षा राज्य सरकार पर भी बड़ी जिम्मेदारी डालती है, क्योंकि राजनीतिक रूप से कहें तो यह भी शेर की सवारी ही है।

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