अगले चुनावों में बसपा व कांग्रेस को एक दूसरे की जरुरत या मजबूरी ?

उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में सबसे बुरा सियासी हश्र कांग्रेस और बसपा का हुआ। कांग्रेस न तो पंजाब में सरकार बचा पाई और न ही किसी अन्य राज्य में सत्ता हासिल कर सकी।
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2023-07-07 13:22:45

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस और बसपा अलग-अलग चुनाव लड़े थे और दोनों ही दलों को करारी हार का सामना करना पड़ा है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि उत्तरप्रदेश में कांग्रेस ने बसपा के साथ चुनाव लड़ने और मायावती को सीएम चेहरा बनाने की पेशकश की थी, जिस पर मायावती ने भी पलटवार किया है। ऐसे में सवाल उठता है कि उत्तरप्रदेश चुनाव में आखिर बसपा और कांग्रेस ने क्यों गठबंधन नहीं किया। उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में सबसे बुरा सियासी हश्र कांग्रेस और बसपा का हुआ। कांग्रेस न तो पंजाब में सरकार बचा पाई और न ही किसी अन्य राज्य में सत्ता हासिल कर सकी। वहीं, बसपा की सियासी प्रयोगशाला रही उत्तरप्रदेश में मायावती को कारारी मात मिली तो पंजाब में अकाली दल के साथ हाथ मिलाने का भी फायदा पार्टी को नहीं हो सका। ऐसे में हार से हताश कांग्रेस और बसपा के बीच जुबानी जंग जारी रही ।

अब हालात बदल चुके हैं । लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी तैयारियां तेज कर दी है। एक तरफ जहां भाजपा उत्तरप्रदेश में मिशन 80 के तहत पार्टी संगठन को और मजबूत करने में जुटी हैं तो वहीं दूसरी तरफ 15 विरोधी दलों की महाबैठकों का मंथन चल रहा है, जिसमें आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति तैयार की जा रही है । इस बैठक में सपा, कांग्रेस समेत कई बड़े राजनीतिक दल एक साथ एक मंच पर आने की तैयारी कर रहे हैं, इस बीच बसपा सुप्रीमो मायावती एक अलग रणनीति के साथ नजर आ रही है।

चूँकि जब बात राजनीतिक अस्तित्व पर खतरे की आती है तो गंभीर दुश्मन भी दोस्त बनने की राह पर कदम बढ़ाने लगते हैं। राजनीति में वैसे भी दोस्ती और दुश्मनी दोनों परमानेंट नहीं होता है ये अक्सर देखा और सुना जाता रहा है। ऐसा ही वाकया इन दिनों पर्दे के पीछे बसपा और कांग्रेस के बीच चल रहा है।मायावती की पार्टी को साल 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद से जो कांग्रेस भाजपा की बी टीम बता रही थी वो अब बसपा के साथ आने वाले चुनाव में करार करने के प्रयास में जुट गई है । इस बात का अंदाजा कुछ समय पूर्व के के बसपा के उस प्रेस नोट से लगाया जा सकता है जिसमें बसपा कांग्रेस को टार्गेट करने को लेकर बेहद सावधानी बरतती हुई दिख रही है। ज़ाहिर है जो बसपा साल 1996 में कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बाद कांग्रेस के खिलाफ आग उगलती रही है वही बसपा कांग्रेस के खिलाफ शब्दों के चयन में सावधानी बरत रही है। दरअसल लोकसभा चुनाव से पहले संभावनाओं की तलाश में जुटी दोनों पार्टियों के लिए एक दूसरे की जरूरत अब महसूस होने लगी हैं। इसलिए कांग्रेस और बसपा एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप को लेकर सावधान दिख रही हैं। बसपा कांग्रेस के प्रति सॉफ्ट दिख रही है ।इन बातों से ये लगने लगा है कि पार्टी ने भविष्य के लिए गठबंधन का विकल्प खुला रखा है। संघ) के तहत दलितों और निचली जाति के कर्मचारियों का एक नेटवर्क बनाया और 1984 में राजनीतिक पार्टी बहुजन सामवादी पार्टी का गठन हुआ।बहुजन समाज मिशन के संस्थापक अध्यक्ष कांशीराम पंजाब से थे, लेकिन उनकी सहयोगी मायावती दिल्ली के पटपड़गंज इलाके से उत्तर प्रदेश आईं और बिजनौर से अपना पहला उपचुनाव लड़ा। उन्होंने चुनाव जीतने के लिए कई फॉर्मूलों के लिए उत्तरप्रदेश को अपनी प्रयोगशाला बनाया। पंजाब में दलितों की दो उप-जातियां – 17 प्रतिशत जाटव और 14 प्रतिशत हरिजन – के बीच हमेशा से टकराव रहा है, जबकि उत्तरप्रदेश जाटवों में वोट बैंक का एक बड़ा हिस्सा दिशाहीन था। बसपा नेताओं ने खासतौर से मायावती ने उत्तरप्रदेश में जाट वोटरों को साधना शुरू किया।

मायावती के रूप में दलितों को पहली बार अपनी जाति के नेतृत्व वाली पार्टी मिली। मायावती ने भी अपनी दलित पहचान को उजागर करने का कोई मौका नहीं गंवाया। अपने सभी भाषणों में उन्होंने खुद को दलित की बेटी बताया। कांशीराम ने निचली जाति को एकजुट करने के लिए जातिगत सम्मेलनों का आयोजन किया। अब कांग्रेस मायावती की इसी पहचान का फायदा उठाना चाहती है। उत्तरप्रदेश की कुल आबादी में 21 फीसदी दलित हैं।

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार .लेखक एवं टिप्पणीका

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