अपनों को वनवास।

उल्टे-पुल्टे हो बने, जब मूर्खों का मंच।
News

2025-03-17 14:50:23

उल्टे-पुल्टे हो बने, जब मूर्खों का मंच। समझे खुद को फिर वहाँ, हर कोई सरपंच।। जोड़ तरक्की ने दिया, छोर-छोर श्रीमान। बाजू के इंसान का, लिया नहीं संज्ञान।। अपने ही देते सदा, अपनों को वनवास। जरा गौर से देखिये, सदियों का इतिहास।। आम, नीम, पीपल कटे, उजड़े बरगद गाँव। मनीप्लांट कब तक भला, देंगे कितनी छाँव।। बारी- बारी आ रहे, सुख-दुख हैं मेहमान। समझ कहाँ इनके बिना, पाता है इंसान।। ज्ञानी, पंडित, मौलवी, या फिर रिश्तेदार। भाई से अच्छा यहाँ, मिले न सलाहकार।। अगर एक इंसान के, हों जब सभी विरुद्ध। समझ उसे अति काम का, सच्चा और प्रबुद्ध।।

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