2024-01-29 15:57:55
विनोद कुमार सिंह,स्वतंत्र पत्रकार
बिहार के बदलते राजनीतिक घटनाक्रम के बीच रविवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है।वे रविवार की सुबह 11 बजे न राजभवन पहुंचे जहां उन्होंने राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर से मुलाक़ात कर अपना इस्तीफ़ा सौंप दिया ।इसके साथ ही उन्होंने महागठबंधन से अलग होने का भी ऐलान कर दिया।
इस अवसर पर उन्होंने मीडिया कर्मियो से कहा, मैंने इस्तीफ़ा दे दिया है और अब सरकार ख़त्म हो गई।हमने अपने लोगों व पार्टी की राय सुनी,उसके बाद यह फ़ैसला लिया. ।पत्रकारों के पुछे गए सबाल अब आगे क्या करेंगे, उन्होंने कहा,हम पहले के सहयोगियों से अलग होकर नए गठबंधन में गए थे।बाक़ी दल साथ देंगे तो सोचेंगे।अगर कुछ होगा तो आपको पता चल जाएगा।सर्वविदित रहे कि विहार की राजनीति को राजनीति पंडितो में चर्चा व चिन्तन का दौर बीते हफ़्ते से ही अटकलें लग रही थीं कि नीतीश कुमार राजद से गठबंधन तोड़कर एक बार फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन में जा सकते हैं आख़िरी समय तक नीतीश कुमार चुप्पी साधते हुए इस बारे में आधिकारिक रूप से कुछ नहीं कहा,लेकिन बिहार की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले विश्लेषज्ञों कि हर कयास व संभावना को संभव माना जाता रहा है।इस बार भी ऐसा हुआ भी ।जब नीतीश कुमार से जब इस्तीफ़ा देने की वजह पूछी गई, तो उन्होंने कहा,यह नौबत इसलिए आई क्योंकि अन्दर ठीक नहीं चल रहा था।थोड़ी परेशानी थी।हम देख रहे थे।पार्टी के अंदर से और इधर-उधर से राय आ रही थी ।हमने सबकी बात सुनकर हमने इस्तीफ़ा दिया और सरकार को भंग कर दिया
उन्होंने आगे कहा कि हमने पिछले गठबंधन को छोड़कर जो नया गठबंधन बनाया था डेढ़ साल से,उसमें आकर स्थिति ठीक नहीं लगी। वे लोग काम को लेकर जो दावे कर रहे थे,उससे (हमारे) लोगों का ख़राब लग रहा था.
माननीय राज्यपाल ने माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का त्यागपत्र स्वीकार किया तथा वैकल्पिक व्यवस्था होने तक उन्हें कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करने को कहाआप को याद होगा कि नीतीश कुमार अगस्त 2022 में बीजेपी से गठबंधन से अपना नाता तोड़कर राजद के साथ आए थे।राजनीति में नीतीश कुमार का ये पहला यू-टर्न नहीं था।यही कारण है कि तब भी ना उनके बीजेपी से गठबंधन तोड़ने को लेकर हैरानी हुई थी और ना ही अब भी हो रही है।विगत कुछ दिनों से बिहार की राजनीति को लेकर राजधानी पटना से आ रहे सभी संकेत इशारा कर रहे थे कि इंडिया गठबंधन को एकजुट करने की कोशिशों में लगे नीतीश कुमार अब ख़ुद ही गठबंधन को छोड़कर दूसरे गठबंंधन में जा सकते हैं। जिन्होने स्वंय भाजपा का राजनीतिक विकल्प देने बीडा उठायें हुए थे।भारतीय राजनीति की घटना चक्र में जदयू ये संकेत दे रही थी कि नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर हो रही देरी से नाराज़ थे और इसी वजह से वह अगला राजनीतिक क़दम उठा सकते हैं।महागठबंधन में दरार के शुरुआती संकेतों के बाद बीते शनिवार दोपहर तक ये लगभग स्पष्ट हो गया कि राजद और जदयू के बीच अन्दर खाने में सबकुछ ठीक नहीं है और आगे नीतीश का रास्ता राजद से अलग होगा।रविवार को नीतीश के बयान के साथ इस पर मुहर भी लग गई।आप के मन में नीतीश कुमार के संदर्भ में जाननें की जिज्ञास हो रही होगी।तो मै आपको बता दूँ कि नीतिश कुमार का जन्म पटना से सटे बख़्तियारपुर में एक स्वतंत्रता सेनानी के परिवार में 1 मार्च 1951 को हुआ।उन्होंने बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद उनका राजनीति की ओर ही रहा है।
नीतीश ने यूं तो राजनीति की शुरूआत लालू प्रसाद यादव और जार्ज फ़र्नांडिस की छत्रछाया में की लेकिन उन्हें ये भी समझ आ गया कि अपनी अलग जगह बनाने के लिए उन्हें अलग होना होगा।राजनीति में क़रीब पांच दशक बिता चुके नीतीश कुमार अपनी सहूलियत के हिसाब से दल और गठबंधन बदलते रहे।
नीतीश ने 1974 से 1977 के बीच जय प्रकाश नारायण के आंदोलन में हिस्सा लिया ।उन्होंने सत्येंद्र नारायण सिन्हा के नेतृत्व वाली जनता पार्टी से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की।नीतीश पहली बार 1985 में हरनौत सीट से विधायक चुने गए. इस दौर में वो बिहार में विपक्ष में बैठे लालू प्रसाद यादव केसहयोगी थे।देश मेआपातकाल के विरोध में खड़ी हुई जनता दल में कई विघटन हुए।सन1994 में जॉर्ड फर्नांडिस ने समता पार्टी का गठन किया।पार्टी में शामिल हो गए। अगले साल बिहार विधानसभा चुनावों में समता पार्टी को सिर्फ़ 7 सीटें मिली थी।चुनाव के इस परिणाम से नीतीश को ये समझ आ गया था कि बिहार में समता पार्टी अकेले अपने दम पर मज़बूती से नहीं लड़ सकती है। इस बात को ध्यान में रखते हुए सन 1996 में उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया।
आप को याद होगा कि वे पहली बार 1989 में सांसद बने तथा1998 से 2001 के बीच अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में अलग-अलग विभागों के केंद्रीय मंत्री भी रहे।
नीतीश कुमार सन 2001 से 2004 के बीच वाजयेपी की सरकार में रेलवे मंत्री रहे।इसी बीच साल 2000 में 3 मार्च से 10 मार्च के बीच नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री भी बनें। मुख्यमंत्री का पद भले ही नीतीश कुमार को सिर्फ़ सात दिनों के लिए मिला हो,लेकिन उन्होंने अपने आप को लालू प्रसाद यादव के ख़िलाफ़ बिहार की राजनीति में एक मज़बूत विकल्प के रूप में पेश कर दिया था।सन 2004 तक केंद्र में मंत्री रहने वाले नीतीश 2005 में फिर बिहार की राजनीति में लौटे और मुख्यमंत्री बने।पिछले लगभग 19 सालों में 2014-15 में दस महीनों के जीतनराम मांझी के कार्यकाल को छोड़ दिया जाए तो नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री पद पर रहे हैं।हालांकि इस दौरान नीतीश कुमार अपनी सहूलियत के हिसाब से अपने गठबंधन सहयोगी बदलते रहे।इसी क्रम में शनिवार को पटना में राजनीतिक पारा चढ़ता रहा।जनता दल यूनाइटेड,राष्ट्रीय जनता दल, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा और बीजेपी के नेता बैठकों के दौर में व्यस्त रहे।
नीतीश कुमार पिछले दो दशकों से बिहार की राजनीति की धुरी बने हुए हैं।उन्होने एक दशक में पांचवीं बार पाला बदला है।इस पर एक नजर डालते है।
सन1996 में नीतीश ने बीजेपी के साथ गठबंधन कर लिया।बीजेपी के साथ नीतीश का ये गठबंधन साल 2013 तक रहा।नीतीश कुमार ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और बिहार की सत्ता के सिंधासन ख़ुद को जमा लिया.
वे बिहार की राजनीति में बीजेपी और नीतीश का साथ 17 साल तक रहा। अपने राजनीति यात्रा के दौरान नीतीश ने बीजेपी से पहली बार अलग राह तब पकड़ी जब साल 2014 में बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनावों में प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित किया।इसी बीच केन्द्र की सरकार ने आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर जाति समीकरण को ध्यान में रखते हुए बिहार के जन नायक नेता कपुर्री ठाकुर को भारत रतन की धोषणा से बिहार की जातिगत राजनीति में सब का ध्यान आर्कषित किया ।
कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने के पीछे बीजेपी की रणनीति क्या है?17 साल बाद बीजेपी से हुए दूर,फिर आए पास मोदी का विरोध करते हुए नीतीश बीजेपी से अलग हो गए और 2014 लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा।पिछली लोकसभा में बीस सांसदों वाली जदयू सिर्फ़ दो सीटों तक सिमट गई।चुनाव में निराशाजनक नतीजों के बाद नीतीश ने राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पार्टी के साथ गठबंधन कर लिया।
2015 में नीतीश ने राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाकर चुनाव लड़ा और गठबंधन को भारी बहुमत हासिल हुआ. नीतीश एक बार फिर मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव उनके डिप्टी सीएम।ये महागठबंधन दो साल ही चला और नीतीश ने 2017 में महागठबंधन से नाता तोड़ लिया।नीतीश ने बीजेपी से गठबंधन कर सरकार बनाई और बीजेपी नेता सुशील मोदी उनके डिप्टी सीएम बने ।2020 में नीतीश ने बीजेपी के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा और सत्ता में वापसी की. हालांकि जदयू की सीटें बीजेपी से कम रहीं ।बीजेपी को 74 सीटें मिलीं थीं और जदयू को सिर्फ़ 43 सीट लेकर राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी होने के बावजूद,नीतीश मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बने रहे।
नीतीश गठबंधन के मुख्यमंत्री तो थे लेकिन उनकी पार्टी की सीटें कम होने की वजह से बीजेपी का दबाव उन पर बढ़ता जा रहा था. बीजेपी के साथ दो साल सरकार चलाने के बाद नीतीश अपने स्वभाव व राजनीति महत्वाकांक्षी के कारण एक फिर पलटी मारी और आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर अपनी सरकार बना ली।अगस्त 2022 में फिर से नीतीश मुख्यमंत्री बने और तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम बनायें।इस बार नीतीश कुमार ने बीजेपी के ख़िलाफ़ सख़्त रवेया अपनाया।उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के ख़िलाफ़ विपक्षी पार्टियों का गठबंधन बनाने के प्रयास किए।उन्होने अपने एक बयान में बीजेपी के बारे में कहा था, मर जाना कबूल है लेकिन उनके साथ जाना हमें कभी कबूल नहीं है.नीतीश कुमारने ये बयान 30 जनवरी 2023 को मीडिया से बात करते हुए दिया था ।अभी इसे एक साल भी नहीं हुआ है, नीतीश पुनः एक फिर से बीजेपी के साथ हो लिए हैं।आप स्मरण होगा किबीजेपी का रुख़ भी नीतीश को लेकर इस दौरान सख़्त ही रहा।अप्रैल 2023 में एक बयान में बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था,एक बात स्पष्ट कह देता हूं, किसी के मन में अगर ये संशय हो कि चुनाव के परिणामों के बाद,नीतीश बाबू को फिर से भाजपा एनडीए में लेगी, तो मैं बिहार की जनता को स्पष्ट कह देना चाहता हूं और लल्लन बाबू को भी स्पष्ट कह देना चाहता हूं,आप लोगों के लिए भाजपा के दरवाज़े हमेशा के लिए बंद हो चुके हैं.हालांकि अब नीतीश कुमार और बीजेपी,दोनों का ही रुख़ बदल चुका है. ना नीतीश को बीजेपी के साथ जाने में कोई हिचकिचाहट हुई और ना ही बीजेपी को उनके लिए बाहें फैलाने में।
भाजपा नेता और पूर्व डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी से जब पत्रकारों ने नीतीश की वापसी को लेकर सवाल किया था तो उनका कहना था, राजनीति में कोई दरवाज़ा बंद नहीं होता है। आवश्यकता अनुसार दरवाजा बंद होता रहता है,खुलता रहता है.
नीतीश कुमार बिहार के निर्वाचित मुख्यमंत्री हैं और उनके अब तक के राजनीतिक जीवन से ये स्पष्ट है कि वो आगे भी मुख्यमंत्री बने रहना चाहते हैं और शायद इसलिए ही एक बार फिर से वो अपना राजनीतिक सहयोगी बदलने की राह पर चल दिए हैं.
बिहार विधानसभा में भले ही नीतीश की पार्टी संख्या के मामले में आरजेडी और बीजेपी से बहुत पीछे हों, लेकिन ये नीतीश की राजनीतिक कुशलता ही है कि अपनी पार्टी का कोई मज़बूत ढांचा ना होने के बावजूद भी राज्य में जनाधार और कार्यकर्ताओं वाली पार्टियों को किनारे लगाकर सत्ता का केंद्र बने हुए हैं।एक बार पुनः दो उपमंत्री व 6 मंत्री मण्डल के संग नीतिश कुमार बिहार के मुख्य मंत्री पद की सपथ लेकर 9वीं बार मुख्यमंत्री बन गए।
आलेख -
विनोद तकियावाला
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