2023-07-09 13:37:12
के. पी. मलिक
भारत एक ऐसा देश है, जिसके दुनिया के सबसे ज्यादा देशों से बेहतर रिश्ते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन रिश्तों को और भी बेहतर करने के जो प्रयास किए हैं, वो प्रशंसनीय हैं। इससे न सिर्फ भारत का परचम दुनिया भर में लहराया है, बल्कि दुनिया भर के देशों को हिंदुस्तान की अहमियत पता चली है। मसलन, रूस यूक्रेन युद्ध को रोकने के लिए दुनिया की नजरें हिंदुस्तान पर टिकना या फिर ताइवान पर चीन के हमले की आशंका से ताइवान का हिंतुस्तान की ओर मदद की नजरों से देखना। तिब्बत का हमेशा हिंदुस्तान को अपना लीडर मानना, डूबते श्रीलंका की मदद के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आगे आना। इसी प्रकार से अमेरिका, जापान, पापुआ न्यू गिनी, आस्ट्रेलिया, अफगानिस्तान, रूस और भी दुनिया के ऐसे तमाम देश, जहां हिंदुस्तान के रिश्ते पहले के मुकाबले सुधरे हैं।
हाल ही में अमेरिका की प्रमुख पत्रिका फॉरेन पॉलिसी के एक हालिया लेख में बड़ी प्रमुखता से हिंदुस्तान को पश्चिम एशिया की उभरती हुई शक्ति बताया गया है। इस लेख में इजराइल, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ-साथ अनेकों प्रमुख देशों से हिंदुस्तान के गाढ़े होते रिश्तों की प्रशंसा की गई है। लेख में कहा गया है कि हिंदुस्तान बदलती अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था में उभरकर सामने आ रहा है और हिंदुस्तान के इस उभार का फायदा उठाने के इच्छुक पश्चिम एशिया के देश हैं।
लेखक स्टीवन ए. कुक कहते है कि संभावना है कि अमेरिका इस घटनाक्रम में हस्तक्षेप कर सकता है और खुद भी इस इससे लाभ उठा सकता है। अगर अमेरिका पश्चिम एशियाई देशों के साझेदार के रूप में वाशिंगटन के विकल्प की तलाश में हैं, तो उसके लिए नई दिल्ली इन विकल्पों में से एक बेहतर विकल्प हो सकता है। अमेरिका अब दुनिया में निर्विवाद रूप से सबसे शक्तिशाली नहीं रह सकता, लेकिन पश्चिम एशिया में हिंदुस्तान का बढ़ता दबदबा उसके विस्तार को दर्शाता है और अब रूस और चीन भी इस भूमिका को निभा सकते हैं।
स्टीवन ए. कुक ने करीब एक दशक पहले की अपनी हिंदुस्तान की यात्रा की याद को ताजा करते हुए कहा है कि उस समय उनके मन में यह बात आई थी कि हिंदुस्तानी लोग पश्चिम एशिया में बड़ी भूमिका निभाना नहीं चाहते हैं। लेकिन ठीक 10 साल बाद अब चीजें बदल चुकी हैं और हिंदुस्तान नेतृत्व की क्षमता में उभर रहा है। अमेरिकी अधिकारी और विश्लेषक बीजिंग के हर कूटनीतिक कदम को लेकर सचेत हैं और पश्चिम एशिया में चीनी निवेश को संदेह की नजर से देखते हैं। लेकिन वाशिंगटन ने पिछले कुछ सालों से जिस सबसे जरूरी मुद्दे को इग्नोर किया है, वो है भू-राजनीतिक घटनाक्रम। वहीं हिंदुस्तान ने इस मुद्दे पर अपनी गहरी पकड़ बनाई है। अब तो खाड़ी देश यूएई और सऊदी अरब भी हिंदुस्तान के साथ अपने संबंधों का विस्तार करने के तरीके तलाश रहे हैं। हिंदुस्तान से अच्छे संबंध बनाने की इन देशों, खास तौर पर सऊदी अरब की पहल महत्वपूर्ण है, जिसके लंबे समय से पाकिस्तान से अच्छे रिश्ते रहे हैं। उन्होंने आशंका जताई है कि इन देशों के हिंदुस्तान की ओर झुकाव की वजह इस्लामी चरमपंथ को रोकने में साझा रुचि हो भी कुछ हद तक हो सकती है। लेकिन इसकी खास वजह आर्थिक क्षेत्र है। क्योंकि पिछले कुछ सालों से हिंदुस्तान और इन दोनों देशों के बीच आर्थिक रिश्ते मजबूत हो रहे हैं और इन देशों का इस पर फोकस भी है। इतना ही नहीं, इजराइल के साथ भी हिंदुस्तान के रिश्तों में नजदीकियां बढ़ी हैं और आर्थिक मोर्चे पर दोनों देश मजबूती से एक-दूसरे के साथ खड़े होते दिख रहे हैं।
साल 2017 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली इजराइल यात्रा के एक साल बाद उनके समकक्ष बेंजामिन नेतन्याहू का हिंदुस्तान आकर उच्च तकनीक और रक्षा समेत अनेक महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर गहन चर्चा और करार करना और उसके बाद से दोनों देशों का इन क्षेत्रों में तेजी से विकसित होना हिंदुस्तान की भू राजनीतिक नीति की मजबूती की मिसाल है। आने वाले वक्त में हिंदुस्तानी उद्योगपतियों के इजराइल में निवेश से परहेज के मामले में अब बदलाव आया है। साल 2022 में अडाणी समूह और एक इजराइली भागीदार ने हाइफा बंदरगाह के लिए 1.2 अरब अमेरिकी डॉलर की निविदा हासिल करना ही इस रिश्ते की खास पहल है। अभी हिंदुस्तान-इजराइल मुक्त व्यापार समझौते के लिए भी दोनों देशों में बातचीत जारी है, जो भविष्य में इन दोनों देशों को और मजबूत करेगी।
स्टीवन ए. कुक ने प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी की हालिया मिस्र यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि फॉरेन पॉलिसी में लिखा है कि प्रधानमंत्री मोदी की मिस्र यात्रा हिंदुस्तान और मिस्र के बीच प्रगाढ़ होते संबंधों को दर्शाता है। उन्होंने छह महीने पहले की मिस्र के राष्ट्रपति की हिंदुस्तान की यात्रा को याद करते हुए लिखा कि मिस्र के राष्ट्रपति हिंदुस्तान के 74वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर आयोजित परेड में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुए थे, जो उनके हिंदुस्तान से गहरे रिश्तों को दर्शाता है। हिंदुस्तान का निर्यात भी लगातार बढ़ रहा है और हिंदुस्तानी नागरिक भी चीनी नागरिकों की तरह ही यूरोप और अफ्रीकी देशों में अपना सामान भेजने के लिए मिस्र को प्रमुख द्वार के रूप में देखते हैं। स्टीवन ए. कुक ने हिंदुस्तान को मध्य पूर्व देशों में एक प्रमुख खिलाड़ी बताया गया है और उसकी भूराजनीतिक पॉलिसी की प्रशंसा की है।
बहरहाल, स्टीवन ए. कुक ने अमेरिका को भी यह बताने की कोशिश की है कि अब हिंदुस्तान के बगैर दुनिया के किसी भी देश का काम चलने वाला नहीं है और चीन, जो कि अपने आप को दुनिया का प्रमुख बनाना चाहता है, हिंदुस्तान से कहीं पीछे खड़ा है, इसलिए अमेरिका को चीन के फैले फन को कुचलने के लिए हिंदुस्तान की मदद लेनी होगी। वास्तव में पिछले एक दशक में हिंदुस्तान की बढ़ती ताकत को दुनिया ने पहचाना है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसमें जिस तरह इजाफा किया है, वो सराहनीय है। आज हिंदुस्तान का गुणगान पूरी दुनिया में हो रहा है और इसी तरह हिंदुस्तान का परचम दुनियाभर में लहराने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक सकारात्मक पहल करते हुए दिखाई पड़ते हैं।
(लेखक दैनिक भास्कर के राजनीतिक संपादक हैं)